रांची : निर्दलीय विधायक सरयू राय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है. पत्र में मुख्यमंत्री से कहा है कि मेनहर्ट मामले में निगरानी ब्यूरो को समुचित कार्रवाई करने का निर्देश दें. पत्र में यह भी कहा है कि उपर्युक्त विषय में मुकदमा संख्या WP(PIL)No 2241/2016 में माननीय झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा 28 सितंबर, 2018 को पारित आदेश की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं. यह आदेश निम्नवत है:
We are taking up this writ petition in spite of defects as this matter is pending for quite sometime.
The writ petitioner has approached this court with various complaints but the grievances, which survives now, is that in spite of preliminary enquiry by the Vigilance Bureau, the State is not granting sanction.
Let the concerned authority of the State take a decision on this matter as expeditiously as possible keeping in mind the totality of the circumstances of the case and the investigation so far carried out.
The writ petition stands disposed of in the above terms.
राय ने कहा है कि इससे स्पष्ट है कि इस मामले में माननीय उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को स्पष्ट आदेश दिया है कि सरकार निगरानी ब्यूरो की जांच पर कारवाई करने की अनुमति शीघ्रातिशीघ्र दे. पर इस आदेश का अनुपालन अभी भी लंबित है. एक ओर डबल इंजन की सरकार में कार्रवाई करने की अनुमति निगरानी ब्यूरो को नहीं मिली, तो दूसरी ओर तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास कह रहे हैं कि इस मामले में क्लिनचिट मिल गया है.
13 सिंतबर, 2010 में मुकदमा संख्या WP(PIL)No 735/2010 में माननीय उच्च न्यायालय ने निम्नांकित निर्णय दिया था:
The petitioner may approach the Director General (Vigilance), and in case substance is found his allegation, appropriate step in accordance with law may be taken.
With this observation, this petition disposed of.
उसके बाद आरंभिक जांच के उपरांत निगरानी ब्यूरो के तत्कालीन आरक्षी निरीक्षक एमवी राव ने 22.09.2010, 04.12.2010, 20.01.2011 और 28.03.2011 द्वारा निगरानी आयुक्त से कार्रवाई करने की अनुमति मांगा था परन्तु निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा ने अनुमति नहीं दिया.
अब इसी आधार पर माननीय उच्च न्यायालय का निर्णय 28.09.2018 को आया कि सरकार आगे की कार्रवाई करने की शीघ्रातिशीघ्र अनुमति दे. चूंकि मेनहर्ट नियुक्ति घोटाला के मुख्य किरदार और साजिशकर्ता रघुवर दास ही उस समय राज्य के मुख्यमंत्री थे इसलिए स्वाभाविक है कि उनकी सरकार ने न्यायालय के आदेश का पालन नहीं किया, अनुमति नहीं दिया. शायद इसे ही वे क्लिनचिट मान रहे है.
निगरानी ब्यूरो को उपर्युक्त विषय में कार्रवाई करने का माननीय उच्च न्यायालय का आदेश अब भी लंबित रहेगा तो माना जायेगा कि यह सरकार भी न्यायालय के आदेश की अवमानना कर रही है. इसके विरूद्ध न्यायालय के अवमानना की कार्रवाई नियमानुसार की जा सकती है. अनुरोध है कि इस मामले में निगरानी ब्यूरो को समुचित कार्रवाई करने का निर्देश देना चाहेंगे.