राहुल मेहता, भारत में हर 15 मिनट पर एक दुष्कर्म की घटना दर्ज होती है. एक अनुमान के अनुसार घटित घटनाओं की संख्या लगभग तिगुनी है. लांछन और व्यवस्था पर अविश्वास के कारण अनेक मामले उजागर ही नहीं होते. जो मामले उजागर होते हैं उसमें भी शारीरिक दुष्कर्म के बाद सामाजिक और मानसिक दुष्कर्म जारी रहते हैं.
कुछ लोग प्रश्न खड़ा करते हैं कि- अकेले क्यों निकली थी? रात को क्यों गई थी? कपड़े कम क्यों पहने थे? लड़कों से दोस्ती ही क्यों की? पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कुछ पैरोकार तो महिलाओं को घर में रहने, पर्दा करने, संस्कारी बनने की नसीहत दे खुद को महान समझने लगते हैं.
अनेक लोग दुष्कर्म को बुरा मानते हैं. लेकिन उनमें से कुछ सवाल करने लगते हैं कि अमुक मामले में आवाज नहीं उठी तो इस मामले में क्यों? अमुक राज्य में ऐसी घटना में शांति थी तो यहां प्रतिरोध क्यों? लेकिन प्रिंस हो या निर्भया, हर घटना खबर नहीं बनती. जो घटना खबर बन भी जाती है उसमें भी लोग अपनी सुविधा, जाति, धर्म राजनीति के अनुरूप प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं या खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं.
कुछ नेता तो गर्म खून और युवा मन का बहाना भी खोज लेते हैं. लेकिन यदि डॉक्टर श्याम प्रकाश जैसे पढ़े-लिखे और सामाजिक तथा राजनीतिक रूप से सक्रिय व्यक्ति दुष्कर्म के आरोप में पकड़े जाते हैं तो पुरुषों को अपनी मानसिकता, यौन कुंठा और दमनकारी मानसिकता पर पुनर्विचार करना होगा. अभिभावकों को भीअपने बच्चे बच्चों के परवरिश के तरीकों पर सोचना होगा. यह घटना राजनैतिक व्यवस्था के लिए भी प्रश्न चिन्ह है. क्या ऐसे लोगों को लगता है कि कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती?
कुछ बांके जवानों का मानना है कि दुष्कर्मी के मां, बहन, बेटियों के साथ दुष्कर्म ही इसका जवाब हो सकता है. यानि एक गलती का जवाब दूसरी गलती। वह भी पुरुषों की सजा महिला को, फिर से एक बार. कुछ उत्साही लोग भी मानते हैं कि कानून का इंतजार करना बेकार है और एनकाउंटर उचित है. उन्हें कानून पर भरोसा भी नहीं. अगर खामी व्यवस्था और कानून में है तो सुधार भी वहीं होनी चाहिए. चाहे मामला दर्ज करने की बात हो, उचित सुरक्षा व्यवस्था, कानून और योजनाओं का उचित क्रियान्वयन या फिर राजनीतिक संरक्षण और भागीदारी में सुधार, सभी में त्वरित सुधार आवश्यक है.
हम और आप भी अपने घरों से पहल करें. राजनीतिक चश्मे, जाति-धर्म के दायरे से ऊपर उठ स्त्री मुद्दे के हल के लिए प्रयास करें. हमें प्रतिफल भी प्रयास के अनुरूप ही मिलते हैं. यदि हम दुष्कर्म जैसे मामलों का हल खोजेंगे तो हमें हल मिलेगा और यदि इसमें जाति, धर्म, समुदाय और राजनीति का आवरण चढ़ाएंगे तो हमें प्रतिफल भी वैसा ही मिलेगा. आंशिक ही सही, कहीं दोषी हम भी तो नहीं?