रांची: बीजेपी विधायक दल के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को गुरुवार को कहा है कि निर्माण परियोजनाओं एवं सरकार से जुड़े अन्य कार्य जो संपादित हो चुके हैं. उनके बकाया राशि पर रोक लगाने के निर्णय के संबंध में बीते 3 मई को पत्र लिखकर ध्यान आकृष्ट कराया था.
इस मामले में तब से लेकर आज भी परिस्थितियां जस-की-तस बनी हुई हैं. सरकारी कार्यों में इनका महत्वपूर्ण योगदान है और जिसके भरोसे व दम पर सरकार की रोजमर्रा की व्यवस्था चल रही है.
ऐसे लोगों का भुगतान लंबित होना दुख:द और अनुचित है. इससे राज्य में विकास की संरचना प्रभावित होना स्वाभाविक है. वहीं भुगतान लंबित रहने से संवेदकों की स्थिति भी दयनीय हो चली है. स्वाभाविक है किसी भी सरकारी कार्य करने वाले लोगों का भुगतान जब नहीं होगा तो उनके अधीनस्थ कामगारों का भुगतान कैसे होगा, उनके परिवारों की परवरिश कहां से होगी? वेतन नहीं मिलने के कारण इनके कामगारों के समक्ष भूखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है.
बाबूलाल मरांडी ने कहा कि झारखंड में संवेदकों की सिक्योरिटी राशि, जो सरकार के पास जमा है वह भी उन्हें वापस नहीं मिल पा रहा है. और तो और पुराने कार्य करके ठेकेदार बैठे हुए हैं, उनका भुगतान रोकने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है.
वैसी योजनाएं जो पूरी हो चुकी हो या फिर संपन्न कार्य के बराबर उतनी राशि का भुगतान रोकना उचित नहीं है. ऐसा करके राज्य को गंभीर संकट और अव्यवस्था की ओर राज्य को पहुंचाया जा रहा है.
कह सकते हैं कि झारखंड सरकार कछुए की गति से चल रही है. हर काम दूसरे राज्यों में पहले हो जाता है तब यहां की सरकार की नींद खुलती है.
ठीक है, नए काम व परियोजनाएं शुरू कराने में सरकार सक्षम नहीं है, इसमें विलंब की बात समझ में आती है परंतु जिनका सिक्योरिटी मनी जमा है, जिनका पुराना काम पूरा हो चुका है उनको भुगतान करने में आखिर सरकार को क्या परेशानी है? यह समझ से परे है.
सरकार को इन संवेदकों की परेशानी की तनिक भी सुध नहीं है. सरकार इस मामले में पूरी तरह असंवेदनशील बनी हुई है. लॉकडाउन से उत्पन्न परेशानी सभी के लिए समान है.
कई संवेदक पूंजी उधार लेकर परियोजनाओं में लगाते हैं. उन पर बैंक का दबाव बढ़ रहा है. उनकी पूंजी अकारण अगर इतने दिनों तक फंसी रहेंगी तो इनकी स्थिति क्या हो रही होगा, सहज अंदाजा लगाया जा सकता है.
उन्हें ब्याज के रूप में मोटी रकम का भुगतान करना पड़ रहा है सो अलग. मेरा मानना है कि सरकार को ऐसे आदेश निकालने के पहले इसके सभी पहलुओं पर विचार अवश्य कर लेनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि संवेदकों की सिक्योरिटी राशि और इनके द्वारा खर्च की गई राशि पर इस प्रकार रोक उचित निर्णय नहीं है. इसका अविलंब भुगतान होना चाहिए. इनकी आजीविका का यही एकमात्र साधन होता है.