पूजा शकुंतला शुक्ला,
BNN DESK: थकी, उदास आंखों में आंसू भरे, लड़खड़ाते कदमों से आज फिर सीता उसके पास गई. करीब जाते ही सीता के सब्र का बांध टूट पड़ा और उसके गले लग कर वह खूब रोई. बोली- “सब ने साथ छोड़ दिया अब बस तुम ही हो मेरे साथ. तुम मुझे छोड़ कर मत जाना. मैं बीमार हूं, मेरा अंत करीब है. जब मैं चली जाऊं तो मुझे सफेद फूलों से सजा कर. भेजना और मेरे जाने के बाद भी इस घर आंगन को ऐसे ही आबाद रखना.”
सीता को अपने चेहरे पर कुछ बूंदों के गिरने का अहसास हुआ. वह प्यार से बोली – “तुम मत रोओ. तुम तो मेरे सहारे हो, मेरे साथी हो, तुम्हारा साथ न होता तो मैं कब की खत्म हो जाती. कितने साल गुजार दिये हैं हमने एक साथ. बरस गुजरते गये, लेकिन यह सिलसिला खत्म नहीं हुआ. देखो आज भी तुम्हारा दिया फूल मैने अपने बालों में लगा रखा है! अच्छा अब चलती हूं कल फिर मिलूंगी.”
इतना कहकर सीता चल पड़ी, लेकिन कुछ तो था जो आज उसकी समझ से परे था. मन नहीं था उसको जाने का, लेकिन सांझ ढ़ल रही थी और घर भी जाना था. अमुमन वह जाते वक्त पलटकर नहीं देखती थी पर आज चंद कदम चलकर ही सीता पलटी और जी भरकर उसको निहार लिया. फिर चल पड़ी. घर पहुंचकर फिर वही ताने, आंसू और अकेलापन उसे झेलना था- रोज की तरह.
रात को सब उसे उसके हिस्से की रोटी देकर चले गये और वह उसे किसी तरह चबा कर पानी से घोट गयी. किसी तरह तकिए पर सर रखा और सोने की कोशिश करने लगी. आज आंखों से आंसू कुछ ज्यादा ही निकल रहे थे. तकिया भीग चुका था. कौन पोंछता उसके आंसू! कोई नहीं था उसके पास. तभी हाथ से लग कर उसके बालों के बीच छुपा वह फूल निकलकर उसके चेहरे के उपर आ गया. ठीक अंखों के नीचे. और उसके सारे आंसू उसकी पंखुरियों ने सोख लिये. उस फूल को हाथ में थाम जाने वह कब सो गयी. सुबह सब के जागने के बाद भी जब सीता अपने कमरे से नहीं निकली तो घर के लोग उसे जगाने गये. आखिर घर का काम कौन करता वह सोती रहती तो.. लेकिन आज सीता हमेशा के लिये सो चुकी थी.
अगर जमाने का डर न होता तो सीता के बच्चे उसको रद्दी सामान समझ कर फेंक आते कहीं. किसी तरह खर्च का रोना रोकर उसकी अंतिम यात्रा की तैयारी की गयी. किसी की आंख से एक कतरा भी नहीं गिरा आंसू का. लेकिन कोई था जो उसका अपना था. वही जिससे कल गले लगकर रोयी थी सीता! वह, जो चुपके से रोज उसको एक फूल दिया करता था. वह था उसका सच्चा साथी, उसकी संतान, उसका और उसके पति का लगाया हुआ गुलायची का पेड़…
आज उसकी ही छांव से हो कर अपनी अंतिम यात्रा शुरू करनी थी सीता को… अर्थी के पेड़ के नीचे आते ही, एक हवा का झोंका आया और सीता का पूरा शरीर गुलायची के सफेद फूलों से भर गया. और हां, ओस की कुछ बूंदें भी छुपा रखी थी उस पेड़ ने अश्रुपूरित श्रद्धांजलि देने के लिए .
सीता चली गयी, हमेशा के लिये. परन्तु अपना वादा निभाने को वह आज भी खड़ा है सीता के आंगन में. बस उसकी सुंदरता और खूबसूरती पहले जैसी नहीं है. सीता अपने साथ उसकी खुशबू का कुछ भाग हमेशा के लिये लेकर चली गयी.
अब गुलायची के पेड़ से कोई गले नहीं मिलता. न ही उसके फूलों को प्यार से अपने बालों में लगाता है. अधूरा है वह अब हमेशा के लिए अपनी सीता के बिना.