रांची: राजधानी के राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान का आई बैंक अब नेत्र प्रत्यारोपन की दिशा में काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है. रिम्स आई बैंक सेंटर अब कोर्निया ट्रांसप्लांट के नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है. कहा जाता है नेत्र दान, महादान. और ये सच भी है की नेत्र दान से बड़ा कोई दान नहीं है. पर यह ट्रांसप्लांट काफी महंगा और सबके बूते की बात नहीं होती है. पैसे के अभाव में कई गरीब और लाचार इस सुविधा का लाभ नहीं ले पाते हैं और अपने नेत्रहीन शरीर से दुनिया के सतरंग को नहीं देख पाते हैं. पैसे के अभाव में अपनी अँधेरी दुनिया से समझौता कर लेते हैं. पर अंधेरे के बाद रौशनी आती है. यह रौशनी रिम्स के ही नेत्र विभाग के चिकित्सक डॉ भीबी सिन्हा ऐसे शख्स हैं, जो दूसरों को ऊजाला परोस रहे हैं.
उनका कहना है कि प्रशिक्षण के क्रम में लखनऊ के एक आई बैंक से जुड़े. नेत्रदान की पहल सरकार की एक अच्छी पहल है. इसके लिए टीम भावना काम करती है. हम भी रांची में यह काम कर रहे हैं, वह भी निशुल्क यानी फ्री ऑफ़ कॉस्ट. अगर किसी की दुर्घटना में मौत जो जाती है तो चिकित्सकों की टीम मृतक की आँखे सुरक्षित रख लेती हैं औऱ जरूरतमंद को उसका ट्रांसप्लांट किया जाता है.
रिम्स आई बैंक की तरफ से उनकी टीम ने 26 कोर्निया ट्रांसप्लांट की है. वह भी महज एक वर्ष में. भगवान का रूप कहे जाने वाले चिकित्सकों के लिए यह सुखद अनुभव है कि उनकी कोशिश से 26 ऐसे लोगों को रौशनी मिली, जिनकी जिंदगी काली डोर की तरह थी. टीम के सदस्यों में डॉ असलम भी शामिल हैं, जिन्होंने कई मरीजों के मोतियाबिंद तक का सफल ऑपरेशन किया. डॉ सिन्हा, डॉ असलम के अनुसार मरीजों की जो दुआएं मिलती है वही उनकी सच्ची कमाई है. पूण्य है.