रांचीः कोरोना महामारी के संकटकालीन समय में देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो आत्मनिर्भर भारत का आह्वान किया है, उसमें झारखंड के आदिम जनजाति समुदाय भी अब शामिल हो गए हैं. अंतराष्ट्रीय बाज़ार के ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म पर अपना डंका बजाकर आत्मनिर्भर भारत के सपनों को पंख दे रहे हैं.
सरायकेला – खरसवां जिले का नीमडीह प्रखंड राज्य का अति पिछड़ा क्षेत्र है. जहां न कोई उद्योग है और न ही बाजार. जंगल से आच्छादित प्राकृतिक सौंदर्य ही यहां की पहचान है. पर्वत शृंखला के बीच और तलहटी में स्थित भंगाट, माकुला, बुरुडीह, बाड़ेदा, बिंदुबेड़ा व तेंतलो गांव विलुप्तप्राय आदिम जनजातियों ( सबर ) बहुल इलाके हैं.
इन जनजातियों का उल्लेख इतिहास के पन्नों में भी ”वीर योद्धा समुदाय” के रुप में अंकित है. जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से लोहा लेते हुए कभी गुलामी स्वीकार नहीं किया. सबर जाति का इतिहास ”रामायण काल” से ही प्राप्त होता है. लोककथा की मान्यता के अनुसार भगवान राम को जंगल के मीठे और जुठे बेर खिलाने वाली ”शबरी” इसी जनजाति की मानी जाती हैं. लेकिन, वर्तमान में यह प्राचीन जनजातियों की स्थिति अत्यंत दयनीय है. इनलोगों का आजीविका का मुख्य साधन जंगल से सूखी लकड़ी चुनना, सखुआ पत्ते व घास व बांस से निर्मित झाड़ु बेचकर आर्थिक रोजगार करना है. इनलोगों का जीवन स्तर काफी निम्नश्रेणी का है.
आदिम जनजातियों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार ने विभिन्न योजनाएं शुरू की. इसी कड़ी में स्वयंसेवी संस्था अम्बालिका द्वारा 1999 में नीमडीह के बामनी केतुंगा उच्च विद्यालय परिसर के पीछे एक भवन में सबर महिला-पुरुषों के लिए बांस, खजुर पत्ता व घास से विभिन्न प्रकार के घर उपयोगी व सौंदर्य साधन हेतु वस्तुएं निर्माण के लिए प्रशिक्षण देने का कार्य शुरू किया.
आदिम जनजाति के लोगों को प्रशिक्षण के माध्यम से स्वरोजगार से जोड़ने का काम तत्कालीन आईएएस अधिकारी सुचित्रा सिन्हा के पहल व प्रयास से हुआ. 14 जुलाई को सबर कारीगरों द्वारा निर्मित वस्तुएं अंतराष्ट्रीय बाजार के ऑनलाइन शॉपिंग ” अमेजन ” ने अधिकृत कर बिक्री शुरू हुआ. अमेजन पर इनके हाथों के बनाए सामग्रियों की खूब बिक्री हो रही हैं.
पूर्व आईएएस अधिकारी सुचित्रा सिन्हा के प्रयास से मिला अंतराष्ट्रीय बाजार :
पूर्व आईएएस अधिकारी सुचित्रा सिन्हा सबर जातियों के उन्नयन के लिए लगातार 23 वर्षों से प्रयास करती रहीं. इनके द्वारा निर्मित सामग्री देश के विभिन्न हस्तशिल्प बाजार में विक्री होती थी. लेकिन, सिन्हा का सपना था कि इनके बनाए गुणवत्ता पूर्ण सामग्रियों को अंतराष्ट्रीय बाजार तक पहुंचाना. अथक प्रयास व संपर्क सूत्रों के माध्यम से अंततः वह अपनी योजना में सफल हुई. अंतराष्ट्रीय बाजार में झारखंड के नीमडीह जैसे अति पिछड़ा हुआ क्षेत्र के हस्तशिल्प निर्मित सामग्रियों को स्थान मिला. सुचित्रा सिन्हा कहती हैं कि इससे सबर समुदाय का जीवन स्तर ऊंचा उठाने में काफी सहायक सिद्ध होगा.
उचित कीमत पर उपलब्ध हैं यह सामान :
ऑनलाइन या बाजार में जब हम किसी ब्रांडेड सामान लेते हैं. जिसके लिए मनमाफिक दाम लिए जाते हैं लेकिन आदिम जनजाति समुदाय के लोगों द्वारा बनाए गए सामान उचित कीमत पर उपलब्ध हैं. यह देखने में बेहद आकर्षक हैं. सभी तरह के सामानों की कीमत 1500 से 2400 तक हैं. यदि यह समान किसी ब्रांडेड कंपनी के माध्यम से आप खरीदने जाएंगे तो अनुमानित 5000 से अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी. फिलहाल अमेजन पर फल टोकरी, कूड़ेदान, पेपर बीन, लैम्प सेड, बर्तन ट्रे, ज्वेलरी बॉक्स, टेबल मेट, लॉन्ड्री बीन, टिशू बॉक्स, डोर मेट आदि उपलब्ध हैं.
निफ्ट के पांच विशेषज्ञ ने दिया प्रशिक्षण :
भारत सरकार के उपक्रम हस्तशिल्प कार्यालय नई दिल्ली के सौजन्य से 1999 में निफ्ट ( नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी ) के पांच डिजाईनर ( विशेषज्ञ ) ने नीमडीह के प्रशिक्षण केंद्र में सबर महिला-पुरुषों को खजुर पत्ता, बांस व घास द्वारा विभिन्न प्रकार के सामग्री निर्माण की बारीकी से प्रशिक्षण दी. इसके बाद भी निरंतर प्रशिक्षण दिया जाता रहा.
कौन है सुचित्रा सिन्हा :
सुचित्रा सिन्हा 2006 बैच के झारखंड की आईएएस अधिकारी रह चुकी हैं. पटना वीमेंस कॉलेज से स्नातक व पटना विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर डिग्री हासिल की. झारखंड सरकार में डावकारा के परियोजना निदेशक, आदिवासी विकास सोसायटी के निदेशक, सहकारी समितियों के निदेशक, पर्यटन विभाग के निदेशक आदि पद पर रहते हुए अनेक जन कल्याणकारी योजनाएं लागू किया. वर्तमान में आदिम जनजातियों के जीवन स्तर की सुधार हेतु कार्य कर रही हैं.