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Home समाचार

किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)

by bnnbharat.com
July 6, 2021
in समाचार
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किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन  (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)
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राहुल मेहता,

सरवरी कुछ दिनों से काफी परेशान थी, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसके साथ हो क्या रहा है. उसके दोस्तों में तो ये शारीरिक परिवर्तन नजर नहीं आ रहे, फिर उसमें ही क्यों? सरिता की समस्या थोड़ी भिन्न थी. उसके माँ ने उसे टोकना शुरू कर दिया था, कपड़ा ठीक से पहनो, यहाँ मत जाओ, ये मत करो, ठीक से बैठो आदि. पहले तो माँ ऐसा कुछ नहीं कहती थी. वह अपने व्यवहार में परिवर्तन को लेकर भी चिंतिति थी. उसकी भावनाएं और प्रातिक्रियायें इन दिनों कुछ ज्यादा ही तीव्र हो गए थे. उसे गुस्सा भी ज्यादा आने लगा था. शरीर में बदलाव भी आ रहे थे.
• आखिर सरवरी और सरिता को हुआ क्या था?
• क्या ये बदलाव स्वभाविक हैं? आखिर ये बदलाव क्यों होते हैं?
• क्या हर किसी में ये बदलाव एक ही समय पर और एक ही गति से होते हैं?
• यौवनारंभ से जुड़ी चिंताओं और प्रश्नों का समाधान अभिभावक कैसे कर सकते हैं?
यह यौवन काल की शुरुआत थी. किशोर-किशोरियों की यौवनारंभ एक ही आयु में नहीं होती. अमूमन लड़कियों में 10-13 साल और लड़कों में उसके दो साल बाद होती है. इस दौरान उनकी शारीरिक विशेषताएं अलग-अलग हो सकती हैं. शारीरिक विकास की रफ्तार जो भी हो, किशोर-किशोरियों के लिए यह तनाव और चिंता का विषय बन ही जाता है. इन तनाव का दोस्तों या सहेलियों के छेड़-छाड़ से बढ़ने की संभावना होती है तो अभिभावको के उचित मार्गदर्शन से समाधान की राह भी प्रशस्त होती है.

यौवनारंभ से जुड़ी चिंताएं और समस्याएं

यौनारंभ के समय हर किसी के शरीर में एक रसायन का श्राव होता है जिसे हार्मोन कहते हैं. हार्मोन न केवल शरीर के बाहरी बनावट में परिवर्तन लातें हैं, बल्कि वे आंतरिक बदलाव भी लाते हैं. शरीर के साथ मस्तिष्क भी नये हार्मोनों के साथ सामंजस्य बैठाने लगता है. इस दौरान मानसिक परिवर्तन सामान्य बात है. बहुत से किशोर-किशोरियों के मन में इनपर किसी से बात करने के बारे में दुविधा होती है. किसी के बड़े भाई या बहन भी नहीं होते और माता पिता से भी बात करने में वह संकोच करते हैं. इस समय उन्हें सही जानकारी और सहायता की जरुरत होती है. उनमें से कुछ निम्नलिखित के बारे में अत्यधिक चिंतित हो जाते हैं-
• अपनी पहचान, रूप और सौंदर्य
• विद्यालय में उनका प्रदर्शन
• उनकी बनावट-दिखावट, शारीरिक विकास और लोकप्रियता
• विद्यालय में डराये-धमकाये जाने का डर, विद्यालय में हिंसा
• मित्र न होना
• तेजी से बदलती मनोदशा गुस्सा और तनाव
• अधिक आजादी या अकेलेपन की जरुरत
• दोस्तों के साथ संबंध और दूसरों के विचार अधिक महत्वपूर्ण बन जाना
• सिनेमा अभिनेताओं/अभिनेत्रियों, शिक्षक/शिक्षिकाओं और सहपाठियों की तरफ आकर्षण
• यौन अंगों के बारे में उत्सुकता,लोगों के प्रति यौन आकर्षण

 

यौवनारंभ और स्वच्छता

यौवनारंभ के दौरान शरीर में कई तरह के बदलाव आते हैं जिनमें हॉर्मोन, शरीर के बाल और त्वचा में बदलाव, और लड़कियों में माहवारी शामिल हैं. इन बदलावों का पूर्व ज्ञान और इनसे जुड़े सवाल यौवनारंभ के दौरान सभी के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. अभिभावकों की यह जिम्मेदारी होती है कि वे अपने बच्चे के मनोदशा को समझे और उनका सही मार्गदर्शन करें.

हार्मोन: ये विशेष रासायनिक संदेशवाहक शारीरिक बदलाव का कारक होते हैं. यौवनांरभ के दौरान विकास हार्मोंन के अलावा यौन हार्मोन भी उत्पन्न होते हैं. लड़कियों में यौन हार्मोन उनकी डिम्ब ग्रंथियों (ओवरीज) और लड़कों में अण्डकोष में पैदा होते हैं. ये यौन हार्मोन पुरूष और महिला के शरीरों के आकार में अंतर का कारण होते हैं.
शरीर के बाल और त्वचा में बदलाव: यौवनारंभ के दौरान त्वचा और शरीर के बालों में परिवर्तन होता है. अधिकतर किशोर-किशोरियों की त्वचा तैलीय हो जाती है. इससे चेहरे पर कील-मुंहासे हो जाते हैं. पैरों और बाहों के अलावा गुप्तांगों, चेहरे, छाती और कांखों में बाल उगने लगते हैं. लड़कों के शरीर में नये बाल सबसे अंत में चेहरे पर उभरते हैं. मूंछें सर्वप्रथम नजर आते हैं. साथ ही गालों के ऊपरी हिस्सों और निचले होंठ के बीच में भी बाल उगते हैं. अंत में ठोडी पर बाल उगते हैं. आमतौर पर ठोडी पर बाल जननांग के पूरी तरह से विकसित हो जाने पर ही उगते हैं. अधिकतर लड़कों में चेहरे के बाल 14-18 वर्ष की आयु के बीच उगते हैं, पर वे इससे पहले और इसके बाद भी उग सकते हैं.
माहवारी:माहवारी का चक्र महिला यौन हार्मोनों द्वारा नियंत्रित होता है. अधिकतर मामले में यह पूरा चक्र 28 दिन का होता है. पर कुछ महिलाओं और लड़कियों के मामले में यह 24-35 दिनों के बीच का भी हो सकता है. यह चक्र रक्तस्त्राव के पहले दिन से शुरू होता है.

अभिभावकों की भूमिका

अभिभावकों की यह प्राथमिक भूमिका है कि वे अपने बच्चे के झिझक को समझते हुए संवाद प्रक्रिया प्रारंभ करें. उन्हें माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि के साथ अपनी भावनाओं को साझा करने के लिए प्रेरित करें. उन्हें यह अवश्य बतायें कि ये परिवर्तन विकास की सामान्य प्रक्रिया है. साथ ही विशेष निम्न मुद्दों पर मार्गदर्शन / प्रेरणा प्रदान करें.
आवाज: यौवनारंभ में आवाज में विशेष परिवर्तन होते हैं. किशोरों के आवाज में विशेष भारीपन आ जाता है. कभी-कभी इसीसे उनके आत्मविश्वास में प्रभाव पड़ता है और उनकी भागीदारी सीमित हो सकती है.
साफ त्वचा: जब बच्चे यौवनारंभ की अवस्था में पहुंचते हैं तो उनके शरीर की गंध तेज हो जाती है. इसलिए कांखों और जननांगों के बालों को धोना जरूरी होता है. इससे त्वचा साफ रहती है और आप साफ महसूस करते हैं तथा गंध भी नहीं आती.
साफ लिंग: हर रोज नहाते समय अपने लिंग को साबुन और पानी से धोयें. लिंग की अगली त्वचा के नीचे सफेद-सा पदार्थ जमा हो जाता है जिसमें संक्रमण हो सकते हैं. इसलिए आराम से लिंग की आगे की त्वचा को पीछे हटाकर नियमित रूप से सफाई करें.
माहवारी संबंधी सफाई: जलन, खुजली और संक्रमणों से बचने के लिए माहवारी संबधी सफाई बहुत जरूरी है. माहवारी के दौरान सेनिटरी पैड्स का उपयोग करें. अगर ऐसा करना संभव न हो तो साफ कपड़े का पैड बनाकर उसका उपयोग करें. कपड़े के पैड्स को धोकर धूप में सुखायें. पेशाब और पैड बदलने के बाद हमेशा अपने जननांगों को साफ करें.
इन मुद्दों पर संवाद उतना सरल नहीं होता. अतः उचित अवसर का निर्माण करें. संवाद की शुरुआत साधारण बात-चीत, अपने अनुभवों, दूसरों के उदाहरण के साथ करें और क्रमश: मुद्दे पर आयें. इस संवाद के दौरान निजता और एकांत का ध्यान रखें.

कुछ बातें यदि आप सीधे तौर पर कहने से झिझकते हैं तो उन्हें पठन सामग्री प्रदान करें. यदि यह भी उपलब्ध नहीं है तो हमउम्र भाई-बहनों की मदद ली जा सकती है.

परवरिश सीजन – 1

बच्चों की बेहतर पालन-पोषण और अभिभावकों की जिम्मेदारियां (परवरिश -1)

बेहतर पालन-पोषण के लिए सकारात्मक सामाजिक नियम अनिवार्य और महत्वपूर्ण हैं (परवरिश-2)

पालन-पोषण की शैली (परवरिश-3)

बच्चों का स्वभाव (परवरिश-4)

अभिभावक – बाल संवाद (परवरिश-5)

उत्तम श्रवण कौशल (परवरिश-6)

तारीफ करना (परवरिश-7)

बच्चे दुर्व्यवहार क्यों करते हैं? (परवरिश-8)

मर्यादा निर्धारित करना, (परवरिश-9)

बच्चों को अनुशासित करने के सकारात्मक तरीके (परवरिश-10)

किशोरावस्था में भटकाव की संभावना ज्यादा होती ह, अतः बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी अवश्य रखें (परवरिश-11)

भावनाओं पर नियंत्रण (परवरिश-12)

बच्चों की चिंतन प्रक्रिया और व्यवहार (परवरिश-13)

टालमटोल (बाल शिथिलता) और सफलता (परवरिश-14)

नशापान: प्रयोग से लत तक (परवरिश-15)

छेड़-छाड़ निवारण में अभिभावकों की भूमिका (परवरिश-16)

बच्चों का प्रेरणास्रोत (परवरिश-17)

बच्चों के उद्वेग का प्रबंधन (परवरिश-18)

बच्चों में समानता का भाव विकसित करना (परवरिश-19)

बच्चों की निगरानी (परवरिश-20)

स्थानीय पोषक खाद्य पदार्थ (परवरिश-21)

आपदा के समय बच्चों की परवरिश (परवरिश-22)

परवरिश सीजन – 2

विद्यालय के बाद का जीवन और अवसाद (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-01)

किशोरों की थकान और निंद्रा (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-02)

दोषारोपण बनाम समाधान (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-03)

किशोरों में आत्महत्या की प्रवृति (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-04)

पितृसत्ता और किशोरियों की परवरिश (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-05)

किशोर-किशोरियों में शारीरिक परिवर्तन (परवरिश: अभिभावक से दोस्त तक-06)

“आंचल” परवरिश मार्गदर्शिका’ हर अभिभावक के लिए अपरिहार्य

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