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ये आंसू बह जाने दो
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जितने दर्द हैं हिस्से में आज मुझे सह जाने दो,
मत पोंछो अब मेरे आंसू ये आंसू बह जाने दो।
घर छोड़ा था रोटी पाने
रोटी को मोहताज हुए,
बना बना कर दुनियां के घर
हम क्यों बेघर आज हुए।
मत रोको अब राह हमारी अपने घर को जाने दो,
मत पोंछो अब मेरे आंसू ये आंसू बह जाने दो।
हमने रोशन दान बनाए
ताकि सबको मिले हवा,
बाग बगीचे वृक्ष लगाए
ताकि सबको मिले दवा ।
देखरेख अब करते रहना इतना तो कह जाने दो,
मत पोंछो अब मेरे आंसू ये आंसू बह जाने दो।
दुनियां भर के गम हिस्से में
मेरे ही क्यों आ जाते हैं,
हमने खुशियां बांटी जग को
फिर हम आंसू क्यों पाते हैं।
ग़म है नातेदार हमारा मेरे पास ही आने दो,
मत पोंछो अब मेरे आंसू ये आंसू बह जाने दो।
जितने साधन हैं सड़कों पर
इनके ही श्रम से दौड़े हैं,
इनकी पीठ पर आज यहां क्यों
बरसाए जाते कोड़े हैं।
और लगाओ डण्डे कोड़े कसर नहीं रह जाने दो,
मत पोंछो अब मेरे आंसू ये आंसू बह जाने दो।
दुर्गम राह बड़े दुर्दिन हैं
घर है कितनी दूर,
इक दूजे से पूंछ रहे हैं
सबके सब मजदूर।
सपनों के सब महल रेत के आज यहीं ढह जाने दो,
मत पोंछो अब मेरे आंसू ये आंसू बह जाने दो।
सतीश श्रीवास्तव
जिला शिवपुरी
म.प्र.
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