BNN DESK: भारत धर्म प्रधान देश है. प्राचीन काल में हमारी धारणा थी- “धर्मो रक्षति रक्षितः.” अर्थात् रक्षा किया गया धर्म हमारी रक्षा करता है. यह बात आज भी सत्य है, क्योंकि हमारे पूर्वजों द्वारा रक्षित धर्म के आधार पर आज लाखों करोड़ों लोगों की आजीविका चलती है अंतर यह है कि पहले धर्म आत्मा में समाहित था आज प्रदर्शन में समाहित है.
कालांतर में आडंबर धर्म के वास्तविक स्वरूप को आच्छादित करता गया. दुखद तो यह है कि आज धर्म छल प्रपंच एवं प्रवंचना हेतु प्रयुक्त हो रहा है और हम दिल अंधानुकरण कर धर्म की मूल आत्मा पर प्रहार कर रहे हैं .
इसी संदर्भ को आलोकित करती मेरी एक लघु कथा-
ऋतुराज वसंत के दस्तक देते ही प्रकृति में सर्वत्र उल्लास है. वैसे ही माघ एवं फाल्गुन मास वसंतोत्सव के लिए विख्यात है. त्रिविध समीर के साथ वातावरण में मादकता है. एक तरफ तरह तरह के फूल खिले हैं तो दूसरी तरफ बच्चों के दिल. सरस्वती पूजा जो समीप है. शहर गांव मोहल्ले में सर्वत्र उत्सव का माहौल है. अल्प वयस किशोर बच्चे कुछ नौजवान भी हाथ में रंग-बिरंगे पैड लेकर चंदा के लिए घूम रहे हैं. उन्हें समाज का भी समर्थन प्राप्त है. चलो भाई बच्चे अच्छा कार्य कर रहे हैं. मां सरस्वती विद्या की देवी हैं .उनकी आराधना करने दो.
जैसे-जैसे बसंत पंचमी समीप आ रही है, बच्चों का उल्लास भी बढ़ते जा रहा है. कुछ ने तो स्कूल जाना छोड़ दिया है. कईयों ने महीने से पुस्तकों को छुआ नहीं है. भाई पूजा जो करनी है मां सरस्वती की. मैया ही बेड़ा पार करेगी.
पूजा के साज सामान की तैयारियां हो रही है. अच्छी सी मूर्ति आने वाली है. भारतीय संसद की तरह सब विभागो का बंटवारा भी हो चुका है. कुछ लड़के पूजा सामग्री लिखवाने पुरोहित के पास जाते हैं विनम्र आग्रह भी करते हैं- बाबा.. जरा शौटे में …कमे सामान..
बच्चों की मंडली टेंट, समियाना, साउंड डेकोरेशन सब उनके पास पहुंचती है. विमार चल रहा है भाई.. चोंगा चारों तरफ लगाना होगा ताकि लगे कि हम पूजा कर रहे हैं. डीजे की बात चली तो कुछ लड़कों ने मन मसोसकर हिसाब लगाया खर्च बहुत अधिक हो जाएगा.
उसी में से मुखिया- सा व्यस्क लड़का अनौपचारिक ढंग से बोला-
बिना डीजे के पूजा कइसे होतई रे… सब मजा किरकिरा जतउ हो..
सब उन्हें समर्थन किया.
आज बसंत पंचमी है. मूर्ति भले ही छोटी है परंतु पंडाल बड़ा है. वाह लाइट साउंड डेकोरेशन से जगमगा रहा है. सब व्यवस्थाएं हो चुकी हैं. बस कुछ लड़के पूजा का सामान लेने गए हैं.
पूजा चल रही है पंडाल में गहमागहमी है. मोहल्ले भर के बच्चों ने अपनी किताबें मां के चरणों में रखकर आत्मसमर्पण कर दिया है. पूजन के उपरांत प्रसाद वितरण हो रहा है. लोग आ रहे हैं जा रहे हैं.
सांध्य आरती का समय है. पंडाल में अभी भीड़ कम है. बस केवल आयोजक भक्तगण विराजमान हैं.
अनाउंसमेंट हो रहा है… हर वर्ष की भांति…. आरती का समय हो चला है…. स्वागत करता है…. करता रहेगा.
बीच में रंगीन फूहड़ गंदे गाने बज रहे हैं. भक्तगण भाव विभोर होकर नृत्य कर रहे हैं. भक्ति में नहीं गाने के बोल पर-
पिया दिया बुताके… तूने क्या क्या किया…
ओ हो हो हो.. हा हा ही ही.. की ध्वनि गूंज रही है. यह कोई जयकारा नहीं है बल्कि यूं ही… यही आयोजन की आत्मा है.
तभी एक लड़का कुछ महिलाओं को आते देख कर हठात् चिल्ला पड़ता है..
गाना बंद कर… बंद कर .. मम्मी आवत हउ …बंद कर..!!!
महिलाएं माताएं बहने ठिठकर गाना बंद होने का इंतजार कर रही है. बंद होने के बाद वेधीरे-धीरे सकुचाती हुई आरती हेतु आगे बढ़ रही है …
पंडाल में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा है.. मानो धर्म मुख्य रूप से आयोजकों से प्रश्न कर रहा है??????
जब तुम्हारे गंदे फूहड़ गाने सुनकर सामान्य महिला माता बहने ठिफट जा रही हैं. उनके कदम रुक जा रहे हैं. तो क्या जगत् जननी मां सरस्वती इस गाने को सुनने के लिए इस पंडाल में बैठी हैं???
उत्तर स्पष्ट है- निश्चय ही ही नहीं. अब और कई अनुत्तरित प्रश्न उठ खड़े हो रहे हैं .जब मां नहीं है तो पूजा किसकी हो रही है?
तभी मुखिया- सा प्रधान संयोजक बोला- छोड़ो भई ! इसमें देख कौन रहा है.. मूर्ति में मां है कि नहीं. चलो आरती की तैयारी करो.
दूसरे दिन मूर्ति विसर्जन के समय भक्तों का उत्साह चरम सीमा पर है. सबपर बसंत छाया हुआ है. रंग अबीर बरस रहे हैं. कईयों ने तो अपने मन को नसे मादकता से रंगीन बना लिया है .
मां जा रही है.. नृत्य हो रहा है… डीजे से गाना फूल साउंड में बज रहा है –
स्कूल के टेम पे..
आना गोरी डैम पे..रे..
धर्म आंसू बहा रहा है. मूर्ति विसर्जन के समय नदी के तीर पर दूर खड़ी मां सरस्वती विस्फारित नेत्रों से सुध -बुध खोए बाल- मंडली को देख रही है. पता नहीं उन्हें क्या दें… वरदान या अभिशाप???
काश इन्हें शिक्षा और समाज धर्म का सच्चा स्वरूप दिखा पाता कि कर्म ही सबसे बड़ी पूजा है. मां अपने शिष्ट सुशील एवं कर्मशील बच्चे को ही प्यार करती है एवं उन पर स्नेह बरसाती है.