दिल्ली: दो साल पहले पुलवामा आतंकी हमले में बलिदान हुए सीआरपीएफ की 76वीं बटालियन के हेड कांस्टेबल सुखजिंदर सिंह के ढाई साल के मासूम बेटे की तोतली बातें आंसू के साथ ही गर्व से भर देते हैं. ढा़ई साल का मासूम खेल-खेल में रंगों में दौड़ रहे बहादुर पिता के खून का अहसास देता है. वह घर के आंगन में खिलौने वाली पिस्तौल से खेलते हुए कहता है, ‘मैं वी डैडी वांग देश दी सेवा करांगा. एह मेरी बंदूक दुश्मनां दा खात्मा करण लई ए. ( मैं भी डैडी की तरह देश की सेवा करुंगा. यह मेरी बंदूक दुश्मनों का खात्मा करने के लिए है.)’
सुखजिंदर जब देश पर कुर्बान हुए थे तो गुरजोत करीब छह माह का था. पिता को उसने तस्वीरों से ही पहचाना है. पिता को पास नहीं देखकर वह अपनी मां से उनके बारे में पूछता है. मां के यह कहने पर कि वह देश की सेवा और दुश्मनों का खात्मा करने गए हैं तो नन्हा बालक अपनी खिलौने वाली पिस्तौल ले आता है और खेलते हुए थी वीरता की झलक दिखा जाता है.
गुरजोत दे डेडी, तूहानूं बिछड़ेयां दो साल लंघ गए, तुहाडी याद खून दे आंसू रुलांदी ए
सुखजिंदर की पत्नी सरबजीत कौर का असमय ही अपना सुहाग उजड़ जाने का दर्द अब भी उभर आता है. पति को याद करते हुए वह कहती है, ‘ गुरजोत दे डेडी, तूहानूं बिछड़ेयां दो साल लंघ गए णे. पर तुहाडी याद मैनूं खून दे आंसू रुलांदी ए. तुहाडा गुरजोत बार-बार एही पुछदा ए कि डेडी क्यों नईं आउंदे. उस दी एस गल्ल दा ओस वेले मेरे कोल कोई जवाब नयी हुंदा. (गुरजोत के डैडी, आपको बिछड़े दो साल हो गए. लेकिन आपकी याद मुझे खून के आंसू रुलाती है. आपका गुरजोत बार-बार यही पूछता है कि डैडी क्यों नहीं आते हैं. उसकी इस बात का मेरे पास कोई जवाब नहीं होता.)’