नीता शेखर,
कहते हैं वक्त आपको बता देता है कि लोग क्या थे और आप क्या समझते थे. ज्यादा बोझ लेकर चलने वाले अक्सर डूब जाते हैं चाहे वह अभिमान का हो या सामान का.
आज समय बहुत परेशान था. उसे समझ नहीं आ रहा था क्या करें और ना करें उसके मन में बहुत बेचैनी थी. उसके घर के पास ही एक मंदिर था. जब उसका मन बहुत बेचैन हो गया तो वह मंदिर में जाकर बैठ गया. आज उसे रह रह कर अपनी हरकतें याद आ रही थी.
समय देखने में बहुत काफी खूबसूरत और हैंडसम था. उसके साथ ही पढ़ने लिखने में काफी तेज था. आईआईटी कानपुर से डिग्री लेकर उसने अच्छे कंपनी में नौकरी कर ली थी. उसको अपने आप पर बहुत घमंड था.
वह हमेशा सोचता मैं एक मॉडर्न लड़की से शादी करूंगा. उस चक्कर में ना जाने उस ने कितनी लड़कियों को छांट दिया था. अब उसके माता पिता भी परेशान हो उठे थे. तभी उनके यहां उनके दोस्त की बेटी का प्रस्ताव आया. उन्होंने झट से रिश्ता स्वीकार कर लिया. तारीख भी तय कर दी. उन्होंने समय को खबर कर दी. तुम्हारी शादी हमने तय कर दी है, तुम्हें कुछ पूछने की जरूरत नहीं है. समय ने किचकिचाते हुए आकर शादी कर ली.
शिखा बहुत ही प्यारी और संस्कारी लड़की थी. मॉडल ख्यालात की तो नहीं थी पर हर शिक्षा और संस्कार उसमें भरे हुए थे. उसके आते ही समय का घर खुशियों से भर गया. उसकी तरक्की पर तरक्की होती गई पर उसका व्यवहार शिखा के प्रति कुछ नहीं बदला था. वह हमेशा उस को अपमानित करते रहता था. उसे अपमानित करने का एक भी मौका जाने नहीं देता था. शिखा इतनी सीधी थी कि वह चुपचाप वहां से हट जाती थी पर अपने फर्ज के प्रति कभी पीछे नहीं रहती थी. समय का हर काम वह समय से कर दिया करती थी.
कुछ समय बाद समय के माता-पिता वहां आए. उन्होंने देखा समय शिखा को अपमानित करता था. यह देखकर उन्हें अच्छा नहीं लगा. उन्होंने समय को समझाने की बहुत कोशिश की पर समय समझना ही नहीं चाहता था. उन्होंने कई बार कहा, देख शिखा के आने से तेरी कितनी तरक्की हुई है पर समय इतना घमंडी हो गया था कि वह कहता सब मेरी मेहनत का फल है. उन्होंने कई बार उसको कहा तुम घर से निश्चिंत रहते हो इसलिए तुम फ्री होकर काम कर पाते हो पर समय को कोई असर नहीं होता वह तो बस अपने अहम में चूर रहता था.
एक दिन किसी बात पर समय ने शिखा को बहुत अपमानित किया. यह देखकर उसके माता-पिता को बहुत बुरा लगा. उन्होंने उसी समय निर्णय ले लिया जाने का और साथ में शिखा को भी ले गए. शिखा ने जाते समय से कहा मैंने आपका रोज का रूटीन बना दिया है, आप डायरी देख लेना. समय तो इतना घमंडी हो चुका था कि उसने कहा कि मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है.
अगले दिन सुबह जब ऑफिस गया तो लंच करने बैठा. उसमें वह खुशबू ही नहीं थी जो शिखा दिया करती थी. धीरे-धीरे अपनी गलतियां समझ में आ रही थी. ऑफिस में भी उसको अपने काम में मन नहीं लग रहा था, जिसकी वजह से उसे बॉस से डांट भी सुननी पड़ी थी.
एक दिन प्रेजेंटेशन के समय उसका प्रेजेंटेशन खराब हो गया. बॉस से डांट तो मिली ही बाकी सबके सामने उसे शर्मसार होना पड़ा. उसे अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए उसने ऑफिस से छुट्टी ले ली थी. घर पर भी उसका मन नहीं लग रहा था. इसलिए वह मंदिर में जाकर बैठ गया. वह इन सब बातों को सोच ही रहा था कि एक साधु बाबा ने उसे आकर पूछा क्या बात है बेटा तुम आज बहुत थके थके थके से लग रहे हो. उसने कुछ जवाब नहीं दिया. चुपचाप वहां से चल पड़ा.
इस तरह दो-तीन दिन बीत गये. एक दिन उसके घर पर डाकिया तलाक के कागज लेकर आ गया. पेपर देखते ही उसे ज़ोर का धक्का लगा. उसने अपनी मां को तुरंत फोन किया और पूछा. उसकी मां ने कहा शिखा दूसरी शादी कर रही है. इतना सुनते उसके होश उड़ गए.
समय उसी मंदिर में गया. जाते-जाते उसने साधु बाबा को खोजा और अपने मन की बात बताई. साधु बाबा ने कहा देखो बेटा अहम, अहंकार, घमंड तो व्यक्ति को डूबा देता है. इससे पहले कि बहुत देर हो जाए तुम अपना अहम किनारे रखते हुए जाकर उसे मना लो. कहीं ऐसा ना हो कि बहुत देर हो जाए. अब समय को भी समझ में आ गया था शिखा उसके लिए क्या थी? क्या मायने रखते थी? उसने पल भर को भी देर नहीं की. तुरंत गाड़ी लेकर शिखा को मनाने चल पड़ा.
इसलिए कहते हैं इंसान को घमंड नहीं रखना चाहिए उससे अपनी ही बर्बादी होती है.
व्यास जी कहते हैं “मुझे किसी की जरूरत नहीं है यह अहम है” और “मेरी सब को जरूरत है यह वहम है”.