नई दिल्ली: पहले देवता दीपावली मनाते थे. बाद में यह परंपरा बंद हो गई थी.1986 में इसे फिर से शुरू किया गया और तब से लगागात देव दीपावली मनाई जा रही है. बनारस की देव दीपावली में देश के कोने-कोने से लोग इसे देखने जाते हैं। इस बार कोविड-19 के संक्रमण के बाद इस पर संशय के बादल मंडरा रहे थे, लेकिन यूपी के धर्म भीरु मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र को देव दीपावली मनाने की अनुमति दे दी है.
देव दीपावली आयोजन समिति से जुड़े वागीश दत्त द्विवेदी ने बताया कि कोविड-19 संक्रमण के बाद सरकार द्वारा निर्धारिक प्रोटोकॉल का पालन करते हुए भव्य देव दीपावली मनाने की तैयारी शुरू की जा चुकी है. वागीश दत्त गंगा नदी के स्वच्छता अभियान से भी जुड़े हैं और बनारस में घाटों की साफ सफाई समेत अन्य पहलुओं पर बहुत संवेदनशील रहते हैं.
30 नवंबर को है देव दीपावली
इस बार दीपावली का त्योहार 14 नवंबर को है. इससे छह दिन बाद पूरा पूर्वांचल सूर्य उपासना और छठी मईया के व्रत त्योहार को मनाता है. उत्सव उमंग में जीने वाली वाराणसी दीपावली के 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाती है.
ऐसा विश्वास है कि इसी दिन देवता भी वाराणसी में प्रवेश करते हैं, क्योंकि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा नदी का प्रवाह नदी के घाटों के सामानांतर रहता है. यह परंपरा 20वीं सदी में 1915 में पंचगंगा घाट पर हजारों दिए जलाकर शुरू की गई थी, लेकिन बाद के वर्षों में इसे कभी लोग मना पाए और कभी व्यवधान भी आया.
1986 में यह परंपरा फिर शुरू की गई और तब से लगातार चली आ रही है. 1990 के दशक में इसके साथ मां गंगा की आरती की भव्यता जुड़ गई है. देव दीपावली के समय गंगा के घाटों से लोग गंगा नदी में हजारों-लाखों की संख्या में दीपदान करते हैं. गंगाजी के पवित्र जल में रविदास घाट से राजघाट तक जलते, बहते दीपों की छटा बड़ा मनोरम दश्य बनाती है.
क्या होता है देव दीपावली में
21 ब्राह्मण, वैदिक मंत्र और 41 युवतियों की प्रस्तुति सबसे मोहक पल होता है. शुरूआत भगवान गणेश की वंदना से होती है. वाराणसी के सभी शिवालय, मंदिर, भवन, धार्मिक प्रांगण, घाट फूल-मालाओं, लड़ियों से सजे होते हैं.
वाराणसी का गीत-संगीत घराना और प्रख्यात कलाविद अपनी प्रस्तुति देते हैं. गंगा आरती दूसरा सबसे भव्य नजारा है. गंगा जी में दीपदान इसे अलौकिक रूप दे देती है. शहीदों के सम्मान में दशाश्वमेध घाट पर पुष्प माला अर्पण, महाराज वाराणसी का आना, स्नान करना, सभी घाटों पर लोगों का हूजूम पूरे बनारस परिक्षेत्र को जीवंत बना देता है.
यह समाजिक सहयोग महोत्सव है वाराणसी के लोगों और इसके आयोजन कर्ताओं ने उत्सवधर्मी क्षेत्र में देव दीपावली को सामाजिक सहयोग महोत्सव का रूप देकर इसे काफी पहले ही भव्य बना दिया था. ऐसा लगता है जैसे आकाश गंगा ही काशी में उतर आई है. इस दिन महाराज वाराणसी भी आकर गंगा में स्नान करते हैं और पारंपरिक रस्म पूरी करते हैं.
पौराणिक मान्यता में कहा जाता है कि वाराणसी के राजा दिवोदास ने देवताओं का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया था. तब तीनों लोकों में त्रिपुरासुर का राज था. तब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर से तीनों लोकों को मुक्ति दिलाने के बाद रूप बदलकर गंगा जी में स्नान किया था.
यह पता चलने पर दिवोदास ने भी देवताओं से न केवल प्रतिबंध हटाया, बल्कि खुद आकर गंगाजी में स्नान किया. बताते हैं कि प्रतिबंध हटने के बाद देवताओं ने भी बनारस में गंगा जी के किनारे दीपावली मनाई.