नई दिल्ली: शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल विस्टा परियोजना जो की 20 हजार करोड़ रुपये की है उस पर पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि अगर काम कानून के तहत किया जा रहा हो तो क्या अथॉरिटी को काम करने से रोका जा सकता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर यह भी कहा कि अगर सरकार इस परियोजना को आगे बढ़ाना चाहती है तो यह उसका अपना जोखिम होगा.
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता राजीव सुरी और अन्य के वकील ने कहा, बृहस्पतिवार को पर्यावरण क्लीयरेंस कमेटी ने कुछ आदेश पारित किए हैं. उन्हें इन आदेशों को लेकर आपत्ति है. वह चाहते हैं कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता अदालत को आश्वासन दे कि फिलहाल काम नहीं होगा. उन्होंने कहा, सरकार को कागजी कार्रवाई करने की अनुमति दी जा सकती है लेकिन ग्राउंड वर्क की छूट नहीं दी जाए. इस पर पीठ ने कहा, अगर काम कानून के तहत हो रहा हो तो क्या अदालत किसी अथॉरिटी को काम करने से रोक सकती है.
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, सरकार यह आश्वासन नहीं दे सकती कि ग्राउंड वर्क नहीं होगा. अदालत यह जरूर कह सकती है कि जो कुछ किया जाएगा वह अंतत: अदालत के अंतिम आदेश पर निर्भर होगा. उन्होंने कहा, यह बड़ी परियोजना है. सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर बंधी है. बहरहाल पीठ ने सरकार को याचिकाकर्ता की संशोधित याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. 7 जुलाई को पीठ अब इस मामले में सुनवाई करेगी.
आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने बीती 20 मार्च को 20 हजार करोड़ रुपए की सेंट्रल विस्टा परियोजना के लिए लैंड यूज में बदलाव को लेकर अधिसूचना जारी की थी यह अधिसूचना मध्य दिल्ली में 86 एकड़ भूमि से संबंधित है जिसमें राष्ट्रपति भवन और संसद भवन जैसी इमारतें शामिल हैं. इस परियोजना के तहत संसद की नई इमारत बनाने की भी बात है.