रांची: बड़कागढ़ (जगन्नाथपुर) ईस्टेट में सन् 1642 ई. से दुर्गा पूजा ऐतिहासिक परंपराओं के साथ मनाया जाता रहा है. बड़कागढ़ ईस्टेट की इष्ट देवी मां भगवती चिंतामणि एवं मां चंडिका की पूजा तांत्रिक पद्धति से राजपुरोहित के नेतृत्व में की जाती है. बड़कागढ़ ईस्टेट के ठाकुर पूजा के यजमान होते हैं.
विगत 35 वर्षों से ठाकुर नवीन नाथ शाहदेव यजमान हैं. 1857 ई. में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जननायक स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव बड़कागढ़ ईस्टेट के सातवें ठाकुर थे. ठाकुर ऐनी नाथ शाहदेव बड़कागढ़ ईस्टेट के प्रथम ठाकुर थे, जिन्होंने ऐतिहासिक धार्मिक श्री श्री जगन्नाथ स्वामी के विशाल मंदिर की स्थापना की.
जगन्नाथपुर मंदिर की स्थापना उदयपुर परगना के जगन्नाथपुर मौजा में सन् 1691 ई. में की गई. ठाकुर एनी नाथ द्वारा 1642 ई. से मां भगवती चिंतामणि व मां चंडिका की पूजा प्रारंभ किया गया था. डोली का पर्दा राज परिवार की बहू की साड़ी से ढ़का जाता है.
ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के फांसी होने के बाद उनके पुत्र ठाकुर कपिल नाथ शाहदेव ने 1880 ई. से आनी मौजा क्षेत्र में मां भगवती चिंतामणि (दुर्गा) की पूजा विधि विधान से प्रारंभ की. उसी समय से बड़कागढ़ ईस्टेट के ठाकुरों, राज परिवार के सदस्यों और ईस्टेट के विभिन्न मौजा के पाहन, कोटवार, महतो, पनभोरा आदि के द्वारा पूजा को सैकड़ों बर्षो से संपन्न कराते आ रहे हैं.
मां भगवती चंडिका का आविर्भाव मान-पत्ता, अशोक पत्ता, बेलपत्र, बेल, डूमर, पाकड़, आम्रपाली आदि से किया जाता है. मां को बांस की बनी डोली में बैठाकर ठाकुर निवास बड़कागढ़ जगन्नाथपुर से आनी सीमान स्थित प्राचीन देवी घर विग्रहों के साथ लाया जाता है.
माता के शोभायात्रा में शंख, ढ़ोल, नगाड़ा, सहनाई, घंट, घंटी, तुरही जैसे पारंम्परिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग होता है. वहीं भक्तों के जयकारों से वातावरण गूंजयमान हो जाता है. यह प्राचीन परम्परा हैं कि मां की डोली का पर्दा राज परिवार की बहू की साड़ी से ढका जाता है. मां की शोभायात्रा शुक्रवार को निकाली जाएगी.