रक्षा क्षेत्र में भारत के बढ़ते प्रभाव से पाकिस्तान का भय एक बार फिर देखने को मिल रहा है. दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र वह सियाचिन को पूरी तरह से सैनिकों से खाली करने के प्रस्ताव पर भारत के साथ बातचीत को तैयार है. खुद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वह भारत के साथ संबंधों को सुधारने और सियाचिन पर बात करने के पक्ष में है. सियाचिन की भीषण ठंड और खतरनाक माहौल में भी भारतीय सेना के हजारों जवान हर समय मुस्तैदी से तैनात रहते हैं. भारतीय सेना ने साल 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के जरिए इस इलाके पर कब्जा जमाया था.
15 जनवरी को भारतीय सेना दिवस से पहले वार्षिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में भारतीय थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने कहा था कि भारत सियाचिन ग्लेशियर से सेना हटाने के खिलाफ नहीं है. पर शर्त यह है कि पाकिस्तान को एक्चुअल ग्राउंड पोजिशन लाइन (एजीपीएल) को स्वीकार करना होगा. 110 किलोमीटर लंबी एजीपीएल भारत और पाकिस्तान को अलग करती है.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ संबंध सुधारने और सार्थक, रचनात्मक, रिजल्ट देने वाले और लगातार बातचीत करने के लिए प्रतिबद्ध है. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस मामले पर हमारी स्थिति व्यक्त की है. अनुकूल माहौल के लिए आवश्यक कदम उठाने की जिम्मेदारी भारत की है.
भारत सरकार और सेना को पाकिस्तान के वादे और दावे पर नहीं है यकीन
बताते चले की सियाचिन में स्थितियां एकदम से विपरीत रहती है. 1984 में ऑपरेशन मेघदूत के जरिए सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा के बाद 800 से अधिक जवान शहीद हुए है. बिना एक भी गोली चलाए अत्याधिक ठंड और कठिन इलाके के कारण 800 से अधिक भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए हैं. सियाचिन को खाली करने के लिए पहले भी दोनों देशों की तरफ से कई प्रयास किए गए हैं, लेकिन पाकिस्तान की हठधर्मिता के कारण यह मुमकिन नहीं हो सका है. दूसरी बड़ी बात यह है कि भारत सरकार और सेना को पाकिस्तान के वादे और दावे पर यकीन नहीं है.
पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने 2012 में सियाचीन में विनाशकारी हिमस्खलन के बाद भारत के साथ इस इलाके को खाली करने की आवाज उठाई थी. उस समय बर्फ खिसकने से पाकिस्तानी सेना के 124 सैनिक मारे गए थे.