दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट ने जुलाई में शाह को पत्र भेज कर दिल्ली में खासतौर पर पूर्वोत्तर के लोगों के साथ होने वाले नस्ली भेदभाव का मुकाबला करने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा बनाई गई विशेष शाखा के दायरे से गोरखाओं को बाहर रखने को लेकर चिंता प्रकट की थी। शाह ने बिष्ट के पत्र के जवाब में कहा कि ‘गोरखालैंड और लद्दाख’ के लोगों को लेकर उनकी चिंता पर गौर किया जा रहा है। पत्र के जवाब में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा भेजे गए पत्र में ‘गोरखालैंड’ शब्द के उल्लेख से विवाद पैदा हो गया है। तृणमूल कांग्रेस को इसमें राज्य को बांटने की साजिश नजर आ रही है। हालांकि, भाजपा ने इस आरोप को ‘बेबुनियाद’ करार दिया है।
तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मंत्री गौतम देब ने कहा,’ उन्होंने गोरखालैंड शब्द का इस्तेमाल क्यों किया। पूरे क्षेत्र में गोरखालैंड नाम की कोई जगह नहीं है। ऐसा जान पड़ता है कि जम्मू कश्मीर को बांटने के बाद भाजपा बंगाल को विभाजित करने की योजना बना रही है। लेकिन जब तक यहां तृणमूल कांग्रेस है, राज्य को कोई बांट नहीं सकता।’ वहीं, बिष्ट ने कहा कि गोरखालैंड शब्द के इस्तेमाल का पृथक राज्य के गठन से कोई लेना-देना नहीं है।
गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) 2011 में तृणमूल कांग्रेस सरकार, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार के बीच त्रिपक्षीय समझौते के बाद बना था। ऐसे में यदि वे लोग गोरखालैंड शब्द का इस्तेमाल कर सकते हैं तो हम इस क्षेत्र के बाशिंदों को संबोधित करने के लिए इसका इस्तेमाल क्यों नहीं कर सकते हैं।