संजीत मिश्रा,
चतरा: चतरा जिले के सभी लघु वन पदार्थ प्रक्षेत्र में मजदूरों का हक छीनकर ठीकेदार और अधिकारी मालामाल हो रहे है. वही विभाग के आला अधिकारी बेखबर व कुम्भकर्णीय नींद में सो रही हैं. लघु वन पदार्थ वन प्रक्षेत्र प्रतापपुर तेंदू पत्ता तोड़ाई कार्य लगभग समाप्ति के कगार पर है पर चतरा जिले के किसी भी लघु वन पदार्थ प्रक्षेत्र में निगम के अधिकारी अब तक नहीं आए है. इससे साफ जाहिर है कि सारे कार्यो की निष्पादन गलत तरीके से हजारीबाग या अपने घर पर ही बैठकर निपटारा करने का काम किया गया है.
इस बात का खुलासा तब हुआ जब रेंजर रमाकांत राकेश से बात हुई. उन्होंने बताया कि मैं इस वर्ष चतरा नहीं आ सका हूं. अगर तेंदू पत्ता तोड़ने वाले मजदूर नगद राशि नहीं लेते है तो उन्हें बैंक के माध्यम से 121/रुपये की दर से जरूर मिलेगा. सभी मजदूर पत्ता देकर निश्चिंत हो जाए एक माह के भीतर बैंक खाता के माध्यम से 121 रुपये के दर राशि भेज दी जाएगी. हालांकि पत्ता देने वाले मजदूरों की किसी भी प्रकार का लिखित प्रमाण नहीं दिया जाएगा, उन्हें पत्ता देकर विभाग पर विश्वास करना होगा.अगर मजदूर नगद राशि लेंगे तो सौ रुपया देना हमारी भी मजबूरी है.
दरअसल मामला यह है कि जिस लघु पदार्थ वन क्षेत्र का टेंडर दिया जाता है उस वन क्षेत्र में निगम के अधिकारियों के द्वारा मजदूरों से तेंदू पत्ता तोड़वाने का कार्य किया जाना है और मजदूरों से पत्ता की खरीदारी कर उनके जॉब कार्ड में खरीदे गए पत्तो का विवरण भरकर बैंक खाता के माध्यम से 121/ रुपये के दर से राशि दी जानी है पर स्थिति इससे उलट है. निगम के अधिकारी ना ही पत्ता तुड़वाने आते है और ना ही बैंक खाता के माध्यम से मजदूरों का भुगतान किया जाता है. बीड़ी पत्ता का तोड़ाई कार्य से लेकर खरीदारी कार्य टेंडर लिए गए ठीकेदार के द्वारा किया जाता है. मजदूर बेबस और मजबूर होकर ठीकेदार जिस दर पर खरीदारी करता है मजबूरीवश उसी दर में पत्तो को बेचना पड़ता है. इस पूरे खेल में ठीकेदार और निगम के अधिकारी मिली भगत कर 21/ रुपये मजदूरो की राशि डकार रहे है.
इसके अलावे बिना टेंडर किए गए जंगलों से तेंदू पत्ता तोड़वाने का कार्य किया गया है जिससे सरकार का लाखों रुपये का राजस्व की क्षति हुई है. मजदूरों को बैंक खाते में 121 रुपये के दर से भुगतान करना है पर मजदूरों को 121 रुपये के जगह पर नगद सौ रुपए के दर से भुगतान किया गया है. हालांकि कुछ मजदूरों का कहना है कि एक सौ दस रुपये के दर से एक दो दिन ठीकेदार के द्वारा भुगतान किया गया है.
गौरतलब है कि चतरा में तेंदू पत्ता बड़े पैमाने पर तोड़े जाते हैं. नियमानुसार इस भुगतान प्रक्रिया में मुंसी द्वारा मजदूरों के जॉब कार्ड में काम के अनुसार इंट्री की जानी है और बैंक खाते में राशि भेजना है, जबकि वस्तुस्थिति इससे बिल्कुल उलट है. आश्चर्य की बात यह भी सामने आई है की मजदूरों का जॉब कार्ड आज तक बना ही नहीं है जिसे रेंजर रमाकांत राकेश ने भी स्वीकारा है. करोड़ों रु के इस पुरे खेल में पत्ता ठेकेदार से लेकर रेंजर, नक्सली और हजारीबाग प्रमण्डल तथा रांची में बैठे बड़े पदाधिकारियो की भी मिलीभगत की बात सामने आी है.
आपको यह भी जानकर आश्चर्य होगा की हजारीबाग के प्रमंडलीय अधिकारी को इसकी जानकारी दी गई तो उन्होंने सफेद झूठ बोलते हुए कहा कि निगम के रेंजर चतरा बराबर जाते है जबकि निगम रेंजर ने खुद स्वीकारा है कि इस वर्ष चतरा नहीं जा सका हूं !आखिर क्या वजह है कि प्रमंडलीय अधिकारी को झूठ बोलना पड़ रहा है. यह भी जांच का विषय है.