फलक शमीम
रांची : लावारिस लाशों को मुकाम मिल जाए ये अपने आप में बड़ी बात है । मुकाम को अंजाम तक पहुंचाने वाले हम उस शख्स की कहानी बताएंगे जिसे शुरू – शुरू में तो काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन धीरे – धीरे लोगो ने भी इस काम के लिए साथ दिया ।
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रांची के प्रावीन लोहिया पेशे से कपड़ा व्यवसायी है जिन्होंने ठाना है की वो लावारिस मुर्दों का ही साथी बन कर उनके अंतिम संस्कार करेंगे और इसी मुहिम में अपने जीवन का सारा समय लगा लेंगे । प्रावीन लोहिया बताते है की इसके प्रेरणा उन्हें हज़ारीबाग के मोहम्मद खालिद से मिली जो वर्षा से बिना किसी मोह के लावारिश शवो का अंतिम संस्कार करते आ रहे है । तो क्यों ना इस 25 लाख आबादी वाले रांची शहर के लावारिश शवों के अंतिम संस्कार का जिम्मा लिया जाए , जिसके बाद वर्ष 2015 में उन्होंने मुक्ति संस्था के नाम से एक संस्था की इसकी शुरुआत की हालांकि शुरुवाती दिनों में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा , कई लोगो ने इसकी आलोचना भी की लेकिन प्रावीन ने सभी अड़चनों को पार करते हुए लावारिश लाशों का अंतिम संस्कार करना शुरू कर दिया । धीरे धीरे संस्था से लोग जुड़ने लगे और आज इस संस्था में सभी धर्मों से कुल 150 लोग जुड़ चुके है । वर्ष 2015 से अब तक इनकी संस्था द्वारा 799 लावारिश शवो का अंतिम संस्कार हो चुका है । काफी सटीक बैठती हैं ये पंक्तियाँ प्रावीन लोहिया पर की मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर लोग आते गए और कारवां बनता गया ।