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“हाड़ी रानी”, जिसनें अपना शीष काट युद्ध मे जाते पति को निशानी के लिए भेज दिया

by bnnbharat.com
May 22, 2021
in क्या आप जानते हैं ?
“हाड़ी रानी”, जिसनें अपना शीष काट युद्ध मे जाते पति को निशानी के लिए भेज दिया
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राजस्थान कि एक ऐसी प्रेम कहानी कि जो खत्म होती हैं कर्तव्यपथ के लिये अपना बलिदान देकर।
राजस्थान की धरती पर हजारों वीर और वीरांगनाऐं  हुए है।  हमारे इतिहास मे एक ऐसी वीर बाला हु़ई जिसे आज हम सभी हाडी रानी के नाम से जानते है हाड़ी रानी द्वारा दीया गया बलिदान अपने आप में एक ऐसा बलिदान हैं जो पूरे विश्व के इतिहस में कहीं दूसरा नहीं मिलता। 

बात तब की है जब मेवाड़ के राजा महाराणा राज सिंह थे। इस समय दिल्ली पर औरेंगजेब का आधिपत्य था।

इधर जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह कि मृत्यु के बाद औरेंगजेब जोधपुर का राज्य उनके पुत्र अजीत सिंह से छीन कर मुग़ल साम्राज्य मे मिलाना चाहता था।

तब जोधपुर के वीर दुर्गादास राठौड़ अजीत सिंह को महाराणा के संरक्षण मे रखा जिससे औरेंगज़ेब तिलमिलाया और उसने महाराणा को अजीत सिह को सौपने के कई फरमान भेजे परंतु महाराणा ने एक भी नहीं सुनी। इतना ही नहीं किशनगढ़ कि राजकुमारी चारुमती से औरेंगजेब विवाह करना चाहता था परंतु राजकुमारी एक मुगल से विवाह नहीं  करना चाहती थी।  अतः उसने मेवाड के महाराणा को पत्र लिखा और उनसे विवाह करने का प्रस्ताव रखा और ये काहा कि या फिर तो राणासा उससे विवाह करके उसके धर्म कि रक्षा करे या फिर उसको मृत्यु का वरन  करने दे।

यह पत्र महराणा ने पुरी राज्यसभा मे सुनाया और निर्णय लिया की वो राजकुमारी से विवाह करेगे भले हि उन्हे बादशाह से युद्ध हि क्यो न करना पडे।  इसलिये उन्होने तुरंत सलुम्बर के राव रतन सिंह को युद्ध मे जाकर मुगल सेना को रोकने को कहा।

यही से शुरू होती है छात्राणि हाड़ी की रानी की कहानी।

सलुम्बर मेवाड का ही एक भाग था जिसके सामंत चुण्डावत सरदार राव रतन सिह थे। जब महारणा ने उन्हे युद्ध के लिये बुलया तब उनका विवाह हाडा राजपुत कन्या सेहल कंवर से हो चुका था जो हाडी रानी नाम से प्रसिद्ध है।

जब महाराणा राज सिंह का पत्र सलूम्बर पंहुचा तब सलूम्बर में खुशी का माहौल युद्ध की खबर सुनकर एकदम बदल गया और युद्ध की तैयारी होने लगी।

राव रतन सिंह अपनी सेना लेकर युद्ध के लिए प्रस्थान करने लगे तब हाड़ी रानी ने उनका कुमकुम तिलक करके युद्ध के लिए उनको युद्ध के लिए अलविदा किया।

जब राव युद्ध के लिए जा रहे थे तब वे झरोखे से रानी को देखने लगे और सोचने लगे की जिसके साथ उन्होंने कुछ दिन पहले विवाह किया था और जन्म जन्मो का साथ निभाने का वादा किया था उसका उनके युद्ध ने वीरगति को प्राप्त होने के बाद क्या होगा।

यह सोचकर रतन सिंह रानी की तरफ देखने लगे। तब रानी उन्हें उनका राजपूती धर्म याद करवाती है और उन्हें युद्ध में प्रस्थान करने का कहती है।

जब राव रतन सिंह युद्ध के लिए जा रहे होते है तब बार बार अपनी नवविवाहित पत्नी के बारे  सोचने लगे की अगर युद्ध में उनकी मृत्यु हो गई तो उनकी पत्नी का क्या होगा और वो अपना जीवन कैसे जियेगी इसलिए उन्होंने अपने  विश्वस्त सैनिक को बुलाया और यह कहा की वो जाकर रानी से  कहे की रावजी को उनकी एक निशानी चाहिए जिससे वे युद्ध में जाने  पहले देख सके और अपने मन को युद्ध में स्थिर कर सके।

सेवक यह सन्देश लेकर सलूम्बर पहुंचा तो उसने रानी की दसियों से रानी को यह सन्देश देने को कहा और कहाँ की वे इसका उत्तर जल्दी दे।
जब रानी ने यह सन्देश पढ़ा तब वे सोचने लगी की उनके पति उनके सौंदर्य के कारण अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे और अगर कोई वस्तु उसने निशानी के रूप में रतन सिंह को दी तो वो दुश्मन से लड़ने की बजाए उस वस्तु को ही देकते रहेंगे और तब वे अपने रजपूती धर्म की  पालना नहीं कर पाएगे।

इतना सोचके रानी ने दासी को थाल लाने के लिए कहा और सन्देश लिखते हुए कहाँ की इस थाल को राव जी के अलवा इसका कपडा कोई नहीं हटावे। इतना कहकर रानी ने तलवार ली और अपना सिर काट दिया  और  वो सर सीधा उस थाल में गिरा।  

सेवक उस थाल को लेकर  राव रतन सिंह के पास गया और उस थाल को देखकर राव की आखे फटी की फटी रह गयी और सेवक ने रानी की निशानी देते हुए कहाँ  रानी ने उनसे कहाँ  है की वे युद्ध में एक क्षत्रीय के  भांति अपने पुरे मनोयोग से युद्ध करे और शत्रु सेना का संहार करे।

रानी के इस बलिदान ने रतन सिंह को उनका कर्तव्य याद दिलवाया। तब राव रानी के बालो को दो हिस्सों में विभक्त करके अपने गले में माला बनाकर पहन लिया और युद्ध करने  लिए चल पड़े। उस युद्ध में रतन सिंह ने बहुत वीरता दिखाई। इस युद्ध में राव वीरगति को प्राप्त हुए और वो इस युद्ध को जीत गए और औरंजेब की सेना युद्धक्षेत्र से कायरो के भांति भाग गई।

जब महाराणा विवाह करके लौटे और उन्होंने इस वीर गाथा  सुना  तो उन्होंने यह वाक्य कहें

                          हेक सलूम्बर में दई , या सिर दीधा दोय।
                          राज दिया कहे राजसी , रण पलणो कद होय।

अर्थात मैने केवल एक सलूम्बर दिया था, जिसके बदले मै एक सिर लेने का अधिकारी था लेकिन इन लोगो ने तो मुझे दो सिर दिए है।  मै इस ऋण को पूरा मेवाड़ देकर भी नहीं चूका सकता।

राजस्थान पुलिस की एक महिला बटालियन का नाम हाड़ी रानी बटालियन रखा गया।

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