चंदन मिश्र(वरिष्ठ पत्रकार),
झारखंड विधानसभा का तीन दिनों का मानसून सत्र 18 सितंबर से बुलाया गया है. देखने में यह सत्र भले ही छोटा लगे लेकिन कोरोना काल में इसे लंबा सत्र कहा जाएगा. कई राज्यों में तो महज एक या दो दिन में ही सत्र निपटा दिया गया है. संसद का सत्र भी इसी महीने आहूत किया गया है. लेकिन पिछले मानसून सत्रों की तुलना में काफी छोटा है.विधान मंडल या संसद के दो सत्रों के बीच छह महीने का अंतराल होता है। 24 मार्च को विधानसभा का बजट सत्र का समापन हुआ था. लिहाजा 24 सितंबर के पूर्व सत्र बुलाना सरकार के लिए संवैधानिक बाध्यता थी. सत्र के दौरान सरकार अनुपूरक बजट पेश करेगी. कोई आवश्यक विधेयक हो तो सरकार इसे सदन में रख सकती है. विधानसभा के घोषित कार्यक्रम के मुताबिक पहले दिन छोड़कर दो दिन प्रश्नकाल भी रखा गया है. जबकि संसद सत्र में इस बार प्रश्नकाल को समय नहीं मिला है। देश के विपक्षी दलों ने संसद सत्र में प्रश्नकाल नहीं रखने के फैसले का विरोध किया है.
झारखंड विधानसभा का बजट सत्र कोरोना के कारण ही समय से पहले ही समाप्त करना पड़ा था. 28 फरवरी से 28 मार्च तक सत्र आहूत किया गया था। कई विधेयक उस दौरान नहीं लाए जा सके हैं.कुछ विधेयकों को अध्यादेश के रूप में सरकार ने इसे लागू किया है. इन अध्यादेशों को सदन से अनुमोदन कराया जा सकता है. सत्र को लेकर पक्ष और विपक्ष के पास करने को बहुत काम हो सकता है, लेकिन अभी सरकार के कई मंत्री और विधायकों के अलावा विपक्ष के भी कई विधायक कोरोना से संक्रमित गुजरे हैं. कोरोना का संक्रमण अभी तेजी से फैल रहा है. ऐसे में सदन के अंदर और बाहर सभी सदस्यों को सावधानी के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करानी होगी. कोरोना के संक्रमण से बचते हुए स्वास्थ्य संबंधी दिशा निर्देशों का पालन करना होगा. दोनों पक्ष चाहें तो मानसून के इस छोटे सत्र में गागर में सागर भर सकते हैं.
प्रश्नकाल में जनता की समस्याओं के लिए सदुपयोग कर सरकार के सामने कई सुझाव और सरकार से आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन ले सकते हैं. वहीं सरकार भी इस छोटे सत्र में आवश्यक विधायी कार्यों का निपटारा कर सकती है. सत्र में कोई हल्ला-हंगामा न हुआ तो इसका जनहित में भरपूर उपयोग किया जा सकता है. काम के लिए दो दिन ही होंगे, क्योंकि पहला दिन औपचारिकता में ही बीतेगा. विधानसभा के मानसून सत्र में भी नेता प्रतिपक्ष की सीट खाली ही रहेगी। साथ ही कांग्रेस में शामिल झाविमो के दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को कांग्रेस खेमे में बैठने की जगह नहीं मिलेगा. नेता प्रतिपक्ष और इन दोनों विधायकों की दलीय मान्यता का मामला विधानसभा अध्यक्ष के पास लंबित है.