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बचाव के लिए अब तक माकूल इंतजाम नहीं, नहीं बने डिजास्टर मैनेजमेंट कॉरिडोर
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एक तड़ित रोधक यंत्र लगाने में खर्च आता है डेढ़ से दो लाख रुपये
रांची : झारखंड में रांची, खूंटी, हजारीबाग, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम ठनका के लिए सबसे खतरनाक माने गये हैं। पांचों जिले थंडरिंग जोन में हैं। इन जिलों में ठनका गिरे, तो जान आफत में आ सकती है। थंडरिंग जोन की पहली श्रेणी में हजारीबाग है। झारखंड में दो तरह के थंडरिंग जोन हैं। इसमें लो क्लाउड (कम ऊंचाई के बादल) और माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग शामिल हैं। लो क्लाउड थंडरिंग धरातल से 80 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर होती है, जबकि माइक्रोस्पेरिक थंडरिंग की गतिविधि धरातल से 80 किलोमीटर से अधिक ऊंचाई पर होती है। लेकिन राज्य सरकार प्रदेश में लाइटनिंग (ठनका) से बचाव के लिए अब तक माकूल इंतजाम नहीं कर पायी है।
पिछले साल जुलाई से लेकर इस साल अगस्त तक में लाइटनिंग से प्रदेश में 265 लोगों की मौत हो चुकी है। इस पर राज्य सरकार लगभग 10.60 करोड़ रुपये मुआवजा में खर्च कर चुकी है। सरकार ठनका से हुई मौत पर मुआवजा देने के एवज में सालाना 11 से 12 करोड़ रुपये खर्च करती है। ठनका से मौत होने पर मृत व्यक्ति के परिजन को चार लाख रुपये देने का प्रावधान है। सरकार ने ठनका से बचाव के लिए कई योजनाएं बनायी। लेकिन योजनाएं ठनका प्रभावित इलाकों में धरातल पर नहीं उतर पायीं। सिर्फ देवघर में छह और रांची के नामकुम में एक तड़ित रोधक यंत्र ही लगाया जा सका। योजना के तहत रांची के पहाड़ी मंदिर और जगन्नाथपुर मंदिर में भी तड़ित रोधक यंत्र लगाया जाना था।
छह जिलों में नहीं बना इंडस्ट्रीयल डिजास्टर मैनेजमेंट कॉरिडोर
छह जिलों में इंडस्ट्रीयल डिजास्टर मैनेजमेंट कॉरिडोर नहीं बन पाया। इन जिलों में योजना यह थी कि इस कॉरिडोर के तहत आनेवाली औद्योगिक इकाईयां अपने उद्योगों के साथ आस-पास के क्षेत्र के लोगों को प्रशासन की सहायता से आपदा से निपटने के लिए जागरूक करतीं। साथ ही आपदा प्रबंधन (डिजास्टर मैनेजमेंट) का प्रशिक्षण भी देतीं। इसके तहत आपदा से निपटने के लिए संचार व्यवस्था दुरुस्त करने की भी योजना थी। योजना के तहत धनबाद-बोकारो, रांची-रामगढ़ और पूर्वी व पश्चिमी सिंहभूम में कॉरिडोर बनना था। इन छह जिलों में एक राहत केंद्र होता। राहत केंद्र में भोजन और दवाइयों की व्यवस्था होती।
खनिज क्षेत्रों में लाइटनिंग अरेस्टर ग्रिड भी नहीं लगा
ठनका से बचाव के लिए खनिज बहुल क्षेत्रों में लाइटनिंग अरेस्टर ग्रिड स्थापित करने की योजना थी। लेवल वन में पूर्वी सिंहभूम और पश्चिमी सिंहभूम को रखा गया था। लेवल टू में रामगढ़, हजारीबाग, बोकारो, रांची और कोडरमा को रखा गया था। लेवल थ्री में गढ़वा, लातेहार, पलामू, लोहरदगा और गुमला को रखा गया था। इसके अलावा लाइटनिंग से बचाव के लिए जिलों के साथ प्रखंड स्तर पर भी एक्शन प्लान बनाने की योजना बनाई गई थी।
क्यों लाइटनिंग अरेस्टर ग्रिड की है जरूरत
आपदा विभाग ने इसके पीछे तर्क दिया था कि खनिज क्षेत्र में लाइटनिंग (ठनका) कंडक्टर का काम करती है। यह खनिज की ओर काफी तेजी से आकर्षित होता है। इस कारण खनिज बहुल क्षेत्रों में लाइटनिंग अरेस्टर ग्रिड लगाने की योजना बनाई गई थी। जो ठनका को भूमिगत कर देता।
क्यों बनी थी तड़ित रोधक यंत्र लगाने की योजना
आपदा विभाग का तर्क था कि पहले जो तड़ित चालक लगाये जाते थे, वह छत या भवन के उपरी हिस्से में तांबे का त्रिशुलनुमा यंत्र लगा होता था। इसी के सहारे अर्थिंग को जमीन के अंदर ले जाया जाता था, लेकिन यह उतनी कारगर साबित नहीं हो पाई। जबकि तड़ित रोधक ठनका को भूमिगत करने में सक्षम है।
क्या है तड़ित रोधक
तड़ित रोधक में एक एम्मीमीटर लगा होता है। जो एक इलेक्ट्रॉनिक फील्ड बनाता है। यह बिजली बनने से पहले ही उसे नष्ट कर देता है। यह यंत्र 240 मीटर की परिधि को कवर करने में सक्षम है। एक तड़ित रोधक लगाने में डेढ़ से दो लाख रुपये तक का खर्च आता है।
देशभर में ठनका से 3000 लोगों की मौत
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के अनुसार भारत में अन्य सभी आपदाओं के मुकाबले वज्रपात से सबसे ज्यादा मौत होती है। वर्ष 2018 में 3000 लोगों की मौत वज्रपात से हुई है। वर्तमान में देश के 400 से ज्यादा जिले वज्रपात प्रभावित हैं। ये जिले वज्रपात के करंट तीव्रता के स्केल वन के क्षेत्र में आ चुके हैं। इन जिलों में करंट की तीव्रता 1.3 बिलियन वोल्ट नापी जा चुकी है। झारखंड सहित उत्तर प्रदेश बिहार, मध्य प्रदेश इनके मैदानी पठारी और पहाड़ी क्षेत्रों में वज्रपात के कारण हुई मौतों की संख्या में अचानक भारी वृद्धि हुई है।