रांची: झारखंड में मॉनसून ने दस्तक दे दी है. इसे देखते हुए बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ग्रामीण कृषि मौसम सेवा ने किसानों के लिए अगले 5 दिनों के लिए एडवाइजरी जारी की है. एडवाइजरी में आने वाले दिनों में होने वाली संभावित वर्षा के बाद मौसम अनुकूल होने पर विभिन्न फसल की बोआई का कार्य जल्द से जल्द समाप्त करने को कहा गया है. किसानों को धान फसल को छोड़कर अन्य सभी फसल की बोआई मेढ़ बनाकर ही करने की बात कही गयी है, ताकि मेढ़ के बीच बनी नालियों में वर्षा जल का संचयन हो सके. अत्यधिक वर्षा की स्थिति में भी पौधा जल जमाव के कारण गले नहीं. साथ ही, खेत की मिट्टी का क्षरण भी कम से कम हो. जिन खेतों में धन का रोपा करना हो, वैसे खेतों के मेढ़ को दुरूस्त करने और विभिन्न सब्जियों एवं फसलों के खेतों में जल निकास के लिए नालियां बना दे.
ऊपरी खेत में फसल की बोआई करें
एडवाइजरी में कहा गया है कि लगातार वर्षा के बाद मौसम अनुकूल होने पर ऊपरी खेत में विभिन्न फसल की बोआई जल्द से जल्द करें. ऊपरी खेत में अरहर, उरद, ज्वार, मड़ुआ (रागी), सोयाबीन, मूंगफली, मक्का एवं धान की सीधी बोआई करें. धान की सीधी बोआई के लिए कम समय में तैयार होने वाली किस्मों जैसे बिरसा विकास धान 110, बिरसा विकास धान 111, वंदना, ललाट, सहभागी, आईआर -64 (डीआरटी – 1) आदि में से किसी एक किस्म का चुनाव करें. फसल में खरपतवार नियंत्रित रखने के लिए बोआई के 2 से 3 दिनों के बाद खरपतवारनाशी दवा प्रेटीलाक्लोर का छिड़काव 4 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से करें.
मकई की इन किस्मों का चुनाव करें
मकई की मध्यम अवधि वाली किस्म जैसे पीएमएच – 3, मालवीय संकर मक्का, बीएयू एमएच -3, सुआन कम्पोजिट, एचक्यूपीएम -1, विनय आदि में से किसी एक किस्म का चुनाव सिर्फ हरा भुट्टा की खेती के लिए करें. मकई दाना के लिए कम अवधि वाली किस्म जैसे बिरसा मकई – 1, बिरसा विकास मकई – 2, प्रिया, बीएयूएमएच -5, विवेक संकर मक्का आदि में से किसी एक का चुनाव करें. फसल में खरपतवार नियंत्रित रखने के लिए बोआई के 2 से 3 दिनों बाद खरपतवारनाशी दवा अट्राजीन का छिड़काव 4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से करें.
अरहर की खेती भी कर सकते हैं
अरहर की उन्नत किस्मों बिरसा अरहर -1, बहार, उपास, आईपीए-203 आदि में से किसी एक किस्म का चुनाव करें. एक एकड़ में खेती करने के लिए 8 किलो बीज की आवश्यकता होती है. उरद की उन्नत किस्म बिरसा उरद -1, डब्लूबीयू – 109, पंत यू -31 आदि से किसी एक किस्म का चुनाव करें. एक एकड़ में खेती करने के लिए 12 किलो बीज की आवश्यकता होती है.
मड़ुआ और ज्वार की खेती लाभकारी
मड़ुआ (रागी) की उन्नत किस्म ए -404, बिरसा मड़ुआ -2, बिरसा मड़ुआ -3, जीपीयू – 28, जीपीयू – 67, भीएल – 149 आदि में से किसी एक किस्म का चुनाव करें. एक एकड़ में खेती करने के लिए करीब 4 किलो बीज की आवश्यकता होती है. ज्वार की उन्नत किस्म सीएसवी – 1616, सीएसवी – 17, सीएसएच – 16 आदि में से किसी एक किस्म का चुनाव करें. एक एकड़ में खेती करने के लिए 5 किलो बीज की आवश्यकता होती है. ज्वार की खेती करने से पशुओं के लिए भरपूर हरा चारा भी उपलब्ध होगा.
सोयाबीन और मूंगफली लगायें
सोयाबीन की उन्नत किस्म बिरसा सोयाबीन -1, बिरसा सफ़ेद सोयाबीन -2, आरएयूएस -5, आरकेएस -18 आदि में से किसी एक किस्म का चुनाव करें. एक एकड़ में खेती करने के लिए 30 से 32 किलो बीज की आवश्यकता होती है.
मूंगफली की उन्नत किस्म गिरनार -3, बिरसा मूंगफली -3, बिरसा मूंगफली -4, बिरसा बोल्ड में से किसी एक किस्म का चुनाव करें. एक एकड़ में खेती करने के लिए बिरसा बोल्ड किस्म का 5 किलो बीज तथा अन्य किस्मों का 30-35 किलो बीज की आवश्यकता होती है.
किसानों को सामान्य निर्देश
ऊपरी खेतों में वर्षा की अनियमितता को देखते हुए कम अवधि एवं कम पानी की आवश्यकता वाली फसल जैसे अरहर, उरद, सोयाबीन, मड़ुआ, गुन्दली, ज्वार, आदि की खेती को प्राथमिकता दें. जो किसान ऊपरी खेतों में धान, मकई या मूंगफली की खेती करना चाहते है, वे अंतरवर्तीय खेती करें. क्योंकि अनियमित वर्षा की स्थिति में यदि एक फसल मारी जाती है, तो दूसरी फसल से उपज मिल जाती है. अनुकूल वर्षा होने पर दोनों ही फसल की अच्छी उपज मिल जाती है. साथ ही साथ खेती की सघनता भी बढती हैं. प्रदेश के लिए अंतरवर्तीय खेती में अरहर+मूंगफली/धान/उरद हेतु दो पंक्ति अरहर (75 से.मी. पंक्ति से पंक्ति तथा 20 से 25 से. मी. पौधा से पौधा की दूरी पर) के बीच दो पंक्ति मूंगफली या धान या उरद की बोआई करें. अरहर +मकई हेतु एक पंक्ति अरहर तथा एक पंक्ति मकई (75 से. मी. पंक्ति से पंक्ति तथा 20 से 25 से. मी. पौधा से पौधा की दूरी पर) की बोआई करें. मध्यम जमीन में धान, मकई, मूंगफली या सोयाबीन की सीधी बोआई कम या मध्यम अवधि वाली प्रजाति के साथ करें.
धान का बिचड़ा तैयार करें
धान का बिचड़ा तैयार करने के लिए बीजस्थली (नर्सरी) की तैयार कर 3-4 दिनों के अंतराल पर क्रमशः तीन – चार किस्तों में बीज बोएं, क्योंकि रोपा के समय कादो किया जाता है और ऊंची नीची जमीन रहने के कारण अलग –अलग खेतों में अलग – अलग समय पर पानी जमा होता है. रोपा अवधि के दौरान उपयुक्त बिचड़ा उपलब्ध नहीं हो पाता है. एक एकड़ में रोपा के लिए 16 से 18 किलो बीज तथा 10 डिसमिल जमीन (बीजस्थली) की आवश्यकता होती है. बीजस्थली में 100 किलो कम्पोस्ट, 2.5 किलो यूरिया, 6 किलो एसएसपी तथा 1.5 किलो पोटाश प्रति 100 वर्ग मीटर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें. निचली जमीन में रोपा के लिए लंबी अवधि वाले किस्म का चुनाव दोन -1 खेत के लिए तथा मध्यम अवधि वाले किस्म का चुनाव दोन -2 खेतों के लिए करें.