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नासा के 7 वैज्ञानिको ने दिया इस्तीफा, मंगल पर इंसानी बस्ती बसने वाले प्रोजेक्ट पर करेंगे काम

by bnnbharat.com
January 4, 2022
in समाचार
नासा के 7 वैज्ञानिको ने दिया इस्तीफा, मंगल पर इंसानी बस्ती बसने वाले प्रोजेक्ट पर करेंगे काम
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के बड़े वैज्ञानिक ने संस्थान छोड़ कर यह ऐलान किया है कि अब वो मंगल ग्रह को इंसानों के रहने लायक बनाने की मुहिम पर काम करेंगे. 40 साल नासा में काम करने और प्लैनेटरी साइंस डिविजन के डायरेक्टर जिम ग्रीन इस्तीफा दे चुके हैं. उनकी अगली योजना है कि वो मंगल ग्रह को इंसानों के रहने लायक बनाने की तकनीक और इंजीनियरिंग पर काम करेंगे.

न्यूयॉर्क टाइम्स से बात करते हुए जिम ग्रीन ने कहा कि मंगल ग्रह को इंसानों के रहने लायक बनाने के लिए हमें जियोइंजीनियरिंग का सहारा लेना होगा. उन्होंने बताया कि मंगल ग्रह का वायुमंडल को गर्म और घना बनाने के लिए हमें एक बड़े चुंबकीय कवच की जरूरत है. जो मंगल ग्रह और सूरज के बीच हो. इससे मंगल ग्रह पर ऐसा तापमान और दबाव बनेगा, जिससे इंसान मंगल ग्रह पर धरती की तरह चल-फिर पाएंगे. वह भी बिना स्पेस सूट पहने. न ही शरीर के अंदर उनका खून खौलेगा.

जिम ग्रीन ने कहा कि ये काम किया जा सकता है. मंगल ग्रह पर दबाव लगातार बढ़ रहा है. मंगल खुद-ब-खुद टेराफॉर्म यानी जीने लायक बन जाएगा. इसी के साथ वहां का तापमान और दबाव भी बदलेगा. जैसे ही दबाव बढ़ेगा वैसे ही तापमान बढ़ेगा. लेकिन मेरी योजना अगर अमल में लाई जाए तो इंसान मंगल ग्रह की सतह पर पौधे उगा सकता है. वहां पर ज्यादा दिनों तक जीवन को चला सकता है.

जिम ग्रीन अन्य ग्रहों पर जीवन खोजने के लिए सबसे ज्यादा उत्सुक रहते हैं. उन्होंने कॉन्फिडेंस ऑफ लाइफ डिटेक्शन (CoLD) स्केल बनाया है. लेकिन सभी वैज्ञानिक इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. एडलर प्लैनेटेरियम की एस्ट्रोनॉमर लुसिएन वॉल्कोविज कहती हैं कि मंगल ग्रह पर जाकर इंसानी बस्ती बनाना एक इकोलॉजिकल आपदा होगी. क्योंकि इंसान जिस तरह से धरती को खोदकर, जलवायु परिवर्तन करके बर्बाद कर रहा है, वैसे ही वह मंगल ग्रह के साथ भी करेगा. ऐसे में इंसानों का मंगल पर जाना भी ठीक नहीं है.

लुसिएन वॉल्कोविज कहती हैं कि जिम ग्रीन एक सपना देख रहे हैं. इतना आसान नहीं है मंगल पर इंसानी बस्ती बसाना. वहां पर कार्बन डाईऑक्साइड का इतन रिजर्व नहीं है जो वायुमंडल को पंप कर सके. उसे गर्म करने में मदद कर सके. जबकि, ग्रीन का कहना है कि वैज्ञानिकों को सकारात्मक होना चाहिए. अगर जीवन का छोटा सा भी अंश मिलता है तो हमें आगे की खोज और रिसर्च के लिए तैयार रहना चाहिए.

जिम ग्रीन ने कहा कि कुछ साल पहले वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह के वायुमंडल में फॉस्फीन देखा था. जिस स्तर पर फॉस्फीन की मात्रा दर्ज की गई, वो बहुत ज्यादा थी. उन वैज्ञानिकों को लगा कि अगर फॉस्फीन है तो जीवन की संभावना भी काफी ज्यादा है. लेकिन जब उसे CoLD स्केल पर मापा गया, तो पता चला कि सात स्केल पर जीवन की पूर्ण संभावना होती है. वह तो एक स्केल तक भी नहीं पहुंच पाया था.

जिम ग्रीन ने नासा को अलग-अलग ग्रहों पर जीवन खोजने में काफी मदद की है. उनका प्लान अब मंगल ग्रह को टेराफॉर्म करने का है. ये हो सकता है कि उनकी कुछ थ्योरीज सिर्फ किताबों और रिसर्च पेपर्स तक ही रह जाएं लेकिन हर वैज्ञानिक को उससे कुछ सीखने को मिलेगा.

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