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पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

by bnnbharat.com
August 7, 2020
in परवरिश
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

राहुल मेहता,

सुनीता की शादी उसके पिता ने तय कर दी. मां ने कहा- “एक बार उससे पूछ तो लेते”. पिताजी ने टका सा जवाब दिया- “उससे क्या पूछना, पिता हूं उसका, कोई दुश्मन नहीं?”. शादी के कुछ दिनों बाद जमीन विवाद में उसके चाचा ने पिता का हत्या कर दिया. सदमे से मां बीमार रहने लगी. अल्प शिक्षित सुनीता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. उसने जमीन बेच कर मां का इलाज कराना चाहा पर पारंपरिक नियमों के कारण वह ऐसा कर नहीं सकी. उचित इलाज के अभाव में मां की मृत्यु हो गयी. उसके सारी जमीन का मालिक हत्यारा चाचा हो गए.

  • इस कहानी में क्या लिंग-भेद हुआ है?
  • ऐसा क्यों हुआ? उसका क्या प्रभाव पड़ा?
  • पितृसत्ता से आप क्या समझते हैं?
  • पितृसत्ता के कारण किसे जान गंवानी पड़ी?
  • क्या इस व्यवस्था में परिवर्तन की जरुरत है?

पितृसत्ता क्या है?

पितृसत्ता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें पिता या सबसे बड़ा पुरुष परिवार का मुखिया होते हैं. पुरुषों का महिलाओं, बच्चों और संपत्ति पर अधिकार होता है.

  • इस सामाजिक व्यवस्था में पुरुष नियंत्रण रखते हैं और नियम बनाते हैं. वे परिवार के साथ-साथ समाज में भी सभी निर्णय लेते हैं.
  • इस व्यवस्था में शक्ति पुरुष के पास होती है और महिलाओं को इससे काफी हद तक बाहर रखा जाता है.
  • पितृसत्तात्मक समाज में वंश पुरुष द्वारा ही आगे बढ़ती है. परिवार का नाम पुरुष से आता है और पुरुषों को श्रेष्ठ माना जाता है.

पितृसत्ता के कारण किशोरियों के साथ संभावित भेद-भाव

  • बच्चे का जन्म: बेटा के जन्म पर खुशी मानना, मिठाई बांटना, नगाड़ा या बर्तन पीटना, बेटी के जन्म पर घर के आगे झाड़ू टांगना/उदासी.
  • मां को प्रतिक्रिया: वंश चलाने के लिए लड़का पैदा करने पर बधाई, लड़की पैदा करने के लिए पर ताना.
  • खिलौना: लड़का के लिए बैट-बॉल या अन्य नया खिलौना, लड़की के लिए गुड़िया या कुछ भी नहीं.
  • शिक्षा का अवसर: पढ़ाई के अवसरों में भेद-भाव. लड़का का नामांकन प्राइवेट स्कूल में, जबकि लड़की का नामांकन सरकारी विद्यालय में. लड़का को ऋण लेकर भी पढ़ाया जाना जबकि लड़की को यह कह कर पढ़ाई बंद करा देना कि तुम ज्यादा पढ़-लिख कर क्या करोगी, आखिर तुम्हें तो चूल्हा-चौका/घर ही संभालना है.
  • शिक्षा का विषय: लड़का के लिए साइंस या इंजीनियरिंग जबकि लड़की के लिए होम साइं या पोलिटिकल साइंस.
  • सामाजिक व्यवहार: बाहर जाने, निर्णय लेने, खेल-कूद, खर्च करने में भेदभाव. खान-पान, रहन-सहन, पहनावे में भेदभाव. बोलने, हंसने, सोने, उठने के समय में भेदभाव. रीति-रिवाजों, सामाजिक भागीदारी में भेदभाव.
  • खेलकूद: लड़का का बाहर खेलने जाना, जबकि लड़की को घर का काम या छोटे बच्चों को संभालने हेतु कहा जाना.
  • काम: लड़का को बाहर का काम या खरीददारी, लड़की को झाड़ू लगाना या घर का काम.
  • नौकरी: आर्थिक गतिविधियों, काम के अवसरों, रोजगार में भेदभाव. जैसे- लड़का इंजीनियर बन जाता है जबकि लड़की आंगनबाड़ी सेविका बनती है.
  • सुविधा और अधिकारों: स्वास्थ्य सेवा को पाने, संपत्ति के अधिकार में भेदभाव, शादी का निर्णय लेने में भेदभाव.

किशोरियों के साथ भेदभाव का प्रभाव

अमूमन लड़कियों की शिक्षा की बात करते समय कहा जाता है कि “एक शिक्षित महिला अपने परिवार की जरूरतों का ध्यान बेहतर ढंग से रखेगी” पर ये कारण लड़कों की शिक्षा के लिए जरूरी नहीं होता. उसे ज्यादा पढ़ाया जाता है ताकि उसका विकास हो सके, वे अपनी जिन्दगी में कुछ बन सकें. ऐसी सोच यह निर्धारित करती है कि लड़के और लड़कियों को किस लिए और कितना पढ़ाना है. किशोरियों के साथ घर के अन्दर और बाहर होने वाले ऐसे भेदभाव के निम्नलिखित दुष्प्रभाव हो सकते हैं:-

  • अपने जीवन का निर्णय नहीं ले सकतीं. अनेक बार समझौता करना पड़ता है.
  • डर के कारण आत्मविश्वास कम हो जाता है.
  • संकोची और दब्बूपन का शिकार हो सकती हैं. अपनी बात ठीक से नहीं रख पातीं.
  • शिक्षा से वंचित रह जाती हैं, शिक्षा अधूरा छोड़ना पड़ता है.
  • उत्पादकता, रोजगार, स्व-निर्भरता और विकास के अवसर कम हो जाते हैं.
  • पुरुषों पर निर्भर हो जाती हैं.
  • विभिन्न प्रकार के हिंसा, शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार हो जाती हैं.
  • अपनी स्वास्थय समस्याओं को बता नहीं पातीं. बीमारी की संभावना बढ़ जाती है.
  • निर्णय लेने में डर लगता है.
  • बाल विवाह, छेड़-छाड़, दुष्कर्म आदि का शिकार हो सकती हैं.

अभिभावकों की भूमिका:

सत्ता विशेषाधिकार का एक जरीया है और इसे कोई नहीं छोड़ना चाहता. परवरिश के सन्दर्भ में यह अस्थायी लाभ अंततः सुनीता के परिवार की तरह सबके लिए नुकसानदायक साबित होता है. अतः

  • अपनी परवरिश पर नजर डालें, क्या जाने-अनजाने आप पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अवगुणों को तो नहीं ढो रहें हैं. यदि हाँ तो इसमें परिवर्तन के लिए चिंतन करें.
  • किशोरियों पर पड़ने वाले भेद-भाव के प्रभावों को पहचाने और उन्हें दूर करने का प्रयास करें.
  • बेटा और बेटी का परवरिश में इन भेद-भावों को दूर करने का यथा संभव प्रयास करें.
  • कोई भी सामजिक परिवर्तन प्रारंभ में कठिन नजर आती है, इसका विरोध हो सकता है लेकिन कुछ दिनों के बाद विरोश करने वाले भी उसे अपना लेते हैं. अतः अपना हित देखें, तार्किक रूप से सोचें और थोड़ा साहस करें.
  • बेशक अभिभावक बच्चों के दुश्मन नहीं होते, उनका भला सोचते हैं. परन्तु अपने जीवन के निर्णयों में शामिल होना न सिर्फ बेहतर निर्णय के लिए भी आवश्यक है बल्कि यह बच्चों का अधिकार भी है.
  • बीटा-बेटी में भेद-भाव को दूर करने के लिए अनेक कानून बनाये गए हैं, उनका पालन करें.

पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण किशोरियों के साथ घर के अंदर और बाहर कई तरह के भेदभाव किए जाते हैं, उन्हें कमतर आंका जाता है. जीवन-पर्यंत वे पुरुषों के अधीन रहतीं हैं. इसका दुष्प्रभाव किशोरियों के जीवन के साथ-साथ पुरुषों और समाज पर भी पड़ता है. परिवार या देश का विकास महिला और पुरुष दोनों के भागीदारी के बिना संभव नहीं. जिस परिवार में यह भेदभाव होता है वह विकास के दौड़ में पिछड़ जाता है. इन भेदभाव वाले सामाजिक मानदंडों और तथा प्रथाओं को बदला जा सकता है. समाज में ऐसे परिवर्तन के प्रचुर उदहारण हैं.

परिवार में भी परिवर्तन संभव है. परवरिश इसका सर्वोत्तम माध्यम है. अतः पहल करें और अपनी परवरिश में आवश्यक परिवर्तन का प्रयास करें.

पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)
पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

परवरिश सीजन – 1

बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)

बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)

पालन-पोषण की शैली (परवरिश-3)

बच्चों का स्वभाव (परवरिश-4)

अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)

उत्तम श्रवण कौशल (परवरिश-6)

तारीफ करना (परवरिश-7)

बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)

मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)

बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)

किशोरावस्था में भटकाव की संभावना ज्यादा होती ह, अतः बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी अवश्य रखें (परवरिश-11)

भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)

बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)

टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)

नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)

छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)

बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)

बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)

बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)

बच्चों की निगरानी (परवरिश-20)

स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)

आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)

परवरिश सीजन – 2

विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)

किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)

दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)

किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)

पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)

“आंचल” परवरिश मार्गदर्शिका’ हर अभिभावक के लिए अपरिहार्य

 

 

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