जय शारदे माँ शारदे,
अज्ञान तम को वार दे।
माँ शुष्कआतप कंठ में,
वाणी मधुर रसधार दे।
जय शारदे माँ शारदे।
जय शारदे माँशारदे।।
उमा रमा ब्रह्म चारिणी,
माँ तू पुस्तिका धारिणी।
श्वेत वसनी पद्मासना,
माँ तुहीं हंस सवारिणी।
राग व रागिनी सुप्त हैं,
मन में तनिक झंकार दे।
जय शारदे माँ शारदे,
जै विद्या बुद्धि विशारदे।
जहां’ सत्य शिव का वास हो,
सौंदर्य का ही दास हो।
साहित्य जिसकी साधना,
जिस वाणी पर विश्वास हो।
जो सत्य शिव सुंदर लिखे,
माँ ऐसा साहित्यकार’ दे।
जय शारदे माँँ शारदे।
जय ज्ञान बुद्धि विशारदे।।
नव गीत मे माँ तान हो,
साहित्यिकसब विधान हो।
हो रही कविताएं कुंठित,
भावों का नया बिहान हो।
अकविता के उद्धि उमगे,
आ कविता को सँवार दे।
जय शारदे माँ शारदे,
सद्बुद्धि दे सुविचार दे।।
जिसका दुषित मन प्राण हो,
जिसका श्रवण विषपाण हो।
जो विष पुरित कंचन कलश ,
कर्कश कुटिल पाषाण हो।
उस गरल सम लेखनी को,
सुन्दर विशुद्ध विचार दे।
जय शारदे माँ शारदे,
वाणी मेरी सुधार दे।।
जय शारदे माँ शारदे।
जय शारदे माँ शारदे।।