अयोध्या की राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद की उच्चतम न्यायालय में लगातार सुनवाई हो रही है. हिंदू पक्ष न्यायालय के सामने अपनी दलीलें दे चुका है. जिसके बाद आज से मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें पेश करेगा. अदालत ने 16 दिनों में सभी हिंदू पक्षों की सुनवाई पूरी कर ली है. जिसमें निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान शामिल हैं. राजनीतिक तौर पर संवेदनशील इस मामले पर नवंबर तक फैसला आने की उम्मीद जताई जा रही है.
उच्चतम न्यायालय में छह अगस्त से मामले की सुनवाई शुरू हुई थी. यदि इस तरह से देखा जाए तो केवल 25 दिनों में मामले की आधी सुनवाई हो चुकी है. देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई 17 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं. ऐसे में अदालत के गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि सेवानिवृत्ति से पहले सीजेआई इसपर फैसला सुना सकते हैं. 25 दिनों में मामले की आधी सुनवाई होने से जल्द फैसला आने की उम्मीद जताई जा रही है.
20 दिन में पूरी हो सकती हैं मुस्लिम पक्ष की दलीलें
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वरिष्ठ वकील राजीव धवन सोमवार से निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के वकीलों की तरफ से पेश की गई दलीलों का जवाब अदालत में रखेंगे. धवन ने पहले कहा था कि वह अपनी दलीलों के लिए 20 दिन का समय ले सकते हैं. यदि धवन इतना समय लेते हैं तो भी अदालत के पास फैसला लेने के लिए एक महीने का समय होगा.
निर्मोही अखाड़े ने रामलला विराजमान के लॉ सूट का नहीं किया विरोध
निर्मोही अखाड़े के रुख में अचानत उस समय बदलाव आया जब उसने शीर्ष अदालत से कहा कि संपत्ति पर भक्त के तौर पर उसका अधिकार तभी बन सकता है, जब राम लला विराजमान के मुकदमे की इजाजत हो. अखाड़े के एक सूत्र के अनुसार मुस्लिम पक्षाकर 150 साल से विवादित स्थल पर अखाड़े की मौजूदगी का खंडन करेंगे और यह भी साबित करने की कोशिश करेंगे कि मूर्तियां अंदर के आंगन में नहीं थीं बल्कि उन्हें वहां रखा गया था.
नाबालिग हैं रामलला
रामलला के वकील सी एस वैद्यनाथन ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि विवादित भूमि पर मंदिर रहा हो या न हो, लोगों की आस्था होना काफी है जो यह साबित करता है कि वही रामजन्म स्थान है. उन्होंने आगे कहा कि हिंदुओं ने हमेशा इस स्थान पर पूजा अर्चना करने की इच्छा जताई है. स्वामित्व का सवाल नहीं है, यह जमीन भगवान राम की है. राम का जन्मस्थान यहीं है. वैद्यनाथन ने आगे कहा कि अगर वहां पर कोई मंदिर नहीं था, कोई देवता नहीं है तो भी लोगों की जन्मभूमि के प्रति आस्था ही काफी है. उस स्थान पर मूर्ति रखना उस स्थान को पवित्रता प्रदान करता है. अयोध्या के रामलला नाबालिग है. नाबालिग की संपत्ति को न तो बेचा जा सकता है और न ही कोई छीन सकता है.
मध्यस्थता की कोशिश रही नाकाम
अदालत ने आठ मार्च को पूर्व न्यायाधीश एफएम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की समिति का गठन किया था. जिसे आपसी सहमति से सर्वमान्य हल निकालने की जिम्मेदारी दी गई थी. समिति में अध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू शामिल थे. समिति ने बंद कमरे में सभी पक्षकारों से बात की लेकिन किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी. 155 दिन के विचार विमर्श के बाद मध्यस्थता समिति ने अदलात में रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि वह सहमति बनाने में असफल रही है.
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