पूजा शकुंतला शुक्ला,
BNN DESK: भारतीय स्त्री की पहचान साड़ी वस्त्र मात्र नहीं बल्कि उसके गुणों का सार है. उसकी मर्यादा का प्रतीक है. वर्तमान समय में साड़ी पहनने वाली स्त्री के लिए लोगों की क्या राय है और बदलता समय कैसे हमें हमारी सभ्यता और संस्कृति से दूर कर रहा है इसी बात को दर्शाती है पूजा शकुंतला शुक्ला द्वारा रचित कविता ……साड़ी
क्या है साड़ी का भाव
पांच गज की साड़ी में
लिपटी स्त्री
किसी को रूढ़िवादी
तो किसी को गवई
लगती है
पांच गज को तन से
लपेट कर स्वछंद
चलने वाली स्त्री
यह संदेश देती है
की अपने विशाल
हृदय में वो समेट
लेगी पूरा घर -परिवार
जैसे एक गांठ के
ऊपर टिका होता है
पूरी साड़ी का अस्तित्व
उसी प्रकार
उसे धारण करने
वाली स्त्री
गांठ बांध कर
चलती है
मर्यादा की
पांच गज को संभालना
कोई मामूली काम नहीं
तभी तो जो ज्यादा हो उसे
खोंस लेती है नाभि के निकट
ताकि जुड़ी रहे उस
नाल से जिसने उसे
मूर्त रूप दिया और
भर दिए हैं संस्कार
घर आंगन को अन्न- धन
से भरे रखने के
कमर को स्पर्श करती
साड़ी उभार देती है
उसकी सुंदरता
और छाती से लग कर
सलीके से कितने रंग
उभारती है साड़ी
नारीत्व की शोभा
ममत्व की सुंदरता
को इंगित करती
सभ्यता को बदन पर
लपेटे हरी -भरी
सृष्टि सी लगती है स्त्री
पल्ला सीधा हो या उल्टा
दोनों में ही दुनिया के सारे
सुख निहित होते है
रूप मां का हो,
प्रेमिका या पत्नी
या फिर बहन और बेटी का