धनबाद: भारत ही नहीं विदेशों में भी अपनी कोयला की गुणवत्ता में पहला स्थान रखने वाले धनबाद ’ईज ऑफ लिविंग 2020’ के नतीजों में फिसड्डी साबित हुआ है. 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में धनबाद नीचे से दूसरा स्थान हासिल किया है. इसी लिस्ट में झारखंड की राजधानी रांची 42वें नंबर पर है जबकि धनबाद 48वें स्थान पर है. धनबाद से नीचे सिर्फ श्रीनगर है.
देश की कोयला राजधानी के रूप में स्थापित धनबाद देश के सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र है. झरिया में लगी भूमिगत आग और माइनिंग क्षेत्र होने की वजह से ग्रीनपीस इंडिया की जारी रिपोर्ट में भी धनबाद को देश का दूसरा सबसे प्रदूषित शहर की सूची में शामिल किया गया था.
झरिया में प्रदूषण के कारक ‘पीएम 10’ (पार्टिकुलेट मैटर यानी धूल कण) का औसत सालाना स्तर 2018 में 322 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर था जो 0-60 की सुरक्षित सीमा से छह गुना से अधिक है. देश भर के 287 शहरों से ‘पीएम 10’ डेटा के विश्लेषण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है.
झरिया कोयला भंडार और उद्योगों के लिए जाना जाता है और यह देश के सबसे बड़े कोयला स्रोतों में से एक है. झरिया के कोयला से कोक बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है, जिसका प्रयोग मुख्य रूप से लौह-इस्पात उद्योग में होता है, यहां के कोयला खान तकरीबन एक सदी से सुलग रहे हैं, वहीं कोयला ही झरिया और धनबाद में प्रदूषण का प्रमुख कारक है.
धूलकण के कारण सड़क किनारे धूल से सने मुरझाये पौधे, आम होती बच्चों-बुजुर्गों की सांस फूलने की समस्या, त्वचा की बीमारी, कोलियरी क्षेत्रों की फिजां से आ रही है. यह बताने के लिए काफी है कि लोग धनबाद में किस प्रदूषित वातावरण में जी रहे है.
पूरे जिले में प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह हवा में मौजूद धूलकण है, उसकी मात्रा में दिन प्रति दिन इजाफा दर्ज किया जा रहा है. आज आलम यह है कि शहर के सबसे हरे-भरे क्षेत्रों में पीएम 10 का स्तर अपने तय मानक 100 से हमेशा अधिक रहा है.
विशेषज्ञों की मानें तो धनबाद में दो प्रमुख वजह है. पहला कोयला खदान और उसमें लगी आग के साथ इसके खनन के लिए अपनाया जाने वाला अवैज्ञानिक तरीका, वहीं शहरी क्षेत्रों में वाहनों की बढ़ती संख्या और पतली सड़क.
2011 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में धनबाद विश्व का 34वां सबसे अधिक प्रदूषित शहर था, इन रिपोर्टों से खुलासा हुआ था कि धनबाद कोयलांचल की हवा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फाइड आदि की मात्रा मानक से काफी अधिक है, जो गंभीर रोग पैदा कर सकते हैं. वर्ष 2011 में डब्ल्यूएचओ ने दुनिया के प्रदूषित शहरों की एक सूची जारी की, जिसमें भारत के 33 शहरों को भी शामिल थे. इनमें धनबाद देश में 11वें स्थान और पूरी दुनिया में 34वें स्थान पर था.
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रलय ने धनबाद में 31 मार्च, 2012 तक किसी भी तरह का उद्योग लगाने पर रोक लगा दी थी.
धनबाद की हवा में सबसे अधिक जहर कोयला घोल रहा है. इसकी वजह से लोग सांस और स्कीन से संबंधित गंभीर बीमारियों से पीड़ित होते जा रहे हैं. जिले में अभी सबसे अधिक कोयला का उत्पादन ओपेन कास्ट माइंस से हो रहा है. यही माइंस प्रदूषण का सबसे प्रमुख स्रोत भी साबित हो रही है. इनके खनन के दौरान होने वाली ब्लास्टिंग की वजह से बड़ी मात्रा में धूलकण हवा में पहुंच इसे प्रदूषित कर रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार इसके साथ यहां कोयला और ओवर बर्डेन की अवैज्ञानिक तरीके से होने वाले ट्रांसपोर्टिंग और डंपिंग की वजह से भी काफी मात्रा में धूलकण हवा में पहुंच जा रहे हैं.
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड धनबाद में प्रदूषण का सबसे मुख्य कारण खुले ट्रक में कोयला की ढुलाई को बताता है. पर्यावरण संरक्षण के नाम पर कोयला कंपनियों द्वारा हरियाली लाने और कोयला क्षेत्र की जमीन को बचाने का दावा अब तक बहुत असरदार साबित नहीं हो रहा है. बीसीसीएल द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय एवं फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट देहरादून के मार्गदर्शन में ग्रीन बेल्ट तैयार किया जा रहा है, जो अबतक नाकाफी साबित हुआ है. जिले में पर्यावरण की खराब स्थिति के लिए यहां तेजी से बढ़ती जनसंख्या है. 2011 की जनगणना के अनुसार जिले में प्रति वर्ग किमी में 1284 लोग रहते हैं, यह घनत्व राज्य में सर्वाधिक है. अभी जिले की आबादी 30 लाख से अधिक हो गयी है. इतनी बड़ी आबादी को शहर में बसाने या रखने के लिए अब तक कोई प्लांड स्कीम नहीं है.
वर्तमान में जिले की आबादी 30 लाख से अधिक है और यह शहर अपने देश में सबसे तेजी से विकास करने वाले शहरों में शामिल है.
राज्य में सर्वाधिक वाहन खरीदारी करने वाला शहर है. पिछले एक दशक में 3.06 लाख वाहन धनबाद की सड़कों पर आ गये हैं. इन वाहनों में दोपहिया से लेकर कोयला खनन और ट्रांसपोर्टिंग में इस्तेमाल होने वाले बड़े वाहन भी शामिल हैं. इसके साथ ही शहर में काफी तेजी से पुरानी गाड़ियों का कारोबार बढ़ रहा है. इस समय शहर में 30 हजार के करीब 15 साल या उससे अधिक पुराने वाहन चल रहे हैं. ये सभी वाहन या तो पेट्रोल या डीजल से चलते हैं. इनके चलने से होने वाले प्रदूषण की वजह से यहां के पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंच रहा है.