क्या भारत में पहली बार जीडीपी नेगटिव गयी है ?
क्या सच में आने वाले समय में देश महामंदी की कगार पर जाने वाला है ?
के के अवस्थी“बेढंगा”
BNN BHARAT: किसी देश में एक वित्तीय वर्ष में उस देश की सीमा के अन्दर उत्पादित वस्तुओ एवं सेवाओं अंतिम उत्पाद( Finished Goods ) का कुल मौद्रिक मूल्य उस देश सकल घरेलू उत्पाद(जीडीपी) कहलाता है . जीडीपी किसी भी देश के विकास का सूचक या संकेतक होता है, जो उस देश की विकास गति को दर्शाता है . भारत में एक वित्तीय वर्ष में जीडीपी की गणना हर तीन माह पर होती है . अभी हाल ही मे वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही(01 अप्रैल – 30 जून ) की जीडीपी में -23.9 % की भारी गिरावट आई है. इसके सुनते ही देश के भीतर एक डर का माहौल बन गया है . पर क्या सच में यह इतनी भयावय है ? क्या भारत में पहली बार जीडीपी नेगटिव गयी है ? क्या सच में आने वाले समय में देश महामंदी की कगार पर जाने वाला है ? क्या सच में सरकार कुछ नहीं कर रही ? और ना जाने एसे कितने सवाल है, जो आपके मन में उठ रहे है जो आपको निरंतर डरा रहे है | आईये हम आंकड़ो के आधार पर विश्लेषण कर यह जानने की कोशिश करते है कि सच क्या है ?
यह बिलकुल सत्य है कि 1996 के बाद पहली बार हमारी जीडीपी नेगेटिव गयी है और 23.9 % तो इतिहास में पहली बार गयी है . अगर हम पिछले वित्तीय वर्ष की बात करें तो वर्ष 2019-20 के पहले तिमाही की जीडीपी 5.2%,दूसरी तिमाही की 4.4 %, तीसरी तिमाही की 4.1 % व चौथी तिमाही की 3.1 % रही थी . मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले तिमाही की जीडीपी पिछले वर्ष की तुलना में – 23.9 % रही . परन्तु भारत में यह पहली बार नहीं हुआ कि जीडीपी निगेटिव रही . अब तक इससे पहले देश में निगेटिव जीडीपी कुल चार बार वर्ष 1957-58 में -1.2%, 1965-66 में -3.7%, 1972-73 में -0.3% व 1979-80 में -5.2 % रह चुकी है . इसका मुख्य कारण वैश्विक महामारी है . इससे पहले कि हम आंकड़ो पर विश्लेषण करे हम ये देखेंगे कि जीडीपी बढ़ने या कम होने में किस – किस की कितनी भूमिका होती है .
GDP = C + I + G + NX
C = consumption (लोगों के द्वारा उपभोग या प्रयोग से प्राप्त हिस्सा) पिछले वर्ष की जीडीपी में 56.6 %
I = Investment in pvt. Sector (निजी क्षेत्रो से प्राप्त हिस्सा) पिछले वर्ष की जीडीपी में 32 %
G = Government expenditure (सरकार द्वारा जनहित में खर्च से प्राप्त हिस्सा)
पिछले वर्ष की जीडीपी में 11 %
NX = Net Export (आयात – निर्यात से प्राप्त हिस्सा)
किसी भी सरकार की भूमिका जीडीपी में बहुत ही सिमित होती है . सरकार के हाथ में केवल Government expenditure ही होता है जिसे वह कम या अधिक कर सकती है जिससे लोगो के पास पैसा आये और जीडीपी में वृद्धि हो . आईये अब हम कुछ आंकड़ो का तुलनात्मक विश्लेषण करते है और ये जानने का प्रयास करते है कि महामारी में लॉकडाउन के कारण विभिन्न क्षेत्रों में कितनी आर्थिक क्षति हुई वास्तविकता में हुई है .
प्रमुख क्षेत्र | Q 1, 20-21 | Q 4, 19-20 | Q 1, 19-20 |
इंडस्ट्री के क्षेत्र | -38.1 % | -0.6 % | 4.2% |
सेवा के क्षेत्र | -20.6 % | 4.4% | 5.5% |
विनिर्माण के क्षेत्र | -39.3 % | -1.4% | 3% |
कृषि क्षेत्र | 3.4 % | 5.9% | 3% |
ट्रेड एवं होटल क्षेत्र | -4.7 % | 2.6% | 3.5% |
माइनिंग क्षेत्र | -23.3 % | 5.2% | 4.7% |
पी डब्लू आर एवं जी ए एस क्षेत्र | -7 % | 4.5% | 8.8% |
प्रशासनिक क्षेत्र | -10.3% | 10.1% | 7.7% |
कंस्ट्रक्शन क्षेत्र | -50.3% | -2.2% | 5.2% |
रियल एस्टेट क्षेत्र | -50.3% | 2.4% | 6% |
पर क्या सच में सरकार कुछ नहीं कर रही है . मार्च माह से लॉकडाउन के बाद जीडीपी के प्रमुख हिस्सेदार C,I,Gव NX में कितनी –कितनी कमी आई है और सरकार ने अपनी ओर से क्या –क्या प्रयास किये है , इस पर टिपण्णी न करते हुए बस MoSPI व Express research group द्वारा प्रदत्त कुछ सरकारी आंकड़ो पर नजर डालते है बुद्धिमत्ता स्वयं इसका उत्तर खोज खोज लेगी .
इन आंकड़ो के अनुसार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए पिछले वर्ष की पहली तिमाही की अपेक्षा इस वर्ष की पहली तिमाही में सरकार द्वारा खर्च लगभग 16 % बढ़ा दिया गया वही नेट एक्सपोर्ट में वृद्धि 165 प्रतिशत की हुई है . यहन हमे यह ध्यान में रखना चाहिए कि यह जीडीपी केवल पहली तिमाही यानी कि जून 20 तक की है जो समूर्ण लॉकडाउन के बाद आई है जहाँ इस दौरान कई क्षेत्र लगभग पूर्ण रूप से निष्क्रिय हो गये थे जिसमें सेवा क्षेत्र प्रमुख है .
अब प्रशन यह उठता है कि क्या यह निरंतर एसे ही यह रहने वाली है या आने वाले समय में इसमें सुधार होगा ? इस प्रशन का भी उत्तर बिना किसी टिपण्णी के आंकड़ो के विश्लेषण के आधार पर देखते है .
पैसेंजर व्हीकल प्रोडक्शन जहाँ जून में -57.7 % था वहीँ ये घटकर -26.4% राह गया इसी प्रकार मोटर साइकल प्रोडक्शन व स्कूटर प्रोडक्शन क्रमशः -42.4 % व -74.2% से घटकर –20.1 % व -48.7 % रह गया .
इसी प्रकार GST eway Bill व Air Passenger growth भी -12.7 % व -83.5% से घटकर -7.3 % व -82.3 % रह गया . हैड्रो जनरेशन , क्रूड ऑयल रिफैनरी प्रोडक्ट्स में भी सकारात्मकता दिखी .
वहीँ कोल प्रोडक्शन व थर्मल जनरेशन क्षेत्र भी वापस आर्थिक मजबूती की ओर बढ़ते हुए दिखाई दिए .
इन आंकड़ो से ये तो साफ़ हो जाता है कि आने वाले समय में हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर जरुर लौटेगी परन्तु एसा अगली तिमाही की जीडीपी में ही हो जाएगा ये भी संभव नहीं है क्योंकि सरकार ने अपने खर्च जहाँ बहुत बढ़ा दिए है वहीँ टैक्स व रेवन्यू बहुत कम प्राप्त हो रहा है . आमदनी से अधिक के खर्च के कारण फिसिकल डेफिसिट में भी निरंतर वृद्धी हो रही है .
एसा नहीं है कि केवल भारत में ही जीडीपी कम हुई है . विश्व में हर देश की जीडीपी में कमी आई है . आज लगभग सम्पूर्ण विश्व इसका सामना कर रहा है . IMF की एक अनुमान के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था वर्ष के अंत तक -4.5 % तक रहने का अनुमान है . अर्थशास्त्री सुबोदीप रक्षित व अविजीत पुरी की एक रिपोर्ट के अनुसार अर्थव्यवस्था को पटरी पर तब तक नहीं लाया जा सकता जब तक लोअर व मिडिल क्लास लोगो का कंसम्पशन नहीं बढता .
केवल सरकार के प्रयासों से कुछ नहीं होगा क्योंकि सरकार की एक सीमा है और उससे अधिक करने के लिए सरकार को लोन लेकर ही उसकी पूर्ति करनी पड़ेगी जो कहीं न कहीं हमारे लिए ही भविष्य में बोझ बनेगी . अगर हमे अपनी अर्थव्यवस्था को जल्दी पटरी पर लाना है तो मैनुफचारिग के क्षेत्र में अधिक से अधिक काम करना होगा ताकि रोजगार तो बढ़ ही सकें और साथ ही साथ हम अधिक से अधिक निर्यात करने में सक्षम हो सकें . रोजगार बढने से लोगो के पास पैसा आएगा और डिमांड में वृद्धि होगी . जब बाजार में डिमांड बढ़ेगी तो अन्य क्षेत्र जैसे होटल, पर्यटन, परिवहन ,लग्जरी वस्तुएं , कपडे , खिलौने इत्यादि में भी वृद्धि आएगी . बाजार में जितनी अधिक डिमांड व सप्लाई की चेन मजबूत होगी रोजगार में उतनी ही वृद्धि आएगी और अर्थव्यवस्था न केवल पटरी पर आएगी बल्कि स्पीड से दौड़ेगी .