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सफला एकादशी से सफल होते है सभी कार्य और मनोकामना

by bnnbharat.com
December 30, 2021
in समाचार
सफला एकादशी से सफल होते है सभी कार्य और मनोकामना
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सफला एकादशी का व्रत आज यानी 30 दिसम्बर को पड़ रही यानी पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी का व्रत उपासक के सभी कर्मो में उसे सफलता दिलवाता है. एकादशी के व्रत को पूर्ण विधि विधान के साथ किया जाना चाहिये.

एकादशी का व्रत महीने में दो बार आता है. पहला कृष्ण पक्ष की एकादशी वाले दिन और दूसरा शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि वाले दिन. एकादशी का व्रत भगवान् नारायण के निमित्त किया जाता है. इस प्रकार एक साल में एकादशी के कुल 24 व्रतों का विधान हमारे शास्त्रों में बताया गया है. जिस साल अधिक मास होता है यानी तेरहवां महीना होता है उस साल इनकी संख्या 26 हो जाती है. इन सभी एकादशियों का अलग-अलग महत्व बताया गया है. व्रत से पुत्र की प्राप्ति का फल मिलता हो उसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. जिस एकादशी से मोक्ष की प्राप्ति होती हो उसे मोक्षदा एकादशी कहा जाता है. इसी तरह 30 दिसम्बर को पड़ रही यानी पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत उपासक के सभी कर्मो में उसे सफलता दिलवाता है. एकादशी के व्रत को पूर्ण विधि विधान के साथ किया जाना चाहिये.

शुभ मुहूर्त

तिथि प्रारंभ: 29 दिसंबर शाम 4 बजकर 13 मिनट से शुरू

तिथि समाप्त: 30 दिसंबर दोपहर 1 बजकर 40 मिनट तक

कथा
प्राचीन काल में महिष्मान नाम का एक राजा था. राजा ने अपने बड़े बेटे लुम्पक को उसके गलत आचरण के कारण देश निकाला दे दिया था. देश निकाला मिलने के बाद वह जंगलों में रहने लगा और पौष कृष्ण दशमी की रात में ठंड के कारण वह सो न सका. सुबह होते होते ठंड से लुम्पक बेहोश हो गया. आधा दिन गुजर जाने के बाद जब उसकी बेहोशी समाप्त हुई तब जंगल से फल इकट्ठा करने लगा. शाम में सूर्यास्त के बाद वह फल खाकर अपनी किस्मत को कोसता रहा और पूरी रात भगवान् को याद करके अंदर ही अंदर क्षमा मांगता रहा और अपने पिता के पास वापस जाने की कामना करता रहा. इस तरह अनजाने में ही लुम्पक से सफला एकादशी का व्रत पूरा हो गया और भगवान् उससे प्रसन्न हो गये. इस व्रत के प्रभाव से लुम्पक सुधर गया और उसके पिता ने भी पुत्र को योग्य समझकर अपना सारा राज्य लुम्पक को सौंप दिया और खुद तपस्या के लिए चले गये. काफी समय तक धर्म पूर्वक शासन करने के बाद लुम्पक भी तपस्या करने चला गया और मृत्यु के पश्चात इसे विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ.

पूजा विधि

इस दिन सबसे पहले ब्राह्म वेला में उठकर दैनिक स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान् नारायण का ध्यान करते हुए उनके निमित्त व्रत का संकल्प लेना चाहिये. तत्पश्चात् पूजा स्थल को गंगा के जल की कुछ बूंदें डालकर पवित्र कर लेना चाहिये और तदुपरांत भगवान् नारायण का षोडशोपचार विधि से पूजन, अर्चन और स्तवन करना चाहिये.

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