चीन ने हांगकांग पर जी-7 देशों द्वारा जारी साझा बयान के प्रति असंतोष व्यक्त किया है. जी-7 नेताओं ने हांगकांग की स्वायत्ता का समर्थन किया है और चीन को शांत रहने को कहा है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने बीजिंग में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा, “हांगकांग मामले में जी-7 नेताओं के बयान का हम पुरजोर विरोध करते हैं.”
शुआंग ने कहा, “हम ये कई बार कह चुके हैं कि हांगकांग पूरी तरह चीन का आंतरिक मामला है. और किसी विदेशी सरकार, संगठन या फिर किसी व्यक्ति को इसमें हस्तक्षेप करने की जरुरत नहीं है.”
बता दें हांगकांग में सरकार विरोधी प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहा है. हजारों प्रदर्शनकारियों ने इंडस्ट्रियल इलाके कुन टॉन्ग में सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज कराया है. इस दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प देखने को मिली.
आजादी और लोकतंत्र की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों को काबू करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और लाठी चार्ज किया. इसके बाद प्रदर्शनकारियों ने भी पुलिस पर पथराव और बांस के डंडों से हमला किया.
क्या है ये कानून?
जिस विवादास्पद प्रत्यर्पण विधेयक का ये लोग विरोध कर रहे हैं, उसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति अपराध करके हांगकांग आ जाता है को उसे जांच प्रक्रिया में शामिल होने के लिए चीन भेज दिया जाएगा. हांगकांग की सरकार इस मौजूदा कानून में संशोधन के लिए फरवीर में प्रस्ताव लाई थी. कानून में संशोधन का प्रस्ताव एक घटना के बाद लाया गया. जिसमें एक व्यक्ति ने ताइवान में अपनी प्रमिका की कथित तौर पर हत्या कर दी और हांगकांग वापस आ गया.
हांगकांग की अगर बात की जाए तो यह चीन का एक स्वायत्त द्वीप है. चीन इसे अपने संप्रभु राज्य का हिस्सा मानता है. वहीं हांगकांग की ताइवान के साथ कोई प्रत्यर्पण संधि नहीं है. जिसके कारण हत्या के मुकदमे के लिए उस व्यक्ति को ताइवान भेजना मुश्किल है.
अगर ये कानून पास हो जाता है, तो इससे चीन को उन क्षेत्रों में संदिग्धों को प्रत्यर्पित करने की अनुमति मिल जाएगी, जिनके साथ हांगकांग के समझौते नहीं हैं. जैसे संबंधित अपराधी को ताइवान और मकाऊ भी प्रत्यर्पित किया जा सकेगा, फिलहाल सरकार ने कानून को लंबित कर दिया है. लेकिन ये साफ नहीं कहा है कि वह दोबारा इसे नहीं लाएगी.
हांगकांग के लोग क्यों कर रहे हैं विरोध?
चीन से क्यों गुस्सा हैं हांगकांग वासी?
बात है साल 1997 की तब हांगकांग को चीन के हवाले कर दिया गया था. उस वक्त बीजिंग ने ‘एक देश-दो व्यवस्था’ की अवधारणा के तहत कम से कम 2047 तक लोगों की स्वतंत्रता और अपनी कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने की गारंटी दी थी, लेकिन ऐसा ज्यादा समय तक नहीं चला.
हांगकांग में 2014 में 79 दिनों तक चले ‘अंब्रेला मूवमेंट’ के बाद चीनी सरकार ने लोकतंत्र का समर्थन करने वाले लोगों पर जमकर कार्रवाई की. इस आंदोलन के समय चीन की सरकार से कोई सहमति नहीं बन पाई थी. विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों को जेल में डाल दिया गया था. आजादी का समर्थन करने वाली एक पार्टी पर प्रतिंबध लगा दिया गया था.