BnnBharat | bnnbharat.com |
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य
No Result
View All Result
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य
No Result
View All Result
BnnBharat | bnnbharat.com |
No Result
View All Result
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य

वे आज भी जीवित हैं – भाग -1 (मार्कंडेय)

by bnnbharat.com
June 29, 2021
in क्या आप जानते हैं ?, वे आज भी जीवित हैं, वैदिक भारत, समाचार, हमारे ऋषिमुनि
वे आज भी जीवित हैं – भाग -1 (मार्कंडेय)
Share on FacebookShare on Twitter

वे जो युगों युगों से आज भी जीवित हैं, उन्हें मिला है अमरता का वरदान। वो कलयुग को अंत करने में निभाएंगे अपनी भूमिका।

महर्षि मार्कंडेय

भगवान शिव के परम भक्त। महर्षि मार्कंडेय ने कठोर तपस्या की और महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध कर मृत्यु पर विजय पा ली और चिरंजीवी हो गए।

महर्षि मार्कंडेय का वर्णन हमारे प्राचीनतम पुराणों में से एक मार्कंडेय पुराण में मिलता है। इस पुराण के अनुसार महर्षि मार्कंडेय के माता का नाम मृद्विती और पिता का नाम ऋषि मृकण्डु था।

महर्षि मार्कंडेय का जन्म

ऋषि मृकुण्डु के विवाह के पश्चात लंबे समय तक उनके घर किसी संतान का जन्म नहीं हुआ। इस कारण उन्होंने और उनकी पत्नी ने घोर तप कर महादेव को प्रसन्न किया।
प्रसन्न हो भगवान शंकर ने मुनि से वर मांगने को कहा। मुनि ने वर में संतान के रूप में एक पुत्र प्रदान करने को कहा। भगवान शंकर ने मुनि से पूछा की, कैसा पुत्र चाहिए ” दीर्घायु किन्तु गुणरहित पुत्र या सोलह वर्ष की आयु वाला गुणवान पुत्र चाहते हो”
मुनि ने भगवान से कहा ” मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो गुणों की खान हो और हर प्रकार का ज्ञान रखता हो फिर चाहे उसकी आयु कम ही क्यों न हो”

भगवान शंकर के आशीर्वाद स्वरूप महामुनि मृकण्डु और मृद्विती के घर एक बालक ने जन्म लिया। यही बालक आगे चलकर मार्कंडेय ऋषि के नाम से प्रशिद्ध हुआ।

मृत्यु पर विजय

मार्कंडेय एक आज्ञाकारी पुत्र थे। उन्होंने बहुत की कम समय में सारी शिक्षा प्राप्त कर ली। माता पिता के साथ रहते हुए पंद्रह वर्ष बीत गए। सोलहवां वर्ष आरम्भ हुआ तो उनके माता पिता उदास रहने लगे। मार्कंडेय ने उदासी का कारण पूछा तो उन्हें पता चला कि उनकी आयु का अब यह अंतिम वर्ष है। मार्कंडेय ने अपने माता पिता से कहा आप चिंता न करें मैं शंकर जी को मना लूंगा। इसके बाद मार्कंडेय घर से दूर घने जंगल में चले गए और विधि पूर्वक नित्य शिव की पूजा अर्चना करने लगे। इसी समय मार्कंडेय ऋषि ने महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध किया। निश्चित समय आने पर काल पहुंचा। ऋषि ने काल को कहा थोड़ा समय दीजिये क्योंकि मैं अभी शिव की स्तुति कर रहा हूँ। काल ने समय देने से मना किया और ऋषि के प्राण हरने की बात कही। तब ऋषि मार्कंडेय शिवलिंग से लिपट गए और महामृत्युंजय मंत्र से शिव की स्तुति करते रहे। तभी भगवान शिव प्रकट हुए और काल के छाती पर लात मारी। काल को रोक दिया। काल शिव की आज्ञा पाकर लौट गए।

भगवान शिव ने महर्षि मार्कंडेय को अनेक कल्पों तक जीवित रहने का वरदान दिया।

इस प्रकार ऋषि मार्कंडेय अमरत्व को प्राप्त किया और वो आज भी इस जीवित हैं।

वे आज भी जीवित हैं – भाग – 2 (राजा बलि)

महामृत्युञ्जय मन्त्र या महामृत्युंजय मन्त्र (“मृत्यु को जीतने वाला महान मंत्र”) जिसे त्रयम्बकम मन्त्र भी कहा जाता है

मन्त्र इस प्रकार है –

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।।

    यह त्रयम्बक “त्रिनेत्रों वाला”, रुद्र का विशेषण जिसे बाद में शिव के साथ जोड़ा गया, को सम्बोधित है।

महा मृत्युंजय मन्त्र का अक्षरशः अर्थ

    त्र्यंबकम् = त्रि-नेत्रों वाला (कर्मकारक), तीनों कालों में हमारी रक्षा करने वाले भगवान को
    यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय
    सुगंधिम = मीठी महक वाला, सुगन्धित (कर्मकारक)
    पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्* पुष्टिः = एक सुपोषित स्थिति, फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता
    वर्धनम् = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में) वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली
    उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मका* उर्वारुकम् = ककड़ी (कर्मकारक)
    इव = जैसे, इस तरह
    बन्धनात् = तना (लौकी का); (“तने से” पंचम विभक्ति – वास्तव में समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो सन्धि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती है)
    मृत्योः = * मृत्योः = मृत्यु से
    मुक्षीय = हमें स्वतन्त्र करें, मुक्ति दें
    मा = नहीं वंचित होएँ
    अमृतात् = अमरता, मोक्ष के आनन्द से

Share this:

  • Click to share on Facebook (Opens in new window)
  • Click to share on X (Opens in new window)

Like this:

Like Loading...

Related

Previous Post

आचार्य कणाद “एक वैज्ञानिक”

Next Post

वे आज भी जीवित हैं – भाग – 2 (राजा बलि) 

Next Post
वे आज भी जीवित हैं – भाग – 2 (राजा बलि) 

वे आज भी जीवित हैं – भाग – 2 (राजा बलि) 

  • Privacy Policy
  • Admin
  • Advertise with Us
  • Contact Us

© 2025 BNNBHARAT

No Result
View All Result
  • समाचार
  • झारखंड
  • बिहार
  • राष्ट्रीय
  • अंतर्राष्ट्रीय
  • औषधि
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी करेंट अफेयर्स
  • स्वास्थ्य

© 2025 BNNBHARAT

%d