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मैं अंग हूं : कामयाबी पर गणिका के मन में लड्डू फूट रहे थे – 7

by bnnbharat.com
July 21, 2021
in भाषा और साहित्य, सनातन-धर्म
मैं अंग हूं : कामयाबी पर गणिका के मन में लड्डू फूट रहे थे – 7
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श्रृंगी के लिए यह नौका-विहार और नगर भ्रमण उनकी अब तक की जिन्दगी की पहली घटना थी। न नगर, न नगरवासी और न ही जंगल से बाहर आबाद दुनिया ! पल-पल जन्मती नई-नई अनुभूतियों के चलते वे जंगल और आश्रमं सब कुछ भूल गये । कैसा होगा मित्र का नगर और कैसे होंगे वहां के निवासी इसी विचार में डूबे शृंगी बोल पड़े- यह नौका तो बहुत सुंदर है। पानी पर तैरने वाली ऐसी कुटिया (नौका) मैंने पहले कभी नहीं देखी। -और ये लहरें ? – वे भी बेजोड़ ! -तभी गणिका बोली- ‘वह देखिये मित्र, हमारा नगर दिखाई पड़ने लगा है।’ श्रृंगी ने नजर उठाकर नगर का दूर दर्शन किया और प्रथम बार नगर भ्रमण की कल्पना में डूब गये। अपने अभियान की कामयाबी पर गणिका के मन में खुशियों के लड्डू फूट रहे थे, जबकि सीधे सादे श्रृंगी एक नयी यात्रा की सुखद कल्पना में डूबे थे। गणिका के अभियान से जुड़े गुप्तचर पहले ही मालिनी पहुंच चुके थे और राजा रोमपाद को शृंगी के आगमन की संपूर्ण सूचना दे दी थी। लिहाजा मालिनी में उनके स्वागत जोरदार तैयारियां की गयीं। हरेक की आंखें दूर आती उस नौका पर टिकी थीं, जिसमें गणिका के साथ सवार श्रृंगी अब बस मालिनी पहुंचने वाले थे।

इंतजार की घड़ियां खत्म हुयी। लहरों की मृदुल थपकियों पर थिरकती नौका आखिरकार चम्पा तट पर आ लगी। पहले उतरी गणिक एक विजयी मुस्कान बिखेरती हुयी। तत्पश्चात श्रृंगी बिल्कुल निर्लिप्त भाव-भंगिमा के साथ। जैसे ही श्रृंगी बेड़े से नीचे उतरें, आकाश मेघाच्छादित हो उठा। भगवान भास्कर का उग्र तेवर अचानक ही नर्म पड़ गया। संध्या घिरने से पहले ही सूरज बादलों के ओट हो गया(बाल्मीकि रामायण) हवा की गति तेज हो गयी। तट पर कतारबद्ध खड़े झुलस चुके चम्पा के पेड़ नयी ऊर्जा पाकर फिर से झूमने लगे। चम्पक पुष्पों की खुशबू से वातावरण सुगंधसिंचित हो उठा। मालिनी वासियों की तो मानों चिर प्रतिक्षित मुराद पूरी हो गयी।

प्रकृति के अचानक बदले रंग-ढंग ने श्रृंगी सरीखे साधक को भी हतप्रभ करके रख दिया। हालांकि आश्रम में रहते हुए ऐसे प्राकृतिक दृश्य एकानेक बार उनकी नजरों से गुजरे थे, लेकिन किसी नगर में उसी दृश्य की पुनरावृत्ति, वह भी ठीक चम्पा तट पर उनके कदम धरते ही, यह एक नूतन अनुभव देने वाली बात थी ।

मौसम में अचानक हुए उस परिवर्तन ने राजभवन में बैठे राजा रोमपाद को भी ऋषि श्रृंगी के मालिनी पहुंच जाने का स्पष्ट संकेत दे दिया। तभी बूंदा-बांदी शुरू हो गयी। मेघों के गर्जन से होड़ करते जयकारे के बीच गणिका श्रृंगी को साथ लिए राजभवन पहुंच गयी, जहां उनका जोरदार स्वागत किया गया।

क्रमशः…

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