★★ 30 जुलाई 2020 गुरुवार को रात्रि 01:17 से रात्रि 11:49 तक (यानी 30 जुलाई गुरुवार को पूरा दिन) एकादशी है .
★★ 30 जुलाई गुरुवार को एकादशी का व्रत (उपवास) रखें .
◆ एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है .
◆ जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है .
◆ जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है .
◆ एकादशी करनेवालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं .इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है .
◆ धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है .
◆ कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है .
◆ परमात्मा की प्रसन्नता प्राप्त होती है .पूर्वकाल में राजा नहुष, अंबरीष, राजा गाधी आदि जिन्होंने भी एकादशी का व्रत किया, उन्हें इस पृथ्वी का समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हुआ .भगवान शिवजी ने नारद से कहा है : एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमे कोई संदेह नहीं है . एकादशी के दिन किये हुए व्रत, गौ-दान आदि का अनंत गुना पुण्य होता है .
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★★ पुत्रदा एकादशी★★
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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी माना जाता है और इस साल यह शुभ तिथि 30 अगस्त यानी गुरूवार को पड़ रही है. इस दिन संतान की दीर्घायु की कामना के लिए पति और पत्नी दोनों व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की आराधना करते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से श्रीहरि और माता लक्ष्मी तो प्रसन्न होती ही हैं, साथ में सावन के महीने में होने वाली पूजा से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं. इस दिन भगवान शिव का अभिषेक करने का भी विधान है.
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◆◆ आइए जानते हैं इस व्रत की पूजाविधि और पौराणिक महत्व… :-
◆ शास्त्रों में बताया गया है कि जोड़े से इस एकादशी का व्रत करने से पुत्र की दीर्घायु प्राप्त होती है और जो दंपती संतान सुख से वंचित हैं, उनके आंगन में भी किलकारी गूंजने लगती है. यह एकादशी सभी पापों को नाश करने वाली होती है. धार्मिक मान्यता है कि इस एकादशी की कथा पढ़ने और सुनने से कई गायों के दान के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है. इस व्रत में आप भगवान विष्णु और पीपल की पूजा करने का शास्त्रों में विधान है.
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◆◆ क्या करें और क्या नहीं :-
◆ जो भी जातक पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है, उसे सदाचार का पालन करना होता है. इस व्रत में वैष्णव धर्म का पालन करना होता है. इस दिन प्याज, बैंगन, पान-सुपारी, लहसुन, मांस-मदिरा आदि चीजों से दूर रहना चाहिए. दशमी तिथि से पति-पत्नी को भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और मूली, मसूर दाल से परहेज रखना चाहिए. व्रत में नमक से दूर रहना चाहिए. साथ ही कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए.
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◆◆ पुत्रदा एकादशी की पूजाविधि :-
◆ पति-पत्नी दोनों सुबह स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें. घर या मंदिर में भगवान का एक साथ पूजन करें. पूजन के दौरान सबसे पहले भगवान के विग्रह को गंगाजल से स्नान कराएं या उस पर गंगाजल के छींटे दें, साथ ही पवित्रीकरण का मंत्र बोलते हुए खुद पर भी गंगाजल छिड़कें. इसके बाद दीप-धूप जलाएं और भगवान को टीका लगाते हुए अक्षत अर्पित करें. फिर भोग लगाएं. व्रत कथा का पाठ करें और विष्णु-लक्ष्मीजी की आरती करें. पुत्र प्राप्ति के लिए गरीबों में दान जरूर करें. भगवान से इस व्रत के सफलतापूर्वक पूरा होने के प्रार्थना करें.
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◆◆ पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा :-
◆ भद्रावती नगर में राजा सुकेतुमान व उनकी पत्नी शैव्या निवास करते थे. इस दंपत्ति के कोई संतान नहीं थी. दोनों को दिन-रात यह चिंता सताती थी कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हें अग्नि कौन देगा. इसी चिंता में दोनों दिन-रात दुखी रहते थे. एक दिन राजा दुखी मन से वन में गए. राजा को वन में प्यास लगी. कुछ दूर भटकने पर उन्हें एक सरोवर दिखा. सरोवर के पास पहुंचने पर राजा ने देखा कि वहां कुछ दूरी पर ऋषियों के आश्रम बने हुए हैं. वहां बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे. राजा ने सरोवर से पानी पीया. प्यास बुझाकर राजा ने सभी मुनियों को प्रणाम किया. ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया और बोले कि हम आपसे प्रसन्न हैं. राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. तब उनमें से एक मुनि ने कहा कि वह विश्वदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आए हैं. राजा को ऋषियों ने बताया कि आज पुत्रदा एकादशी है, जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उसे संतान की प्राप्ति होती है. राजा ने मुनियों के कहे अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत आरंभ किया और अगले दिन द्वादशी को पारण (व्रत खोला) किया. व्रत के प्रभाव स्वरूप कुछ समय के पश्चात रानी गर्भवती हुईं और इन्हें योग्य संतान की प्राप्ति हुयी.
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◆◆ पुत्रदा एकादशी के दिन इस मंत्र का करें जप :-
◆ पुत्रदा एकादशी पर भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जप करने से आपकी मनोकामना पूर्ण होती है.
◆ “ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते , देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम् गता”
◆ “ॐ क्लीं कृष्णाय नमः”