सहारा ग्रुप ने 50,000 करोड़ रुपये के गबन के आरोपों पर सफाई में कहा है कि वह निवेशकों की एक-एक पाई वापस कर चुकी है और इन आरोपों में कोई दम नहीं है। गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (SFIO) ने सहारा ग्रुप की कंपनियों पर निवेशकों से 50,000 करोड़ रुपये जुटाने और फिर इन पैसों के गबन का आरोप लगाया था।
सहारा इंडिया ने अपने बयान में कहा कि उस पर लगाया गया 50,000 करोड़ रुपये के गबन का आरोप सही नहीं है और हमारे पास इसके सबूत हैं। जब हम सारा पैसा वापस कर चुके हैं तो फिर गबन और हेराफेरी का सवाल कहां से पैदा होता है। SFIO सहारा की कंपनियों के खिलाफ इस कथित धोखाधड़ी की जांच कर रहा था लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी थी।
वहीं एसएफआईओ ने कहा कि हाई कोर्ट ने कंपनी कानून की धारा 212 (3) के तरह जांच पर रोक लगाई है जो गलत है। इस धारा के तहत जांच तीन महीने में पूरी होनी चाहिए। एसएफआईओ ने सुप्रीम कोर्ट के 2019 के एक फैसले का हवाला दिया और कहा कि मंत्रालय ने इस जांच की समयसीमा बढ़ाकर 31 मार्च, 2022 कर दी है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह दस्तावेजों को देखेंगे और उसके बाद सुनवाई की डेट देंगे।
एजेंसी के मुताबिक निवेशकों को मैच्योरिटी का पैसा नहीं दिया गया और उन्हें ग्रुप की दूसरी कंपनियों की स्कीमों में यह पैसा कन्वर्ट करने के लिए मजबूर किया गया।
वहीं सहारा इंडिया ने सभी आरोपों को गलत बताया है। कहा है कि सभी निवेशकों का पैसा वापस कर दिया गया है , जिसका सारा सबूत सहारा के पास है। सहारा ने भुगतान संबंधी दस्तावेज सेबी के पास भिजवाया था।
खुद सेवी ने भी यह स्वीकार किया है कि 3 करोड़ सम्मानित जमाकर्ताओं कि मूल प्रति सेवी के पास सत्यापन हेतु जमा हैं। जिसको अभी तक सत्यापित नही किया जा सका है।
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