BnnBharat | bnnbharat.com |
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य
No Result
View All Result
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य
No Result
View All Result
BnnBharat | bnnbharat.com |
No Result
View All Result
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य

बप्पा रावल उर्फ कालभोज जिन्होंने हज़्ज़ात की फौज को खदेड़ दिया था

by bnnbharat.com
May 15, 2021
in क्या आप जानते हैं ?, जीवनी
बप्पा रावल उर्फ कालभोज जिन्होंने हज़्ज़ात की फौज को खदेड़ दिया था
Share on FacebookShare on Twitter

मेवाड़ के इतिहास भाग -1


बप्पा रावल (गहलोत राजवंश के राजागुरु)

बप्पा रावल (713-810) मेवाड़ राज्य में गुहिल राजपूत राजवंश के संस्थापक राजा थे।

बप्पारावल का जन्म मेवाड़ के महाराजा गुहिल की मृत्यु के 191वर्ष पश्चात 712 ई. में ईडर में हुआ। उनके पिता ईडर के शाषक महेंद्र द्वितीय थे।

परिचय

बप्पा रावल मेवाड़ के संस्थापक थे कुछ जगहों पर इनका नाम कालाभोज है । कुछ इतिहासकारों का मानना है कि गुहिल वंश संस्थापक- राजा गुहादित्य थे। जबकि आधुनिक इतिहासकार मानते है बप्पा रावल (713-810) मेवाड़ राज्य में गुहिल राजपूत राजवंश के संस्थापक राजा थे। इसी राजवंश में से सिसोदिया वंश का निकास माना जाता है, जिनमें आगे चल कर महान राजा राणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप हुए।

बप्पा रावल बप्पा या बापा वास्तव में व्यक्तिवाचक शब्द नहीं है, अपितु जिस तरह “बापू” शब्द महात्मा गांधी के लिए रूढ़ हो चुका है, उसी तरह आदरसूचक “बापा” शब्द भी मेवाड़ के एक नृपविशेष के लिए प्रयुक्त होता रहा है।

सिसौदिया वंशी राजा कालभोज का ही दूसरा नाम बापा मानने में कुछ ऐतिहासिक असंगति नहीं होती। इसके प्रजासरंक्षण, देशरक्षण आदि कामों से प्रभावित होकर ही संभवत: जनता ने इसे बापा पदवी से विभूषित किया था।

महाराणा कुंभा के समय में रचित एकलिंग महात्म्य में किसी प्राचीन ग्रंथ या प्रशस्ति के आधार पर बापा का समय संवत् 810 (सन् 753) ई. दिया है। दूसरे एकलिंग माहात्म्य से सिद्ध है कि यह बापा के राज्यत्याग का समय था। बप्पा रावल को रावल की उपाधि भील सरदारों ने दी थी । जब बप्पा रावल 3 वर्ष के थे तब वे और उनकी माता जी असहाय महसूस कर रहे थे , तब भील समुदाय ने उनदोनों की मदद कर सुरक्षित रखा ,बप्पा रावल का बचपन भील जनजाति के बीच रहकर बिता , भील समुदाय ने अरबों के खिलाफ युद्ध में बप्पा रावल का सहयोग किया।

यदि बापा का राज्यकाल 30 साल का रखा जाए तो वह सन् 723 के लगभग गद्दी पर बैठा होगा। उससे पहले भी उसके वंश के कुछ प्रतापी राजा मेवाड़ में हो चुके थे, किंतु बापा का व्यक्तित्व उन सबसे बढ़कर था। चित्तौड़ का मजबूत दुर्ग उस समय तक मोरी वंश के राजाओं के हाथ में था। परंपरा से यह प्रसिद्ध है कि हारीत ऋषि की कृपा से बापा ने मानमोरी को मारकर इस दुर्ग को हस्तगत किया। टॉड को यहीं राजा मानका वि. सं. 770 (सन् 713 ई.) का एक शिलालेख मिला था जो सिद्ध करता है कि बापा और मानमोरी के समय में विशेष अंतर नहीं है।

चित्तौड़ पर अधिकार करना कोई आसान काम न था। अनुमान है कि बापा की विशेष प्रसिद्धि अरबों से सफल युद्ध करने के कारण हुई।

सन् 712 ई. में मुहम्मद कासिम से सिंधु को जीता। उसके बाद अरबों ने चारों ओर धावे करने शुरु किए। उन्होंने चावड़ों, मौर्यों, सैंधवों, कच्छेल्लों को हराया। मारवाड़, मालवा, मेवाड़, गुजरात आदि सब भूभागों में उनकी सेनाएँ छा गईं। इस भयंकर कालाग्नि से बचाने के लिए ईश्वर ने राजस्थान को कुछ महान व्यक्ति दिए जिनमें विशेष रूप से गुर्जर प्रतिहार सम्राट् नागभट प्रथम और बापा रावल के नाम उल्लेखनीय हैं।

नागभट प्रथम ने अरबों को पश्चिमी राजस्थान और मालवे से मार भगाया। बापा ने यही कार्य मेवाड़ और उसके आसपास के प्रदेश के लिए किया। मौर्य (मोरी) शायद इसी अरब आक्रमण से जर्जर हो गए हों। बापा ने वह कार्य किया जो मोरी करने में असमर्थ थे और साथ ही चित्तौड़ पर भी अधिकार कर लिया। बापा रावल के मुस्लिम देशों पर विजय की अनेक दंतकथाएँ अरबों की पराजय की इस सच्ची घटना से उत्पन्न हुई होंगी।

बप्पा रावल ने अपने विशेष सिक्के जारी किए थे। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है(शायद इसी कारण इन्हे कालभोज ग्वाल कहा गया है )। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उसके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।

बप्पा रावल के बारे में कुछ मत्वपूर्ण तथ्य

बप्पा रावल को कालभोजादित्य के नाम से भी जाना जाता है

इनके समय चित्तौड़ पर मौर्य शासक मान मोरी का राज था। 734 ई. में बप्पा रावल ने 20 वर्ष की आयु में मान मोरी को पराजित कर चित्तौड़ दुर्ग पर अधिकार किया।

बप्पा रावल को हारीत ऋषि के द्वारा महादेव जी के दर्शन होने की बात मशहूर है।

एकलिंग जी का मन्दिर – उदयपुर के उत्तर में कैलाशपुरी में स्थित इस मन्दिर का निर्माण 734 ई. में बप्पा रावल ने करवाया । इसके निकट हारीत ऋषि का आश्रम है।

आदी वराह मन्दिर – यह मन्दिर बप्पा रावल ने एकलिंग जी के मन्दिर के पीछे बनवाया

इन्होंने अपनी राजधानी नागदा रखी

कविराज श्यामलदास के शिष्य गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अजमेर के सोने के सिक्के को बापा रावल का माना है। इसका तोल 115 ग्रेन (65 रत्ती) है। इस सिक्के में सामने की ओर ऊपर के हिस्से में माला के नीचे श्री बोप्प लेख है। बाईं ओर त्रिशूल है और उसकी दाहिनी तरफ वेदी पर शिवलिंग बना है। इसके दाहिनी ओर नंदी शिवलिंग की ओर मुख किए बैठा है। शिवलिंग और नंदी के नीचे दंडवत् करते हुए एक पुरुष की आकृति है। पीछे की तरफ सूर्य और छत्र के चिह्न हैं। इन सबके नीचे दाहिनी ओर मुख किए एक गौ खड़ी है और उसी के पास दूध पीता हुआ बछड़ा है। ये सब चिह्न बपा रावल की शिवभक्ति और उनके जीवन की कुछ घटनाओं से संबद्ध हैं।

बप्पा रावल ने वर्तमान भारत के हिसाब से देखा जाये तो करीब 18 अन्तराष्ट्रीय विवाह किए| ऐसा माना जाता है कि बप्पा रावल की तकरीबन 100 पत्नियाँ थीं जिनमें से 35 मुस्लिम शासकों की बेटियाँ थीं जिन्हें इन शासकों ने बप्पा रावल के भय से उन्हें ब्याह दीं। बप्पा रावल ने अरबो को हराकर अपनी अधीनता स्वीकार करवाकर उनकी पुत्रियों से विवाह करके मेवाड़ लौटते बप्पा ने गजनी के शासक सलीम को हराकर वहाँ अपने भतीजे को गवर्नर बनाकर बिठा आए । तत्कालीन ब्राह्मणवाद और वर्तमान कराची बप्पा का एक प्रमुख सैन्य ठिकाना था|पाकिस्तान के शहर रावलपिण्डी का नाम बप्पा के नाम से ही पड़ा जाना माना जाता है ।

753 ई. में बप्पा रावल ने 39 वर्ष की आयु में सन्यास लिया। इनका समाधि स्थान एकलिंगपुरी से उत्तर में एक मील दूर स्थित है। इस तरह इन्होंने कुल 19 वर्षों तक शासन किया।

बप्पा रावल का देहान्त नागदा में हुआ, जहाँ इनकी समाधि स्थित है।

शिलालेखों में वर्णन –

कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में बप्पा रावल को विप्रवंशीय बताया गया है

आबू के शिलालेख में बप्पा रावल का वर्णन मिलता है

कीर्ति स्तम्भ शिलालेख में भी बप्पा रावल का वर्णन मिलता है

रणकपुर प्रशस्ति में बप्पा रावल व कालभोज को अलग-अलग व्यक्ति बताया गया है। हालांकि आज के इतिहासकार इस बात को नहीं मानते |

कर्नल जेम्स टॉड को 8वीं सदी का शिलालेख मिला, जिसमें मानमोरी (जिसे बप्पा रावल ने पराजित किया) का वर्णन मिलता है। कर्नल जेम्स टॉड ने इस शिलालेख को समुद्र में फेंक दिया।

Share this:

  • Click to share on Facebook (Opens in new window)
  • Click to share on X (Opens in new window)

Like this:

Like Loading...

Related

Previous Post

नवयुवक संघ समिति गादी पंचायत के युवाओं ने पेश की इंसानियत की एक मिशाल

Next Post

विश्व दूरसंचार दिवस: World Telecom Day जानिए क्या है इस वर्ष का थीम

Next Post
विश्व दूरसंचार दिवस: World Telecom Day जानिए क्या है इस वर्ष का थीम

विश्व दूरसंचार दिवस: World Telecom Day जानिए क्या है इस वर्ष का थीम

  • Privacy Policy
  • Admin
  • Advertise with Us
  • Contact Us

© 2025 BNNBHARAT

No Result
View All Result
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य

© 2025 BNNBHARAT

%d