कर्नाटक में पिछले तीन हफ्तों से चला आ रहा सियासी नाटक मंगलवार शाम थम गया. एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस सरकार अल्पमत के चलते फ्लोर टेस्ट में गिर गई. कांग्रेस-जेडीएस के पक्ष में 99 और बीजेपी के पक्ष में 105 वोट पड़े. इस तरह 14 महीने तक चली गठबंधन सरकार को सत्ता से बाहर होना पड़ा. एचडी कुमारस्वामी के साथ जो हुआ, वैसा ही कभी उनकी वजह से कांग्रेस और बीजेपी सरकारों के साथ हुआ था.
2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कुल 224 सीटों में से बीजेपी को 79, कांग्रेस को 65, जेडीएस को 58 और अन्य को 23 सीटें मिली थी. यानी 2004 में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस के बीच समझौता हुआ और कांग्रेस के धरमसिंह 28 मई 2004 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने.
यह सरकार बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और पौने दो साल के बाद कुमारस्वामी ने अपने विधायकों के साथ समर्थन वापस ले लिया और धरमसिंह की सरकार को गिरा दिया. उस वक्त भी ऐसी ही सियासी खींचतान देखने को मिली थी जैसा पिछले दो हफ्तों में बेंगलुरु में घटा.
धरमसिंह की सरकार गिरने बाद कुमारस्वामी ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया. इसी के चलते राज्यपाल ने जेडीएस को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया. कुमारस्वामी 2006 में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने. इस दौरान बीजेपी-जेडीएस के बीच सरकार बनाने से पहले सहमति बनी थी कि दोनों पार्टियों के नेता बारी-बारी से और बराबर-बराबर समय के लिए मुख्यमंत्री बनेंगे.
कुमारस्वामी ने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया और जब बीजेपी को सत्ता सौंपने का वक्त आया तो उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. यही नहीं कुमारस्वामी ने 10 नवंबर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद राज्यपाल को कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा.
कुमारस्वामी के इस्तीफा के बाद दो दिन तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा और फिर बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. 12 नंबवर 2007 को बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी, जिसे कुमारस्वामी ने बाहर से समर्थन दिया. हालांकि, सात दिन के बाद ही कुमारस्वामी ने बीजेपी सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके चलते येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद गंवाना पड़ा.
कर्नाटक की राजनीति ने ऐसी करवट ली कि कुमारस्वामी ने जो बोया वही काटा. 2018 में कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. राज्यपाल ने बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने के लिए निमंत्रण दिया और येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सके.
इसके बाद कुमारस्वामी के नेतृत्व में जेडीएस-कांग्रेस ने मिलकर सरकार बना ली. लेकिन 14 महीने के कार्यकाल के बाद कांग्रेस के 13 और जेडीएस के 3 विधायकों ने बगावत कर दी और विधायक पद से इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कुमारस्वामी विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर सके. यानी उन्हें भी वैसी ही राजनीतिक परिस्थिति का सामना करना पड़ा, जैसे कभी धरमसिंह और येदियुरप्पा को करना पड़ा था. इस तरह कांग्रेस और बीजेपी दोनों का हिसाब बराबर हो गया.