यूपी में फर्जी लाइसेंस बनाने वाले गिरोह का पुलिस ने पर्दाफाश किया है। आरोपित लाइसेंस बनवाने वाले इच्छुक व्यक्ति से दिखावे के लिए फार्म भरवाकर उसकी आइडी लेते थे और बिना पुलिस व प्रशासन की जांच के किताब छपवाकर लाइसेंस बनाते थे। इसके बाद वह असलहा अनुभाग में तैनात कर्मचारियों की मदद से उस पर दिखावे के लिए 18 अंकों का गलत यूआइएन नंबर अंकित करा देते थे। एक लाइसेंस बनवाने की एवज में वह दो से पांच लाख रुपये तक लेते थे।
फर्जी शस्त्र लाइसेंस की पटकथा 12 साल पहले लिख ली गई थी। शाहजहांपुर के थाना सहरामऊ उत्तरी थाने का जब वर्ष 2007 में बंटवारा हुआ और कुछ थाना क्षेत्र पीलीभीत में चला गया तभी आरोपितों के हाथ ‘जैकपॉट’ लग गया था। थाना क्षेत्र का बंटवारा होने के साथ ही आरोपितों ने लाखों-करोड़ों रुपये कमाने की योजना बना ली थी। वर्ष 2007 में सहरामऊ के बंटवारे के साथ ही कलक्ट्रेट के शस्त्र अनुभाग से इस थाना क्षेत्र के लाइसेंस का रजिस्टर गायब किया जाना भी इसी योजना का एक हिस्सा था।
वर्ष 2007 तक के असलाह अभिलेख शाहजहांपुर प्रशासन के पास मौजूद न होने का फायदा ही गिरोह ने उठाया और इसी थाना क्षेत्र के ताबड़तोड़ लाइसेंस बनवाने शुरू कर दिए। गिरोह ने जितने भी फर्जी लाइसेंस बनवाए हैं वह सहरामऊ उत्तरी थाना क्षेत्र के पते पर ही हैं। इसके साथ ही सभी फर्जी शस्त्र लाइसेंस को जारी करने की तिथि 2007 या इससे पहले की अंकित की गई है। गिरोह के पास से पुलिस ने जो फर्जी लाइसेंस व लाइसेंस की छायाप्रति बरामद की है उनकी जारी करने की तिथि भी वर्ष 2007 ही अंकित है।
2007 के बाद नया रिकॉर्ड बनने के बाद गिरोह ने इससे अगली अवधि के कोई लाइसेंस नहीं बनवाए। वहीं यह भी तय माना जा रहा है कि फर्जी लाइसेंस बनाने वाले इस गिरोह का नेटवर्क उत्तर प्रदेश समेत अन्य प्रदेशों में भी फैला हुआ है। गिरोह के सदस्य लाइसेंस तो शाहजहांपुर के पते पर जारी कराते हैं लेकिन इन लाइसेंस को अन्य जिलों व प्रदेशों में दर्ज कराते हैं। गाजियाबाद में भी लाइसेंस दर्ज करने के आवेदन की जांच में मामले का पर्दाफाश हुआ। अंदेशा जताया जा रहा है कि आरोपित अब तक सैकड़ों लाइसेंस बना चुके हैं और इस एवज में करोड़ों रुपये ठग चुके हैं।
लाइसेंस जारी करने के बाद आरोपित संदेह से बचने के लिए लाइसेंस का नवीनीकरण भी कराते थे। शाहजहांपुर की कलक्ट्रेट में शस्त्र अनुभाग के कर्मचारी इस काम में आरोपितों की मदद करते थे। फर्जी लाइसेंस की समय-सीमा समाप्ति के साथ ही आरोपित उसे नवीनीकरण कर नई समय-सीमा भी तय कराते थे। इससे फर्जी लाइसेंस का किसी को शक नहीं होता था और आसानी से पकड़ में भी नहीं आता था। आरोपितों ने फर्जी लाइसेंस की किताबें भी छपवाई हुई थीं । यह किताब बिल्कुल असली लाइसेंस की किताब दिखती हैं।
फर्जीवाड़ा पकड़ में आने के बाद जिलाधिकारी अजय शंकर पांडेय ने कलक्ट्रेट में असलाह अनुभाग में रखी सभी अलमारियों को सील करा दिया है। यह सभी अलमारियां जब तक मामले की जांच चलेगी तब तक सील रहेंगी। असलाह अनुभाग के दस्तावेजों से किसी प्रकार की छेड़छाड़ न की जा सके, इसके चलते अलमारियों को सील कराया गया है।
पुलिस जांच में आया है कि आरोपितों ने फर्जी हस्ताक्षर व फर्जी मुहर पर पूरा फर्जीवाड़ा किया। वर्ष 2007 में शाहजहांपुर में जो जिलाधिकारी, सिटी मजिस्ट्रेट व एडीएम तैनात थे, उनके नाम, हस्ताक्षर व मुहर पर ही सभी लाइसेंस जारी किए गए। आरोपितों ने उसी प्रकार के साइन करना सीख लिए थे और मुहर बनवा ली थीं। सरगना ने बिल्कुल ओरिजनल जैसी लाइसेंस की किताबें भी छपवाई थीं।
अजय शंकर पांडेय (जिलाधिकारी) के मुताबिक, आरोपितों ने काफी बड़ी संख्या में फर्जी लाइसेंस बनाए हैं। इस संबंध में हमने प्रमुख सचिव गृह को अन्य जनपदों में भी लाइसेंस की जांच कराने के लिए पत्र लिखा है। गिरोह का नेटवर्क अन्य जिलों व प्रदेशों में भी फैला होने की आशंका है।
कुछ समय पहले शाहजहांपुर से बने कुछ लाइसेंस गाजियाबाद में दर्ज कराने के लिए प्रशासन को आवेदन मिले थे। प्रशासन ने इस लाइसेंस की यूआइएन (यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर) की जांच कराई तो नंबर गलत मिले। डीएम ने जिलाधिकारी शाहजहांपुर को पत्र लिखा था।