भू वैज्ञानिकों ने भूगर्भीय दृष्टि से महत्वपूर्ण लद्दाख में सिंधु नदी के उत्तर में श्योक व न्यूब्रा घाटी में 299 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टान की खोज की है, जो गोंडवाना काल की है. इस चट्टान के पास ही गोंडवाना भूमि के समय के बीजों के जीवाष्म भी मिले हैं. यह शोधपत्र अमेरिका की शोध पत्रिका जियोलॉजिक सोसाइटी ऑफ अमेरिका के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है. इस खोज को बेहद अहम माना जा रहा है.
शोध कार्य के टीम लीडर कुमाऊं विवि भूगर्भ विज्ञान के वरिष्ठ प्रोफेसर राजीव उपाध्याय के अनुसार 300 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी में विषवत रेखा के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव में 2 बड़े भूखंड थे. दक्षिणी ध्रुव में दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, भारत, आस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका आदि थे, इनको ही गोंडवाना लैंड कहा जाता था, उत्तरी ध्रुव में लोरेशिया था.
अब तक भू वैज्ञानिकों की खोज में पता चला था कि इंडियन व एशियन प्लेट लद्दाख में टकराई थी. इसके भू वैज्ञानिक प्रमाण वहां की चट्टानों से मिलते रहे हैं. नई खोज के अनुसार लद्दाख के उत्तर में सिंधु नदी के ऊपर छोटा भूखंड है, जिसके उत्तर में कराकोरम पर्वत है. इस भूखंड में गोंडवाना काल में उपयोग किए गए कोयले, पेड़-पौधे, तने, पत्तियों व बीजों के जीवाष्म मिले हैं.
प्रो उपाध्याय के अनुसार लद्दाख व कराकोरम के बीच नया भूखंड मिलने से हिमालय के उद्भव एवं विकास में नया आयाम मिलेगा. हिमालय की भू संरचनात्मक अध्ययन के आकलन के लिए नए शोध के द्वार खुलेंगे. टीम में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट लखनऊ से रिटायर वैज्ञानिक डा.राम अवतार व शोधार्थी सौरभ गौतम शामिल रहे। 2008 से शुरू यह शोध अध्ययन करीब 14 साल में पूरा हुआ. जब कराकोरम भूखंड फैल रहा था, जिससे नए समुद्री क्रष्ट व छोटे महासागरों व बड़ी प्लेटें बनी. इन महाद्विपीय टुकड़ों का यह भूखंड दक्षिण ईरान व अफगानिस्तनान से पश्चिमी थाईलेंड, मलेशिया तक फैला है.

