बोकरो: बोकारो जिला के पेटरवार प्रखंड का जाराडीह गांव आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत की एक बानगी है. इस गांव के घर-घर में गायें हैं. घर परिवार में खाने पीने के बाद बचे हुए दूध को ग्रामीण झारखंड राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ लिमिटेड (मेधा) को बेच देते हैं.
मेधा से उन्हें प्रत्येक 10 दिनों के बाद पैसे मिल जाया करते हैं. ग्रामीणों ने गव्य विकास विभाग से सब्सिडी पर गाय ले रखा है. दूध बेचकर खुशहाल जिंदगी बिता रहे हैं.
जाराडीह गांव के युवा योगेंद्र कुमार महतो ने बताया कि अब तो गव्य विकास विभाग से बीपीएल परिवारों को 90 फीसदी सब्सिडी पर गाय मिल जाती है. इस गांव के घर घर में गाय हैं.
योगेंद्र ने बताया कि पशुधन को लेकर ग्रामीणों के उत्साह को देखते हुए मेधा ने गांव में है दुग्ध संग्रहण एवं शीतलक केंद्र खोल दिया. अब प्रतिदिन मेधा के टैंकर इस केंद्र से दो से ढ़ाई हजार लीटर दूध रांची ले जाते हैं. योगेंद्र ने बताया, अब तो आसपास के गांव के ग्रामीण भी इसके अंदर में दूध जमा करवाते हैं.
दुग्ध संग्रहण केंद्र के दूध मित्र अखिलेश्वर महतो ने बताया, केवल जाराडीह गांव से ही सुबह-शाम मिलाकर लगभग एक हजार लीटर के करीब दूध जमा हो जाता है. केंद्र में दूध को ठंडा रखने की व्यवस्था की गई है, ताकि दूध खराब ना हो जाए.
जाराडीह के ग्रामीण गर्जन महतो ने कहा, खाने पीने के बाद जिस दिन जितना दूध बन जाता है दूध संग्रहण केंद्र में जमा करा देते हैं. गांव के सभी लोग यहां दूध जमा करा कर पैसे कमा रहे हैं. कुछ पैसे आ जाने से घर परिवार चलाने में काफी सहूलियत होती है.
बद्रीनाथ महतो ने कहा कि उन्होंने सामान्य कोटा से 50 फ़ीसदी सब्सिडी पर गाय ली थी. बचे हुए दूध मेधा में दे देते हैं. उन्होंने कहा कि प्रत्येक 10 दिन पर पैसे उनके खाते में आ जाते हैं. पैसे को लेकर आज तक कभी कोई समस्या नहीं हुई. उन्होंने कहा, दूध की आमदनी से परिवार के पालन पोषण में काफी मदद मिल रही है.