रांची. झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और राज्य के वित्त तथा खाद्य आपूर्ति डॉ0 रामेश्वर उरांव ने कहा कि गांव-देहात में एक कहवात है-‘‘पिता कमाए और कपूत गवाएं.’’ देश आज इसी कहावत से रूबरू हो रहा है. कांग्रेस शासनकाल में देश के गरीबों, जरूरतमंद और कमजोर वर्गां के विकास की जो बुनियाद रखी गयी थी, उसे तहस नहस किया जा रहा है. सार्वजनिक संपत्तियों को भाजपा शासनकाल में पूंजीपति मित्रों के हवाले किया जा रहा है. एक के एक बाद सार्वजनिक कंपनियों को बेचा जा रहा है. डॉ0 रामेश्वर उरांव रविवार को असम विधानसभा दौरे के क्रम में लरसिंगा टी गार्डेन,अरुणाबन टी गार्डेन और नागर टी गार्डेन में कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि चाय बेचने वाले व्यक्ति ने, जिसे कभी किसी ने चाय बेचते नहीं, वह व्यक्ति चाय बेचते-बेचते आज चाय बागान को बेचने की कोशिश में जुट गया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी सत्ता में आएगी, तो चाय बगान में काम करने वाले जनजातीय समुदाय के लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि वे चुनाव के बाद भी क्षेत्र में आएंगे और उनकी समस्याओं के समाधान को लेकर प्रयास करेंगे.
डॉ0 रामेश्वर उरांव ने कहा कि अब देश में राजतंत्र खत्म हो गया है, प्रजातंत्र है, जनता पांच सालों में अपने प्रतिनिधि को चुनती है. चुनी हुई सरकार की यह जिम्मेवारी होती है कि वह लोगों की पढ़ाई, रोजगार, सिंचाई और सुरक्षा की जिम्मेवारी का निर्वहन करें. सरकार पांच वर्षां तक अपने घोषणा पत्र के अनुरूप काम करती है, लेकिन असम के लोगों के साथ पिछले पांच सालों में वादाखिलाफी हुआ है. दूसरी तरफ लोगों को भी यह मानना है कि कोरोना संक्रमणकाल में सिर्फ कांग्रेस पार्टी ने ही जनहित और लोगों की मुश्किलों को कम करने का प्रयास किया, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार अपने पूंजीपति मित्रों के लिए काम करते रहे.
चुनावी सभा में मौजूद पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे ने बताया कि डॉ0 रामेश्वर उरांव ने लोहरदगा, गुमला, खूंटी और सिमडेगा समेत विभिन्न जिलों से आकर असम के टी बागान में काम करने वाले उरांव, हो और मुंडा जनजाति के बीच पहुंच कर चुनावी सभा को संबोधित किया. इस दौरान डॉ0 रामेश्वर उरांव को अपने पास देखकर झारखंड से टी बागान में काम करने गये कई लोगों के आंखों में आंसू आ गये. लोगों ने यह महसूस किया गया कि उनके गांव-घर से ही कोई व्यक्ति उनकी दुःख दर्द में साथ देने आया है.