राहुल मेहता
रमेश अपने दिव्यांगता के बावजूद अभिभावकों के उत्तम देखभाल की बदौलत तेजी से सीख रहा था. उसके व्यवहार में भी अपेक्षित सुधार हो रहा था. अचानक उसमें अनेक समस्याएं नजर आने लगी. कारण वह खुद नहीं, बल्कि उसकी मां की बीमारी थी. दिव्यांगजनों, विशेषकर बच्चों की प्रगति बहुत कुछ केयर गिवर्स या देखभाल कर्ता पर निर्भर करती है. लेकिन केयर गिवर्स की भी निम्मेदारियों के साथ अपनी जिन्दगी, समस्याएं और चुनौतिया हैं. कोरोना काल में केयर गिवर्स के लिए दिव्यांगजनों की देखभाल एक विशेष चुनौती है.
कुछ ख्वाब हमारे भी
बच्चे के कोख में सृजन के साथ ही अभिभावकों के सपने प्रारंभ हो जाते हैं. तरह-तरह की योजनायें बनने लगती हैं. परन्तु दिव्यांग बच्चे के जन्म के साथ या इसकी जानकारी के साथ ही सारे सपने धरासाई हो जाते हैं. योजनायें और इच्छाएं मिट जाती हैं. रह जाती है तो बस एक लम्बी जद्दोजहाद, संघर्ष और कुछ उम्मीदें. अभिभावाकों की, विशेषकर मां की पहचान, जिन्दगी और इच्छायें जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर रह जाती हैं. लेकिन जिम्मेदारी निभाने के लिए भी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से सबल होना जरुरी है. प्राथमिकता दिव्यांगजन हो सकते हैं, लेकिन उनकी और भी जिम्मेदारियां हैं, जो बिना अपने उचित देखभाल के संभव नहीं.
केयर गिवर्स, परिवार समाज और सरकार
केयर गिवर्स एक अदृश्य शक्ति हैं. वे तन-मन से दिन-रात देखभाल करते हैं, बदले में न कोई चाहत न राहत की उम्मीद. ताना और उलाहना अलग से. एक तो दिव्यांगजन के कारण चुनौती, दूसरी पारिवारिक-सामाजिक उपेक्षा और कभी-कभी लांछन की. उच्च आय वाले देशों में, केयर गिवर्स के साथ काम करने वाली एजेंसियों का एक संपन्न नेटवर्क है और केयर गिवर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकारी प्रावधान हैं. परन्तु भारत जैसे देशों में इनकी कोई पहचान नहीं है, इन्हें कोई स्पष्ट सरकारी मान्यता नहीं है और केयर गिवर्स की जरूरतों को पूरा करने वाला कोई संगठन नहीं है. सरकार भी ठेले वाले से लेकर बहुराष्ट्रीय कम्पनी के बारे में घोषणा करते समय इन्हें भूल जाती है. शायद पहचान के कमी के कारण.
भारतीय समाज में भी देखभाल को महिलाओं का और मुफ्त का काम समझा जाता है. इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वालों की कोई मान्यता नहीं है, न घर में, न समाज में और न ही सरकार द्वारा. उनकी चाहत भी ज्यादा नहीं. बस प्रयासों की थोड़ी सी स्वीकृति, कभी मुस्कान के रूप में तो कभी सहयोग के रूप में. इतनी जिम्मेदारी तो हम निभा ही सकते हैं. फिर यह अनदेखी क्यों?
केयर गिवर्स की भूमिका:
- केयर गिवर्स को अपने परिवारों की देखभाल करनी चाहिए, लेकिन उन्हें अपनी भलाई और खुशी की अवहेलना नहीं करनी चाहिए. केयर गिवर्स को अपनी भलाई और विश्राम के लिए गतिविधियां तय करनी चाहिए.
- केयर गिवर्स को दूसरों की देखभाल करने से पहले अपने स्वास्थ्य की देखभाल करने की आवश्यकता है ताकि वे अपना काम ठीक से कर सकें. दोस्तों और परिवार के साथ संपर्क में रहना लाभकारी होता है.
- केयर गिवर्स को घर से बाहर आने पर सामाजिक सुरक्षा मानदंडों और अन्य सुरक्षा उपायों जैसे कि हाथ धोना और मास्क का उपयोग आदि का पालन करना चाहिए.
- अपने समुदाय में प्रासंगिक संगठनों की पहचान करें जिनकी मदद आवश्यकता पड़ने पर लिया जा सकता है.
- तत्काल चिकित्सा सहायता की आवश्यकता के लिए संबंधित स्वास्थ्य सेवाओं और हेल्पलाइनों की टेलीफोन नंबर हमेशा अपने पास रखें.
- यदि सहायक उपकरणों जैसे व्हीलचेयर, वॉकिंग कैन, वॉकर, ट्रांसफर बोर्ड, व्हाइट कैन का उपयोग किया जाता है, तो उन्हें भी सेनिटाईज करते रहें.
- विकलांगता संगठनों के साथ नेटवर्क बनाये रखें. स्थानीय या ऑनलाइन समूह से जुड़े.
- चिकित्सकों के मार्गदर्शन के अनुसार दिव्यांगजनों दैनिक चिकित्सा सेवाएं और नियमित दवाएं प्रदान करें.
- दिव्यांगजनों के अस्पताल या और कहीं जाने पर विशेष रूप से सावधान और सतर्क रहें.
- दिव्यांगजनों के सामान्य स्वास्थ्य बीपी, मधुमेह या किसी भी अन्य बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर नजर रखें.
याद रखें पेड़ को भी राहगीरों को छांव प्रदान करने के लिए खुद हरा-भरा रहना जरुरी है.
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