शशिभूषण दूबे कंचनीय,
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रदेश सरकार ने जोरदार पैरवी के लिए अपर महाधिवक्ता के बीच विभागो का बंटवारा कर दिया है. और मुख्य स्थायी अधिवक्ता के सहयोग के लिए अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ताओं को लगा दिया गया है.
पिछले एक साल से इसकी कवायद चल रही थी. अब प्रदेश के विधि एवं न्याय विभाग ने अधिसूचना जारी की है,जिसमे एक न्यायमूर्ति को अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता के रूप मे मुख्य स्थायी अधिवक्ता से संबद्ध कर दिया. न्यायमूर्ति पहले अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता थे. वर्षो पहले एक ने अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता पद से त्याग पत्र दे दिया था,एक हट गये थे, अब अपर शासकीय अधिवक्ता प्रथम है,पद पर न होने के बावजूद इनको भी संबद्ध किया गया है.
न्याय विभाग की कार्य पद्धति को लेकर किरकिरी हो रही है. सिविल मामलों में अपर महाधिवक्ता को विभाग बांटे गये हैं. वे आवंटित विभागो के मुकदमों मे ही बहस कर सकेंगे. अभी तक किसी भी विभाग की तरफ से बहस कर सकते थे. हालांकि महाधिवक्ता को जरूरत के हिसाब से किसी को कोई जिम्मेदारी सौंपने का अधिकार दिया गया है.
इससे पहले भी न्याय विभाग की लापरवाही उजागर हो चुकी है. सैकडोंअनुभव योग्यता न रखने वाले वकीलों को राज्य विधि अधिकारी नियुक्त कर दिया गया बाद में या हटा दिया गया या तो ज्वाइन ही नहीं कराया गया. अभी हाल में दो अनुभव योग्यता न रखने वाले वकीलों को राज्य विधि अधिकारी नियुक्त किया गया, और शासन ने बिना नियमावली संशोधित किये मनमाने तौर पर अनुभव योग्यता की छूट देते हुए ज्वाइन कराने का आदेश जारी किया गया.
यह पहली बार हुआ जब अयोग्य की नियुक्ति कर योग्यता मानक में ढील दी गयी. अब अपर महाधिवक्ता को विभागों तक सीमित कर एक अच्छा प्रयोग किया गया है. किन्तु वकीलों की संबद्धता करने में घिर लापरवाही एक बार फिर उजागर हुई है. इससे शासन की कार्य प्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं.