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मैं अंग हूं: गणिका का वह संपूर्ण श्रृंगार सिर्फ ऋषि के नाम था -1

कमर पतली… नितंब मांसल…भरे हुए… स्तन नुकीले, कसे हुए… भौंहे कमानीदार… केश काले लंबे… हवा के हल्के से झोंके पर अठखेलियां करते हुए… और कुल मिलाकर सौंदर्य का अकूत भंडार लिए एक नारी देह.

by bnnbharat.com
December 13, 2022
in भाषा और साहित्य, समाचार
मैं अंग हूं: गणिका का वह संपूर्ण श्रृंगार सिर्फ ऋषि के नाम था -1
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जब तक गणिका की नौका लक्ष्य तक पहुंची, पहले से पहुंचे गुप्तचर ऋषि विभांडक की दिनचर्या का पता लगा चुके थे. सूचना के मुताबिक ऋषि विभांडक प्रायः आश्रम में ही रहते थे. हां, सप्ताह में एकाध बार अपने भक्तों के बीच जाना भी उनकी दिनचर्या में शामिल था. गणिका ने नौका का लंगर नदी तट पर डाल दिया और विभांडक के आश्रम से बाहर जाने का इंतजार करने लगी.

आखिरकार वह दिन भी आ ही गया जब भक्तों के बीच जाने के लिए विभांडक अपने आश्रम से बाहर निकले. मौका उपयुक्त था, क्योंकि आश्रम में अब श्रृंगी अकेले थे, श्रृंगी यानी एक योगी और गणिका यानी एक भोगी. जाहिर है जो जंग लड़ी जाने वाली थी, मुकाबला तब और सौंदर्य के बीच होने वाला था. सो हमला करने से पहले गणिका ने अपने अस्त्रों की धार तेज कर लेना जरूरी समझा. सोलह श्रृंगार ही उसके अस्त्र थे, जिसे देख साथ आई उसकी सहेलियां भी बहुत भौंचक रह गई.

प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे नदी तट पर उस दिन जमीन पर ऐसा चांद उगा, जिसे देख पेड़-पौधे तक मचलने लगे. तट पर आकर टकराने वाली लहरें भी उस रूप का पान करने कुछ ज्यादा ही उच्चश्रृंखल हो गयी. सच में वह सौंदर्य था ही ऐसा की सामना होते ही अप्सराएं भी रास्ता बदल लें. देह यष्टि ऐसी मानो अंग प्रत्यंग से वसंत की मादकता उमड़ रही हो… कमर पतली… नितंब मांसल…भरे हुए… स्तन नुकीले, कसे हुए… भौंहे कमानीदार… केश काले लंबे… हवा के हल्के से झोंके पर अठखेलियां करते हुए… और कुल मिलाकर सौंदर्य का अकूत भंडार लिए एक नारी देह, जिस पर किए गए श्रृंगार ने इंद्रधनुषी छटा बिखेर दी.

वह संपूर्ण सौंदर्य और श्रृंगार उस ऋषि के नाम था, जिसे अब तक दुनिया भी नहीं देख सकी थी. ऐसे ऋषि को पागल कर देने के लिए वह सौंदर्य पर्याप्त था. हालांकि सौंदर्य की छटा बिखेरना और बदले में स्वर्ण प्राप्त करना उसका पेशा, था लेकिन वह व्यवसायिकता मातृभूमि के प्रति भक्ति की प्रगाढ़ता को केभी खंडित नहीं कर पायी. यही वजह थी कि जब तमाम मालिनी वासियों और राजा दरबारियों तक ने शाही मुनादी पर खामोशी की चादर ओढ़ ली, तब राज सिहासन की मांग पूरी करने और बंजर पड़ गयी अंग की माटी की उर्वरता बहाल करने के संकल्प के साथ वह श्रृंगी को मालिनी लाने की मुहिम पर अग्रसर हो गयी.

गुप्तचरों की सूचना के मुताबिक आश्रम तब विभांडक रहित था, अब अकेले वहां सिर्फ श्रृंगी थे. मौका अनुकूल था. गणिका ने आश्रम में कदम रखा. श्रृंगी भौंचक! चेहरे पर एक सात आश्चर्यमिश्रित कई-कई सवालियां लकीरें. लेकिन आगंतुक के आकर्षक व्यक्तित्व के प्रभाव से अगले ही क्षण बिल्कुल सहज.इसके कवल ऐसी खूबसूरत और श्रृंगार सिंचित देह उन्होंने कभी नहीं देखी थी. तभी तो उनके अंतर में एक अजीब सी हलचल मचने लगी. बड़ी गर्मजोशी के साथ श्रृंगी ने गणिका का स्वागत किया. अपनी प्रथम सफलता पर गणिका के चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान उभरी. बदले में उसने ऋषि को मिठाइयां दी, जिन्हें खाकर ऋषि गदगद हो उठे.

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क्रमशः…

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