रंजीत कुमार,
रांची: आरक्षण मामले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने उच्च न्यायालय के आदेश को छुपाने का काम किया. इसका खुलासा उन दस्तावेजों से हुआ है. जिसमें उच्च न्यायालय ने साफ तौर पर लिखा है कि राज्य में 50 प्रतिशत आरक्षण लागू करें और शेष 23 प्रतिशत को एडहॉक बेसिस पर इस्तेमाल करें क्योंकि, आरक्षण मामले पर फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई होनी है.
यह फैसला उच्च न्यायालय के जजों की पांच सदस्यीय पीठ ने दी थी. जबकि, बाबूलाल मरांडी ने 23 प्रतिशत आरक्षण वाली बिंदु को छुपाकर कैबिनेट में लाये और आनन-फानन में राज्य् में 50 प्रतिशत आरक्षण लागू कर दिया गया.
नतीजा यह हुआ कि पूरा झारखंड आरक्षण की आग में जल गया.
राज्य के पूर्व मंत्री लालचंद महतो ने इसे असंवैधानिक बताया है. उन्होंमने बाबूलाल मरांडी पर आरक्षण मामले को लेकर झारखंड की जनता को ठगने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि बाबूलाल मरांडी ने पिछड़ों को आरक्षण बढ़ाने का काम नहीं किया.
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उन्होंने कहा कि आरक्षण मामले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के पास कई बार गये. धरन प्रदर्शन भी किया पर वो बार-बार इस मामले को टालते रहे.
भाजपा की नीति शुरू से ही आरक्षण विरोधी रही है. उन्होंंने वर्तमान सरकार हेमंत सोरेन से भी आरक्षण मुद्दे पर विचार करने की मांग की है.
आगे उन्होंने कहा कि आरक्षण के मुद्दे पर हेमंत सोरेन सरकार ने भी जनता के साथ छल किया है, वे चुनाव के समय अपने हर रैली में कहते थे की आरक्षण के मुद्दे पर फिरसे निर्णय लिया जाएगा लेकिन सरकार बनने के बाद से 7 महीना बीतने को है अब तक सरकार ने इस ओर कोई भी कदम नहीं उठाई है.
पांच सदस्यीय उप समिति ने दी थी रिपोर्ट:
अन्य राज्यों की आरक्षण नीति को देख झारखंड के लिए आरक्षण नीति से संबंधित प्रतिवेदन मंत्रिमंडल उप समिति ने तैयार किया था. इस उप समिति की अगुवायी अर्जुन मुंडा कर रहे थे. इस कमिटी के अध्यक्ष मुंडा थे. इसके अलावा पीएन सिंह, लालचंद महतो, सुदेश महतो व रामजी लाल सारडा शामिल थे