रांचीः झारखंड में हाथी-मानव द्वंद को वन विभाग अब तक रोक नहीं पाया है। राज्य गठन से लेकर अब तक गजराज ने 1300 लोगों की जानें लील ली हैं. जो असमय ही काल का ग्रास बन गए पर अफ़सोस इसके बावजूद हाथियों व जंगली जानवरों का हमला जारी है. वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार अब तक हाथी और जंगली जानवरों ने एक लाख 90 हजार 800 लोगों को नुकसान पहुंचाया है. इसमें फसल का नुकसान, पशुओं का नुकसान, मकानों का नुकसान और अनाज का नुकसान शामिल हैं.
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जंगली जानवरों के शिकार(मौत) हो चुके लोगों पर इसके एवज में वन विभाग 13 करोड़ रुपये मुआवजा बांट चुका है. 1900 लोग घायल हो चुके हैं, इसके एवज में 3.50 करोड़ रुपये मुआवजा बांटा गया है. 109500 लोगों के फसल का नुकसान, पशु का नुकसान, मकान का नुकसान और अनाज का नुकसान हुआ. इसके एवज में 32 करोड़ रुपये मुआवजा बांटा जा चुका है.
हाथियों पर काबू पाने के लिये वन विभाग योजनाएं तो बना रहा है,लेकिन वह कारगर साबित नहीं हो पा रही हैं।और इस विफल योजना की भरपाई आम लोग अपनी जान माल दे कर चुका रहे है .
हाथियों के भ्रमण के लिये कॉरिडोर (एक प्राकृतिक स्थल से दूसरे प्राकृतिक स्थल तक) तैयार किया जाना था, इसके लिये जीआइएस मैपिंग भी हुई, लेकिन यह कॉरिडोर अब तक नहीं बन पाया है. राज्य के अंदर पूर्वी सिंहभूम, प. सिंहभूम, गिरिडीह और दुमका में कॉरिडोर बनाना था. वहीं अंतरराज्यीय कॉरिडोर उड़ीसा-चाईबासा, उड़ीसा- सारंडा, पूर्णिया-दलमा और सरायकेला- बंगाल में बनाया जाना था. लेकिन यह योजना भी धरी की धरी रह गई.
राज्य गठन के बाद से हाथियों के लिये एलिफेंट रेसक्यू सेंटर भी बनाया जाना था पर वह भी नहीं बन पाया. धनबाद के वन क्षेत्र और दलमा में रेसक्यू सेंटर बनाने का प्रस्ताव था. वन विभाग के अनुसार, एक हाथी दो से पांच वर्ग किलोमीटर में भ्रमण करता है. इस हिसाब से धनबाद का वन क्षेत्र रेसक्यू सेंटर के लिये उचित नहीं है.
आपको बता दें की रेसक्यू सेंटर में हाथियों की अवश्यकताओं को पूरा किया जाता .
पूरे एरिया की फेंसिंग होती ,हाथियों के लिए खाने पीने का पूरा इंतजाम होता है ,हाथियों की सुरक्षा का इंतजाम होता है
हाथियों के पुनर्वास का आभाव भी इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा दे रहा है. हाथियों के भ्रमण का रास्ता बदल गया है . छोटे-छोटे पैकेज में जंगल होने के कारण हाथी भटक रहे हैं और इस तरह की घटनाएं बढ़ रही है.