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झारखंड की नदियाँ

by bnnbharat.com
December 13, 2021
in क्या आप जानते हैं ?, झारखंड, झारखंड का भूगोल, झारखंड का सामान्य ज्ञान, भूगोल, समाचार
झारखंड की नदियाँ
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झारखंड की नदियों का परिचय

झारखंड से निकलने वाली सभी नदियाँ यहाँ की पठारी भूभाग से निकलतीं हैं। यहाँ की नदियां बरसाती नदियां हैं। अर्थात ये नदियाँ बरसात के महीनों में पानी से भरी रहती हैं, जबकि गर्मी के मौसम में सूख जाती हैं। ये नदियां पानी के लिए मानसून पर निर्भर करती है।

कठोर चट्टानी क्षेत्रों से होकर प्रवाहित होने के कारण झारखंड की नदियाँ नाव चलाने के लिए उपयोगी नहीं है। मयूराक्षी नदी झारखंड की एकमात्र नदी है, जिसमें वर्षा ऋतु में नावें चला करती हैं।

झारखंड राज्य की बेसीन प्रणाली को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है ।
(A) गंगा से मिलने वाली नदियों की प्रवाह प्रणाली
(B) दक्षिण में बहने वाली नदियां की प्रवाह प्रणाली

झारखंड की प्रमुख नदियों में दामोदर, उत्तरी कोयल, दक्षिणी कोयल, स्वर्णरेखा, शंख , अजय तथा मयूराक्षी है।

उत्तरी कोयल तथा दामोदर प्रथम वर्ग में शामिल नदियाँ है। जबकि स्वर्णरेखा, शंख ,दक्षिणी कोयल दूसरे वर्ग में शामिल नदियाँ है।

इन दोनों प्रवाह प्रणाली के बीच स्थित जल विभाजक झारखंड के लगभग मध्य भाग में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर फैला है।

झारखंड की मुख्य नदियाँ

दामोदर नदी

झारखंड से निकलने वाली सबसे बड़ी और लंबी नदी दामोदर नदी है। इसका उद्गम स्थल छोटा नागपुर का पठार है। यह लातेहार जिला के टोरी नामक स्थान से निकलती है।  दामोदर नदी को बंगाल का शोक भी कहते हैं।

दामोदर नदी देवनद या देवनदी के नाम से भी प्रचलित है। साहित्य पौराणिक कथाओं में देवनंद के नाम से भी इसका उल्लेख है।

दामोदर नदी लातेहार जिले से निकलकर हजारीबाग, मानभूम, गिरिडीह, धनबाद होते हुए बंगाल में प्रवेश कर बाँकुड़ा होती हुई हुगली के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

दामोदर नदी की  लंबाई 290 किलोमीटर है। वैसे इसकी कुल लम्बाई 524 km है।इसकी  सहायक नदियों में कोनार, बोकारो,जमुनिया, कतरी और बराकर प्रमुख है।

दामोदर नदी रामगढ़ जिला के रजरप्पा में भैरवी नदी से मिलकर जलप्रपात बनाती है यहाँ माँ छिन्नमस्तिके सिद्धपीठ है। यह झारखंड के एक प्रमुख पर्यटक स्थल भी हैं ।

दामोदर नदी का अपवाह क्षेत्र 12,800 वर्ग किमी है जो हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद, बोकारो, लातेहार, रांची, लोहरदगा है।

स्वर्णरेखा नदी

स्वर्णरेखा नदी छोटानागपुर पठार में रांची जिले के नगड़ी नामक गांव से निकलती है। यहां से बहती हुई यह नदी पूर्वी सिंहभूम जिले में प्रवेश करती है,यहां से उड़ीसा राज्य में चली जाती है।

पठारी चट्टानों वाली प्रदेश से प्रवाहित होने के कारण स्वर्णरेखा नदी तथा इसकी सहायक नदियां, गहरी घाटियां तथा जलप्रपात का निर्माण करती है।

यह रांची से 28 किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में हुंडरू जलप्रपात बनाती है, जहां से यह 320 फीट की ऊंचाई से गिरती है। यह झारखंड के दूसरे सबसे ऊंचा जलप्रपात है।

स्वर्णरेखा मुख्यता बरसाती नदी है, वर्षा काल में इस में पानी भरा रहता है, परन्तु गर्मी में सूख जाता है।

इस नदी के सुनहरे रेत में सोना मिलने की संभावना के कारण इसे स्वर्ण रेखा नदी कहा जाता है लेकिन सोना फिलहाल प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि यह रेत के कणों में बहुत ही कम मात्रा में होता है।

राढू इसकी सहायक नदी है, यह नदी मार्ग में जोन्हा के पास एक जलप्रपात का निर्माण करती है जो 150 फीट की ऊंचाई पर है यह जलप्रपात गौतम धारा जलप्रपात के नाम से जाना जाता है।

स्वर्णरेखा नदी की एक विशेषता यह है कि उद्गम स्थान से लेकर सागर में मिलने तक यह किसी की सहायक नदी नहीं बनती है। यह सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

इसके तीन प्रमुख सहायक नदियां हैं राढू ,काँची और खरकई है। पूरब से बहती हु़ई इसमें आ मिलती है ।

अपवाह क्षेत्र: (11,868 km) रांची,सिंहभूम जिला

बराकर नदी

बराकर नदी भी एक बरसाती नदी है, छोटानागपुर के पठार से निकलकर हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद और मानभूम में जाकर दामोदर नदी में मिल जाती है।

यह बरसात में उमड़ कर बहती है, फिर धीमी गति से अपना अस्तित्व बनाए रहती है।

इस नदी पर दामोदर घाटी परियोजना के अंतर्गत मैथन बांध बनाया गया है जिससे बिजली का उत्पादन किया जाता है।

इस नदी का उल्लेख बौद्ध एवं जैन धार्मिक ग्रंथों में हुआ है।गिरिडीह के निकट इस नदी के तट पर बराकर नामक स्थान है, जहां जैन मंदिर है।

मैथन के निकट बराकर नदी के तट पर कल्याणेश्वरी नामक देवी मंदिर है।

अपवाह क्षेत्र: (11,868 km) हजारीबाग, गिरिडीह, धनबाद

उत्तरी कोयल नदी

उत्तरी कोयल नदी राँची पठार के मध्य भाग से निकलकर पाट क्षेत्रों में ढालों पर बहती हुए उत्तर की ओर प्रवाहित होती हैं।

यह औरंगा और अमानत नदियों को भी अपने में विलीन कर लेती है तथा साथ ही कई छोटी नदियां को अपने में विलीन करते हुए 255 किलोमीटर की पहाड़ी और मैदानी दूरी तय कर सोन नदी में मिल जाती है।

औरंगा और अमानत नदी इसकी सहायक नदियां हैं।

यह नदी गर्मी के मौसम में सूख जाती है,लेकिन बरसात के दिनों में बाढ़ के साथ उमड़ कर बहने लगती है।

बूढ़ा नदी महुआटांड क्षेत्र से निकलकर सेरेंगदाग पाट के दक्षिण में इससे मिलती है, यह दोनों नदियों के मिलन का महत्व बूढ़ा घाघ जलप्रपात के कारण का बढ़ जाता है।

मुहाना: सोन नदी, अपवाह क्षेत्र : पलामु , गढवा, लातेहार आदि 

दक्षिणी कोयल

दक्षिणी कोयल नदी रांची के पास नगड़ी गांव की पहाड़ी से पश्चिम में बहती हुई लोहरदगा पहुंचती है फिर उत्तर पूर्वी होकर दक्षिण दिशा में हो जाती है।

फिर यह गुमला जिले से होकर सिंहभूम के रास्ते शंख नदी में जा मिलती है।

लोहरदगा से 8 किलोमीटर उत्तर पूर्व में या दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाती है और यह लोहरदगा तथा गुमला जिले से होते हुए सिंहभूम में प्रवेश करती है।

अंत में यह नदी गंगापुर के निकट नदी में समा जाती है, इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी कारो है, इसी स्थान पर कोयलाकारो परियोजना का निर्माण किया गया है।

यह आगे चल कर शंख नदी मे मिल जाती है। इसकी सबसे बड़ी सहायक नदी “कारों” नदी है। इसी पे “कोयलाकारों परियोजना” का निर्माण किया गया है ।

सहायक नदी: कोरो     
मुहाना: शंख नदी (उड़ीसा)
अपवाह क्षेत्र: (11,009 वर्ग km) लोहरदगा, गुमला, पशिचमी सिंहभूम व राँची

कन्हार नदी

कन्हार नदी राज्य के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में पलामू के सरगुजा से निकलती है और पलामू के दक्षिणी-पश्चिमी सीमा का निर्माण करती हुई उत्तर की ओर बहती है।

कन्हार नदी सरगुजा को पलामू से 80 किलोमीटर तक बाँटती है।

यह नदी गढ़वा में भंडारित प्रखंड प्रवेश करती है यह रंका प्रखंड की पश्चिमी सीमा से होते हुए धुरकी प्रखंड में प्रवेश करती हैं।

फल्गु नदी

फल्गु नदी भी छोटा नागपुर पठार के उत्तरी भाग से निकलती है।

अनेक छोटी-छोटी सरिताओं के मिलने से इस नदी की मुख्यधारा बनती है,जिससे निरंजना भी कहते हैं। इसको अंतत सलिला या लीलाजन भी कहते हैं, बोधगया के पास मोहना नामक सहायक नदी से मिलकर या विशाल रूप धारण कर लेती है।

गया के निकट इसकी चौड़ाई सबसे अधिक पाई जाती है।

पितृपक्ष के समय देश के विभिन्न भागों से लोग फल्गु नदी में स्नान करने के लिए आते हैं और पिंडदान करते हैं।

मुहाना: ताल क्षेत्र के निकट गंगा नदी में 

सकरी नदी

सकरी नदी भी छोटानागपुर से निकलकर हजारीबाग, पटना, गया और मुंगेर जिले से होकर प्रवाहित होती है।

झारखंड से निकलकर या उत्तर पूर्व की ओर बहती हुई कियूल और मनोहर नदियों के साथ मिलकर गंगा के ताल क्षेत्रों में बिखर जाती हैं।

रामायण में इस नदी को सुमागधी के नाम से पुकारा गया है उस काल में यह नदी राजगीर के पास से प्रवाहित होती थी, यह नदी अपने मार्ग बदलने के लिए प्रसिद्ध है।

पुनपुन नदी

पुनपुन नदी झारखंड में पुनपुन एवं उसकी सहायक नदियों का उद्भव हजारीबाग के पठार वह पलामू के उत्तरी क्षेत्रों में क्षेत्रों से होता है।

यह नदी तथा उसकी सहायक नदियां उत्तरी कोयल प्रवाह क्षेत्र के उत्तर से निकलकर सोन के समांतर बहती है।

पुनपुन का महत्व हिंदू धर्म में बहुत अधिक है।

इस नदी को पवित्र नदी के रूप में पूजा जाता है, पुनपुन नदी को कीकट नदी भी कहा जाता है,लेकिन इससे कहीं-कहीं बमागधी भी कहा जाता है।

गंगा में मिलने के पूर्व इसमें दरधा और मनोहर नामक सहायक नदियां भी आ मिलते हैं।

चानन नदी

चानन नदी को पंचाने भी कहा जाता है, वास्तव में इसका नाम पंचानन है जो कालांतर में चानन बन गया है।

यह नदी 5 धाराओं के मेल से विकसित हुई, इसलिए इससे पंचानन कहा गया है। “पंचाने नदी” भी कह्ते है ।
छोटा नागपुर पठार से इस की सभी धाराएं निकलती है।

मुहाना : सकरी नदी   

शंख नदी

शंख नदी नेतरहाट पठार के पश्चिमी छोर में उत्तरी कोयल के विपरीत बहती है।

पाट क्षेत्र के दक्षिणी छोर से इसका उद्गम होता है, यह गुमला जिले के रायडी के दक्षिण में प्रारंभ होती है।

यह नदी शुरू में काफी सँकरी और गहरी खाई का निर्माण करती है।

मार्ग में राजा डेरा के पास 200 फीट ऊंचा जलप्रपात बनाती है, जो सदनीघाघ जलप्रपात के नाम से प्रसिद्ध है।

यह नदी शुुुुरु मे काफी सँकरी और गहरी खाईं बनाती है ।यह राजाडोरा के पास 200 feet ऊँचा जलप्रपात बनाती है जो ” सदनघाघ जलप्रपात ” केे नाम सेे जाना जाता है ।

शंख नदी: उदगम –  चैनपुर प्रखंड  (गुमला जिला) 

मुहाना: दक्षिणी कोयल नदी
अपवाह क्षेत्र : (4,107 वर्ग km) गुमला 

अजय नदी

अजय नदी का उद्गम क्षेत्र मुंगेर है, जहां से प्रवाहित होते हुए यह देवघर जिले में प्रवेश करती है।

यहाँ से यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बढ़ती हुए प्रवाहित होती है, पश्चिम से आकर इसमें पथरो नदी मिलती है।

आगे चलकर इसमें जयंती नदी मिलती है यह दोनों सहायक नदियां हजारीबाग, गिरिडीह जिले से निकलती हैं।

अजय नदी जामताड़ा में कजरा के निकट प्रवेश करती है, संथाल परगना के दक्षिणी छोर में यह नदी कुशबेदिया से अफजलपुर तक प्रवाहित होती है।

यह झारखंड मे देवघर तथा जमतारा मे बहती है। इसकी 2 सहायक नदी पथरो तथा जयन्ती नदी है जो हजारीबाग तथ गिरिडीह से निकलती है ।

देवघर के पुनासी मे इस नदी पे पुनासी जल परियोजना के तह्त पुनासी डैम का निर्माण किया जा रहा है।

सहयेक नदी: पथरो, जयन्ती
मुहाना: भागरथी नदी बंगाल  
अपवाह क्षेत्र : (3,612 वर्ग km) देवघर ,दुमका

मयूराक्षी नदी

मयूराक्षी नदी देवघर जिले के उत्तर-पूर्वी किनारे पर स्थित त्रिकुट पहाड़ से निकलती है।

यह दुमका जिले के उत्तर-पश्चिमी भाग में प्रवेश करती है, यह दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई आमजोड़ा के निकट दुमका से अलग होती है।

झारखंड से निकलकर यह बंगाल में सैंथिया रेलवे स्टेशन के निकट गंगा में मिल जाती है।

यह नदी अपने ऊपरी प्रवाह क्षेत्र में मोतिहारी के नाम से भी जानी जाती है, यह भुरभुरी नदी के साथ मिलकर मोर के नाम से पुकारी जाती है, इसका दूसरा नाम मयूराक्षी है।

इसकी सहायक नदियों में टिपरा, पुसरो,भामरी , दौना,धोवइ आदि प्रमुख है।

इस नदी पर कनाडा के सहयोग से मसानजोर डैम का निर्माण किया गया है, इस डैम को कनाडा डैम भी कहा जाता है।

मोर या मयूराक्षी नदी:-इस नदी के ऊपरी प्र्वाह क्षेत्र मे “मोतीहारी” के नाम से जाना जाता है। यह भुरभुरी नदी से मिलकर “मोर” के नाम से पुकारी जाती है।

मुहाना: गंगा ( पश्चिम बंगाल ) 

अपवाह क्षेत्र : दुमका, साहेबगंज, देवघर, गोड्डा

विशेषता : झारखण्ड की एकमात्र नौगम्य नदी

सोन नदी

यह नदी मैकाल पर्वत के अमरकटक पठार से निकलती है ।
इसकी लंबाई 780 -784 कि. मी. है । 
यह नदी पटना के पास गंगा नदी मे मिल जाती है।
यह नदी झारखंड के 45 km की सीमा बनाती है यह पलामू की उतरी सीमा बनाते हुए प्रवाहित होती है।
क्षेत्र विशेष में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है जैसे :-सोनभद्र ,हिरन्यवाह / हिरण्यवाह।
इसकी सहायक नदी उत्तरी कोयल है।
इसका अपवाह क्षेत्र पलामू और गढ़वा है।

झारखंड की अन्य नदियाँ

ब्राह्मनि नदी
ब्राह्मनि नदी उद्गम दुमका जिले के दुधवा पहाड़ी से निकलकर पश्चिम बंगाल में गंगा से मिल जाती है। इसकी प्रमुख सहायक नदी है गुमरो और एरो नदी।

बांसलोइ नदी
बांसलोइ नदी गोड्डा जिला के पास बाँस पहाड़ी से निकलकर मुराइ के पास गंगा नदी मे मिल जाती है ।

गुमनी नदी
गुमनी नदी राजमहल के पहाड़ी से निकलती है और झारखंड कि सीमा को पार कर गंगा मे मिल जाती है ।
इसका अपवाह क्षेत्र 1313 वर्ग km  है।

औरंग नदी
औरंग नदी लोहरदगा जिले के किस्को प्रखंड के उम्दाग गाँव निकलती है। यह उतरी कोयल की सहायक नदी है। इसकी सहायक नदी घाघरी, गोवा , नाला, धधारी, सुकरी है ।

बूढ़ा नदी
बूढ़ा नदी महुआटाँडा से निकल कर सरेंदाग पाट के दक्षिण मे उतरी कोयल से मिल जाती है । झारखंड क सबसे ऊँचा जलप्रपात “बूढ़ाघाघ जलप्रपात” इसी नदी पर स्तिथ है ।

अमानत नदी
अमानत नदी का उद्गम स्थल चतरा है। यह करीब 100 किलोमीटर की लंबी दूरी तय कर के कोयल नदी मे मिल जाती है । इसकी प्रमुख्य सहायक नदियां जिजोइ, माइला, जनुमिया, खेरा, चाको, सलाही, पाटन है ।

हरमु नदी
हरमु नदी राँची के नगाड़ी प्रखंड के पास से निकल कर कुल 14 किलोमीटर कि यात्रा तय क्र नमकुम मे स्वर्णरेखा नदी मे जा मिलती है।

काँची नदी
काँची नदी राँची जिले के तमाड़ इलाके से निकलती है। सिल्ली होते हुए ये स्वर्णरेखा नदी मे जा मिलती है।

तजना नदी
तजना नदी बुंडू-तमाड़ इलाके से निकलती है ।यह आगे जा के खूँटी जिले से होते हुए “कारो नदी” मेे मिल जाती है।

गंगा नदी
गंगा नदी झारखंड की सीमा मे सबसे पहले संथाल परगना के साहेबगंज जिला मे तेलियागड़ी से कुछ दूर पश्चिम में छूती है और पुरब दिशा मे बहती है। यह नदी साहेबगंज जिला मे 80 कि. मी. की दूरी तय करती हैै।

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