विधानसभा में केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानून पर होगी विशेष चर्चा
रांची: किसानों में उबाल लाने वाले केंद्र सरकार के तीन नये कृषि कानून झारखण्ड विधान सभा के चालू बजट सत्र में विशेष चर्चा के अंतर्गत 22 मार्च को निर्धारित डिबेट कार्यवाही का हिस्सा बनने जा रहे हैं.
आर्थिक और विधायी मामलों के जानकार सूर्यकांत शुक्ला का कहना है कि विभिन्न विषयों पर विधायी शक्तियों के विभाजन को संविधान की सातवीं अनुसूची की तीन सूचियों क्रमशः केन्द्रीय सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची में वर्गीकृत किया गया है. कृषि पर केन्द्रीय कानून बनाये जाने को लेकर बहस जारी है कि यह तो राज्य का विषय है और इस पर विधान बनाना तो राज्य विधान मंडल का काम है. कृषि पर केन्द्रीय कानून राज्यों के विधायी अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण है आदि आदि. संविधान के मौजूदा प्रावधानों के नजरिये से केंद्र के कृषि कानूनों को देखने की कोशिश करते हैं . यहां पर राज्य सूची प्रविष्टि 14 में कृषि, कृषि एजुकेशन -रिसर्च, कीटनाशक से रच्छा, पौधों का रोगों से बचाव जैसे शामिल विषयों से तो यह निर्णय पर पहुंच आसान होती है कि कृषि पर कानून बनाने का अधिकार राज्य को है.
समवर्ती सूची जिसमें राज्य और केंद्र दोनों ही शक्ति और जिम्मेदारी के सहभागीदार हैं. प्रविष्टि 33 कृषि सहित किसी भी उद्योग के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को नियंत्रित करने के लिये राज्यों के साथ केंद्र सरकार को शक्ति प्रदान करती है. परन्तु यह प्रविष्टि 33 राज्य सरकार को बाजार शुल्क, उपकर या लेवी लेने से कतई नही रोकता जबकि कृषक उत्पाद (संवर्धक और सुविधा) व्यापार और वाणिज्य कानून 2020 राज्यों को अधिसूचित मंडियों के बाहर कृषक उपज की खरीद बिक्री पर शुल्क लेने की मनाही करता है, जिससे राज्यों की राजस्व आय और कमजोर होगी. यह कानून किसानों के हक न्यूनतम समर्थन मूल्य को तो कमजोर करेगा ही साथ ही राज्यों की राजस्व आय को भी नुकसान पहुचायेगा.
केंद्र के कृषि कानून किस तरह से संवैधानिक जरुरी प्रक्रियाओं को पूरा नही करते उस पर गौर करना प्रासंगिक होगा. संविधान के अनुच्छेद 249 केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि राष्ट्र हित में राज्य सूची में शामिल विषयों पर कानून बनाये परन्तु इसके लिये दो चीजें जरुरी हैं.
पहला यह कि राज्यों की परिषद यानि राज्यसभा इस आशय का एक प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित करे कि राष्ट्र हित में इस विषय पर संसद द्वारा कानून बनाया जाना अभी जरुरी है. दूसरी स्थिति तब बनती है जब दो या दो से अधिक राज्य अपने विधान मंडल से प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से आग्रह करें कि केंद्र सरकार कानून बनाये.
ये दोनों ही शर्तें केंद्र सरकार आसानी से पूरा करवा सकती थी यदि संघीय ढांचे के सम्मान का ख्याल करती और संविधान के प्रावधानों का सम्मान करती. परन्तु वस्तुस्थिति यह है कि कृषि कानून अध्यादेश के सहारे पिछले दरवाजे से चुपके-चुपके लोकसभा से होते हुए राजयसभा में वॉयस वोट से पारित हुआ और 12 विपक्षी दलों द्वारा मतदान की मांग को ठुकराकर 8 राज्यसभा सांसदों के निलंबन के बाद कृषि बिल कानून बने. इस नये कानून से 55 प्रतिशत भूमिहीन किसानों की माली हालत सबसे ज्यादा ख़राब होने वाली है.