राँची:- 4 जनवरी: विश्व विख्यात पुस्तक “योगी कथामृत” के लेखक परमहंस योगानंद का जन्म दिन कल है. आज से सौ साल पहले सन 1920 में परमहंस जी ने अमेरिका के अपने शिष्यों और छात्रों को क्रिया योग के प्रशिक्षण की जो शुरुआत की वह आज पूरी दुनिया में फैल चुका है. इसके पहले वे भारत में अपना प्रशिक्षण प्रारंभ कर चुके थे. परमहंस योगानंद का जन्म पांच जनवरी 1893 को गोरखपुर में बंगाली परिवार हुआ था. बचपन का नाम मुकुंद घोष था.
भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना वे सन 1917 में ही कर चुके थे. सन् 1920 में उन्हें रांची आश्रम में ध्यान के दौरान उन्होंने अमेरिकी लोगों को देखा. उसके कुछ ही दिन बाद उन्हें अमेरिका के धार्मिक उदारवादियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि के रूप में भाग लेने के लिए बुलाया गया. वे गुरु के पास आज्ञा लेने गए तो गुरु स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने उन्हें कहा- “सभी दरवाजे तुम्हारे लिए खुले हैं. अभी नहीं गए तो कभी नहीं जा सकोगे.” इसके बाद महावतार बाबा जी ने उन्हें अमेरिका जाने के लिए आशीर्वाद दिया और कहा- “तुम ही वह हो जिसे मैंने पाश्चात्य जगत में क्रियायोग के प्रसार करने के लिए चुना है. बहुत वर्ष पहले (सन 1894) मैं तुम्हारे गुरु युक्तेश्वर से एक कुंभ मेले में मिला था और तभी मैंने उनसे कह दिया था कि मैं तुम्हें उनके पास शिक्षा ग्रहण के लिए भेज दूंगा.”
अमेरिका में योगानंद जी ने दैनिक ध्यान, विशेष रूप से क्रिया योग के प्रचार- प्रसार के लिए सेल्फ- रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना की. भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया की स्थापना कर ही चुके थे. क्रिया योग विज्ञान महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग पर आधारित है. प्राण- शक्ति पर नियंत्रण और अनावश्यक इच्छाओं के त्याग द्वारा भक्त बाहरी दुनिया के सभी संवेदी विकर्षणों को पार कर जाता है. जैसा कि तैत्तिरीय आरण्यक में लिखा है- “नेत्रहीन ने मोती में छेद किया, लूले ने उस छेद में धागा पिरोया, ग्रीवा विहीन ने उस माला को
पहना और मूक व्यक्ति ने उसकी प्रशंसा की.” तात्पर्य यह है कि अध्यात्मिक अनुभव और परमसत्य, इंद्रियातीत और बुद्धि से परे होते हैं. उन्हें पांच स्थूल इंद्रियों और सांसारिक बुद्धि से नहीं, अपितु अंतर्ज्ञान से आत्मा के चक्षु से देखा और जाना जा सकता है.
योगानंद जी की शिक्षाओं में भक्ति योग, कर्म योग और ज्ञान योग के विषय में तो है ही भारत के प्रधान दर्शनों जैसे सांख्य और वेदांत तथा विश्व के अन्य प्रमुख दर्शनों के मूलभूत विचार और आदर्श भी सम्मिलित हैं. योगानंद जी की शिक्षाएं आधुनिक युग के लिए अमृत तुल्य हैं. – परमहंस योगानंद जैसे ईश्वर- प्राप्त महामानव की जयंती पर हम उन्हें एक ही भेंट चढ़ा सकते हैं- उनकी शिक्षाओं को यथाशक्ति अपने जीवन में उतारने का संकल्प लेकर. उनका कथन है कि आप योग प्रविधियों का अभ्यास कीजिए और स्वयं देखिए कि मेरी बातें कितनी सच हैं.
परमहंस जी की शिक्षाओं ने असंख्य लोगों के जीवन को पूरी तरह बदल दिया. यह चमत्कारी बदलाव योगदा सत्संग सोसाइटी/सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के जरिए आज भी जारी है.