भोपाल: मध्यप्रदेश में वनाधिकार अधिनियम के तहत 3 लाख 60 हजार वनवासी परिवारों को वनभूमि के अधिकार-पत्र पाने से वंचित होना पड़ा है, इन वंचित लोगों को उनका हक दिलाने के लिए सरकार की ओर से कवायद तेज कर दी गई है। निरस्त दावों के पुनर्परीक्षण के लिए सरकार ‘वनमित्र’ सॉफ्टवेयर का सहारा ले रही है।
वनवासी परिवारों का वर्षो से वनभूमि पर कब्जा रहा है, मगर उन्हें मालिकाना हक हासिल नहीं हो पाया था। तमाम सामाजिक संगठनों ने संघर्ष का रास्ता तय किया, जिसके चलते अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वनाधिकारों की मान्यता) अधिनियम-2006 बना। इस वनाधिकार में लिखा गया है कि वनभूमि में जहां लोग 13 दिसंबर, 2005 से पहले तीन पीढ़ियों से निवास कर रहे हों, उन्हें दावा-प्रपत्र के साथ इसका प्रमाण भी प्रस्तुत करना चाहिए।
अधिनियम के अनुसार, लोगों को दो तरह के अधिकार दिए जा सकते हैं। पहला व्यक्तिगत और दूसरा सामूहिक। व्यक्तिगत अधिकार के लिए वनवासी को अपनी पुश्तैनी भूमि, मकान, खेती योग्य जमीन के लिए दावा फॉर्म भरना होगा। वहीं वनग्राम और ग्रामसभा उस जंगल पर अधिकार के लिए सामूहिक दावा कर सकता है, जहां से वे चारापत्ती, जलावन, हक-हकूक की इमारती लकड़ी लेते हैं। उसमें उन गौण वन उत्पादों पर भी सामूहिक दावा किया जा सकता है, जिसे लोग पारंपरिक रूप से संग्रहण कर बेच सकते हैं।
मध्यप्रदेश में लगभग छह लाख परिवारों ने वनभूमि का हक पाने के लिए आवेदन किए। प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अब तक दो लाख 27 हजार 185 वन निवासियों को व्यक्तिगत और 27 हजार 967 को सामुदायिक वन अधिकार-पत्र वितरित किए गए हैं। वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी, 2019 में तीन लाख 60 हजार आवेदनों को निरस्त कर दिया था।
वनाधिकार पत्र भरने के लिए आदिम जाति कल्याण विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया था। इस तरह आवेदनपत्र भरवाने की जिम्मेदारी इसी विभाग को निभाना थी, मगर विभाग ने इस जिम्मेदारी को बेहतर तरीके से नहीं निभाया।
राज्य के आदिम जाति कल्याण मंत्री ओंकार सिंह मरकाम भी मानते हैं कि आवेदन फॉर्म उपलब्ध कराने का काम सरकारी स्तर पर किया जाना था और फॉर्म ग्रामीणों को भरना था, लेकिन सरकारी स्तर पर इस पर बेहतर तरीके से अमल नहीं किया गया।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फरवरी, 2019 में निरस्त किए गए तीन लाख 60 हजार आवेदनों का राज्य सरकार ने पुनर्परीक्षण करने की कवायद तेज कर दी है, ताकि इनकी ओर से फिर दावा किया जा सके कि वे कितने वर्ष से वनभूमि पर काबिज हैं और वनाधिकार पत्र पाने की उन्हें पात्रता है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ की अध्यक्षता में बीते सप्ताह हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में वन अधिकार अधिनियम-2006 के तहत निरस्त दावों के बेहतर परीक्षण के लिए पूरी व्यवस्था कम्प्यूटरीकृत करने के लिए महाराष्ट्र नॉलेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा तैयार किए गए ‘वनमित्र’ सॉफ्टवेयर को एकल निविदा के तहत खरीदने की मंजूरी दी।
मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद ही प्रदेश में आदिम-जाति कल्याण विभाग ने वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत निरस्त दावों के पुनर्परीक्षण के लिए ‘वनमित्र’ सॉफ्टवेयर विकसित किया है। सरकार का मानना है कि सॉफ्टवेयर द्वारा परीक्षण से दावों के निराकरण में त्वरित गति आएगी और पारदर्शिता भी रहेगी। विभाग ने इसके लिए अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया और उन्होंने 3 लाख 60 हजार दावों के पुनर्परीक्षण का कार्य शुरू किया है।
राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का मानना है कि वनभूमि पर निवास करने वाले बहुसंख्यक जनजातीय वर्ग से है, इस वर्ग की आजीविका का साधन जंगल रहे हैं। राज्य में साढ़े तीन लाख से ज्यादा परिवारों को वनाधिकार पत्र न मिलने पर इन परिवारों को बेदखल कर दिया जाएगा, जिससे राज्य सरकार के खिलाफ आदिवासियों में असंतोष पनपेगा।
आदिवासी समुदाय अब तक कांग्रेस का स्थायी वोटबैंक रहा है। बीते विधानसभा चुनाव में भी इस वर्ग ने कांग्रेस का साथ दिया। लिहाजा, कांग्रेस किसी भी स्थिति में इस वर्ग की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहती। इसलिए उसने इन परिवारों को समस्या से मुक्ति दिलाने और अपने वोटबैंक को बनाए रखने के लिए यह कवायद तेज की है।